Pointed gourd Farming: ये साधारण-सी सब्जी बदल देगी किसानों का नजरिया, बेहतर उत्पादन के लिये अपनायें खेती का ये खास तरीका
Parwal Ki Kheti:परवल का बेहतरीन उत्पादन पूरी तरह खेती की तकनीक पर निर्भर करती है. यदि समय-समय पर निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन किया जाये तो 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन भी ले सकते हैं.
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Guidance for Pointed Guard Farming: भारत में हरी सब्जियों का उत्पादन (Vegetable Production) और खपत बड़े पैमाने पर होती है. खासकर बात करें परवल की तो ये आज के दौर की सबसे प्रचलित सब्जी बनती जा रही है. गांव और कस्बों में तो क्या शहरों में इसकी बिक्री हाथों हाथ हो जाती है. किसान चाहें तो इसकी खेती के जरिये कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि परवल एक सदाबहार बेलदार सब्जी (Pointed Gourd Cultivation) है, जिसकी खेती हर सीजन में कर सकते हैं. विटामिन के गुणों से भरपूर परवल की सब्जी को खाली खेतों में, मचान पर या फिर इसकी सह-फसल खेती (Co-cropping of Pointed Gourd ) करके भी अच्छा उत्पादन ले सकते हैं.
कहां होती है परवल की खेती
भारत के ज्यादातर इलाकों में परवल की खेती की जाती है. बात करें इसके बड़े उत्पादक राज्यों की तो बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और महाराष्ट्र में भी किसान भी साल में एक बार परवल की फसल जरूर लगाते हैं.
मिट्टी और जलवायु
वैसे तो हर प्रकार की जलवायु में परवल का बेहतर उत्पदान ले सकते हैं, लेकिन इसकी रोपाई का काम सामान्य तापमान, गर्म तापमान या बारिश के दौरान ही करनी चाहिये. सर्दियों में परवल के पौधे ठीक प्रकार नहीं पनपते. वहीं इसकी खेती के लिये जल निकासी वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है. ज्यादा बारिश या जल भराव वाले इलाकों में इसकी खेती ना करें, क्योंकि फसल में पानी भरने पर परवल के पौधे गलने लगते हैं और पूरी पैदावार सड़ने लगती है.
परवल की खेती का तरीका
परवल की खेती के लिये नर्सरी में पौधे तैयार किये जाते हैं. कई किसान परवल के पौधों की जड़ों के जरिये भी इसकी रोपाई का काम करते हैं.
- इसकी खेती के लिये जैविक विधि से मिट्टी तैयार की जाती है, जिसके बाद जल निकासी करके मेड़ों पर या बेड़ बनाकर से पौधों या जड़ों की रोपाई करनी चाहिये.
- इसकी रोपाई के लिये जून से अगस्त और अक्टूबर से नवंबर का समय सबस अच्छा रहता है.
- फसल की अच्छी बढ़वार के बाद परवल के पौधों की बेलों को स्टेकिंग विधि से साधा जाता है, ताकि जमीन में बेल और परवल के फलों पर बुरा असर ना पड़े.
- बता दें कि बेलदार सब्जियों की खेती के लिये स्टेकिंग विधि का इस्तेमाल करने पर कीट-रोगों की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है.
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
परवल की खेती से बेहतर उत्पादन के लिये प्रति हेक्टेयर खेत में 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट, 90 से 100 किग्रा. नत्रजन, 60 से 70 किग्रा. फास्फोरस, 40 से 50 किग्रा. पोटाश उर्वरकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.
सिंचाई
परवल के पौधे या जड़ों की रोपाई के बाद तुरंत एक सिंचाई का काम किया जाता है, ताकि पौधों का ठीक तरह से विकास हो सके. इसके अलावा हर 8 से 10 दिनों के बीच हल्की सिंचाई करनी होती है.
परवल की खेती के लिये सर्दियों में 15 से 20 दिन और गर्मियों में 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई का कम कर लेना चाहिये.
कीट और खरपतवार प्रबंधन
परवल के पौधों की बढ़वार के बाद उन्हें बांस की बल्लियां या नाइलॉन की जाली के ऊपर फैलाया जाता है. पौध प्रबंधन की इस तकनीक के कारण खरपतवारों की संभावना नहीं रहती. यदि छोड़े बहुत खरपतवार निकल भी आयें, तो उन्हें निराई-गुड़ाई करके निकाल सकते हैं. इसी प्रकार परवल की फसल में कीट-रोगों की रोकथाम भी आसानी से हो जाती है. इसके लिये नीम और गौ मूत्र आधारित कीटनाशक का इस्तेमाल करना फायदेमंद और किफायती साबित होता है.
परवल का उत्पादन
परवल की फसल (Pointed Gourd farming) से सालभर में 80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक का उत्पादन ले सकते हैं. परवल का बेहतरीन उत्पादन पूरी तरह खेती की तकनीक (Staking of Pointed Gourd) पर निर्भर करती है. यदि एक बार फलत के बाद खेत में फावड़े से निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन किया जाये तो आराम से 150 से 190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर कर उत्पादन (Pointed Gourd Production) ले सकते हैं.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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