Global warming Effects: ग्लोबल वॉर्मिंग का असर मौसम पर साफ दिख रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण मौसमों का महीने भी आगे खिसकने लगा है. नवंबर में ठंड पड़ना शुरू हो जाती थी. इस बार नवंबर का पहला सप्ताह गुजरने के बावजूद उतनी ठंड नहीं है. बारिश भी तय समय पर नहीं हुई. बेमौसम बारिश ने किसानों की करोड़ों रुपये की फसलों को बर्बाद कर दिया. मौसम चक्र बदलने की टेंशन साइंटिस्ट को होने लगी है. इन सबका कारण ग्लोबल वॉर्मिंग को ही माना जा रहा है. साइंटिस्ट ने हाल में जो स्टडी की है, उसके मुताबिक यही हाल रहा तो आने वाले सालों में देश में गेहूं, धान, मक्का का उत्पादन तेजी से घट जाएगा. 


जानिए कितनी घट सकती है पैदावार


मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के देहरादून स्थित सेंटर इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग (IIRS) के वैज्ञानिकों ने स्टडी की. स्टडी में सामने आया कि ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ता असर फसल उत्पादन क्षमता पर पड़ना तय है. ग्लोबल वॉर्मिंग यदि इसी तेजी से बढ़ती रही तो वर्ष 2080 तक देश में गेहूं की पैदावार में 40 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है. इसके अलावा धान की पैदावार में 30 प्रतिशत और मक्का की फसल में 14 प्रतिशत की कमी दर्ज की जा सकती है. यदि यह स्थिति सामने आई तो देश में डिमांड और सप्लाई के बीच खतरनाक असंतुलन पैदा हो जाएगा. 


उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल क्षेत्र में की स्टडी


स्टडी करने वाले साइंटिस्ट के अनुसार, चार सदस्यीय साइंटिस्ट की टीम ने 3 साल तक 'क्लाइमेट चेंज इंपैक्ट ऑन एग्रीकल्चर' विषय पर उत्तराखंड के देहरादून, हिमाचल व जम्मू-कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में अध्ययन किया. इसमें सेटेलाइट के माध्यम से डेटा जुटाया गया. 


30 सालों में 40 प्रतिशत तक बढ़ी ग्लोबल वॉर्मिंग


टीम ने वर्ष 1960 से 1990 तक के बीच के पीरियड की स्टडी की. इस दौरान ग्लोबल वॉर्मिंग में कृषि क्षेत्र पर प्रभाव को लेकर इंडेक्स तैयार किए गए. 30 साल की तुलना में वर्ष 1990 से लेकर 2020 के बीच ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव 30 से 40 प्रतिशत अधिक पाया गया. स्टडी में सामने आया कि ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे ज्यादा असर एग्रीकल्चर फील्ड पर पड़ा है. बारिश न होना, सूखा पड़ना, गर्मी अधिक होना, ठंड का घटना आदि सब इसी के कारक हैं. 


और क्या रहे ग्लोबल वॉर्मिंग साइड इफेक्ट


स्टडी में ग्लोबल वॉर्मिंग के हुए साइड इफेक्ट भी देखे गए. इसमें सामने आया कि खेतों में कीटों की संख्या बढ़ गई. रबी, खरीफ, दलहन की पैदावार घट गई. सूखे की स्थिति बढ़ने लगी. ग्रीन हाउस इफेक्ट बढ़ता जा रहा है. कार्बन डाईऑक्साइड गैस बढ़ी हैं. इसके अलावा एनवायरमेंट में उन गैसों की संख्या भी बढ़ रही है जो वातावरण को गर्म करती हैं.



Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि और तरीकों को केवल सुझाव के रूप में लें. किसी भी उपचार/दवा/डाइट और सुझाव पर अमल करने से पहले डॉक्टर या संबंधित एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें.