Modern Agriculture Techniques: देश के कई इलाकों में सिंचाई के पानी की कमी के कारण खेती-किसानी अपना दम तोड़ रही है. कई इलाकों में भूजल संकट पैदा हो रहा है. पानी की कम है, इसलिए बिजली-डीजल पंपों का इस्तेमाल करना पड़ रहा  है, जिससे खेती की लागत बढ़ रही है. आलम यह है कि अब बढ़ते खर्च और सूखती जमीन के कारण किसान खेती-किसानी छोड़ शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. राजस्थान, महाराष्ट्र, बिहार राज्यों में यह समस्या अधिक देखी जा रही है, लेकिन कुछ किसान ऐसे भी हैं, जो सभी चुनौतियों से लड़ते हुए फसल उत्पादन ले रहे हैं. आधुनिक कृषि तकनीक और कृषि योजनाओं ने भी किसानों के काम को आसान बना दिया है. राजस्थान के कई किसान आज कम पानी में खेती से बंपर उत्पादन लेकर मिसाल पेश कर रहे हैं.


दौसा शहर से 22 किलोमीटर दूर तिगड्‌डा गांव के किसान कैलाश चंद बैरवा भी उन किसानों में शामिल हैं, जिन्होंने अपनी सूझबूझ से भूजल संकट से उबरने का रास्ता खोजा. पारंपरिक फसलों के बजाए बागवानी फसलों की खेती की. आधुनिक तरकीबों और सूक्ष्म सिंचाई से बंपर उत्पादन लिया और आज दूसरे किसान भी इनकी खेती-किसानी से प्रेरणा ले रहे हैं.


पारंपरिक के बजाए बागवानी फसलों का दामन थामा
जानकारी के लिए बता दें कि कैलाश चंद बैरवा ने दसवीं तक पढ़ाई की है. आज के हिसाब से चलने वाले किसान हैं और आधुनिक तकनीकों के प्रति जागरूक भी हैं. इनके पास 17 बीघा जमीन है, जिसमें से 3 बीघा पर बेर, अनार और नींबू का बाग, फार्म पॉन्ड और पोल्ट्री फार्म बनाया है.


बागवानी के लिए बूंद-बूंद सिंचाई यानी ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल हो रहा है. किसान कैलाश चंद बैरवा बताते हैं कि उनके इलाकों में भी पहले काफी पानी थी. खेतों में लगभग सभी पारंपरिक फसलें लहलहाती थीं.


वो खुद अपने खेत में सरसों का उत्पादन ले रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे समय गुजरते भूजल स्तर भी गिरने लगा. कई किसानों ने इसी चिंता में अपनी जमीन बेच दी और शहर चले गए, लेकिन कैलाश चंद बैरवा ने कृषि विभाग के संपर्क में रहने हुए खेती जारी रखी और किसानों के लिए लगाए जा रहे ट्रेनिंग कार्यक्रम, कृषि गोष्ठियों में जाने लगे.


कृषि विशेषज्ञों और अधिकारियों से बातचीत करते तो पता चला कि कम पानी वाले इलाकों में बागवानी फसलों की खेती से अच्छे परिणाम मिल रहे हैं. फिर क्या अपने 3 बीघा खेत पर देसी बेर के 60, नींबू के 40 और अनार के 20 पौधे लगवा लिए. 


शहरों में निर्यात हो रहे फल
पारंपरिक किसान से सफल बागवान बने कैलाश चंद बताते हैं कि 15 साल से बेर और नींबू के बागों से अच्छी कमाई हो रही है. रोजाना 17 बीघा जमीन की सिंचाई मुमकिन नहीं है, लेकिन बेर की खेती से कम सिंचाई में ही 60 क्विंटल उपज मिल रही है, जो बाजार में 40 रुपये किलो के भाव बिकता है.


इसकी मार्केटिंग में भी समस्या नहीं होती. इन फलों का दौसा, बांदीकुई और अलवर के अलावा हिसार और दिल्ली की मंडियों में ट्रांसपोर्टेशन हो रहा है. इस तरह जहां परांपरागत खेती से 3 बीघा में 1 से 1.25 लाख की आमदनी होती थी.


वहीं आय के साथ-साथ मुनाफा भी 10 गुना बढ़ गया है.  कैलाश चंद बैरवा बताते हैं कि उन्होंने खेत में ही अपना घर बना लिया है. साथ में दो पोल्ट्री फार्म भी है, जिससे अतिरिक्त कमाई हो रही है. खेत पर ही एक फार्म पॉन्ड भी बनवाया है, जिससे सिंचाई के साथ-साथ मछली पालन में भी मदद मिल रही है.


इसे बनवाने में जो लागत आई थी, उस पर कृषि विभाग ने 90,000 रुपये का अनुदान दिया है. घर पर पशुपालन हो रहा है. पशुओं के दूध बेचकर कुछ पैसा मिल जाता है. वहीं पशुओं का गोबर खाद के तौर पर खेत में इस्तेमाल हो रहा है. खेती, बागवानी, पोल्ट्री, मछली, पशुओं के जरिए आज कैलाश चंद बैरवा लाखों की आय ले रहे हैं.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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