Lotus Tuber Farming: भारत में गेहूं, धान और दूसरी पारंपरिक फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, लेकिन बागवानी (Horticulture Crops) और औषधीय फसलों (Medicinal Crops) का रकबा इनकी तुलना में काफी कम है. देश के कुछ ही इलाके ऐसे है, जहां बागवानी फसलों को उगाया जाता है, हालांकि जमीन पर या मिट्टी में उगने वाली फसलों की खेती तो आसान होती है, लेकिन पानी में उगने वाली औषधीय फसलों (Herbal Farming) के सही जलवायु और देखभाल की जरूरत होती है. 


हम बात कर रहे हैं कमल कंद की खेती (Lotus Tuber Farming) के बारे में, जिसे कमल ककड़ी या ढेंस भी कहते हैं. पिछले 20 सालों से छत्तीसगढ़ का हीरापुर कमल कंद की खेती का केंद्र बिंदू बना हुआ है. जहां के ग्रामीण, किसान और आदिवासी तालाबों में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन (Lotus Tuber Production) लेकर आजीविका कमा रहे हैं.


क्या है कमल कंद 
कमल कंद, कमल ककड़ी या ढेंस, कमल की फसल का ही हिस्सा है, जिसे रेशेदार सब्जी और जड़ी-बूटी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इसमें मौजूद औषधीय गुणों के कारण ही छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में इसकी मांग बनी रहती है. इस राज्य में पिछले 20 सालों से ग्रामीण इलाकों की नदियों, तलाबों और पोखरों में इसकी खेती की जा रही है, जिससे ग्रामीणों को फूल, पत्ती, जड़ के साथ-साथ कंद का उत्पादन भी मिल जाता है. 


कमल कंद की खेती
कमल कंद की खेती करना बेहद आसान है. सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि अच्छी नमी, आर्दता और जलीय संसाधनों वाले राज्यों में हर ग्रामीण कमल कंद की व्यावसायिक खेती कर सकते हैं. कमल कंद के साथ अतिरिक्त आमदनी कमाने के लिये नदी, पोखर या तालाब में मछली पालन भी कर सकते हैं. इस तरह कमल के फूल पूजा अर्चना के लिये, कमल की जड़े दोबारा खेती के लिये और कमल कंद को औषधी या सब्जी के तौर और मछलियों को भोजन के रूप में बेचकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.


लागत और आमदनी
एक अनुमान के मुताबिक कमल कंद की खेती (Lotus Tuber Cultivation) में ज्यादा खर्च नहीं आता. वहीं फसल तैयार होने पर रोजाना 10,000 तक की आमदनी ले सकते हैं. एक एकड़ में कमल कंद की खेती करने पर कई किसानों ने 50,000 तक का मुनाफा भी लिया है. इसका हर बंडल 20 से 30 रुपये तक का बिकता है. वहीं इसकी व्यावसायिक खेती (Commercial farming of Lotus Tuber) करने पर किसान आराम से 1 लाख तक की कमाई भी ले सकते हैं.




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