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Bamboo Export: हम विदेश से मंगवाते हैं पवन चक्की, डेनमार्क हम से खरीद रहा है कलपुर्जा! आखिर है क्या मांजरा?

Wind Energy: एक रिसर्च के मुताबिक, बांस से बनी पंखुडियां पवन चक्की के लिए काफी हल्की होती है. पवन ऊर्जा निर्माण को आसान बनाने के लिए डेनमार्क ने देवास के बांस की खरीद को मंजूरी दे दी है.

Bamboo Export in Denmark: आज दुनियाभर में बांस से बने उत्पादों को काफी तवज्जो दी जा रही है. भारत में बांस की खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन योजना भी चलाई जा रही है. इस योजना के तहत किसानों को आर्थिक सहायता भी दी जाती है, जिससे वो अच्छी क्वालिटी का बांस उगाकर देश-विदेश में निर्यात (Bamboo Export) कर सकें. मध्य प्रदेश का देवास भी बांस की खेती के कारण 'बैंबू हब' के नाम से फेमस हुआ है. अभी तक यहां से सिर्फ देश की ही आवश्यकतायें पूरी की जाती थी, लेकिन अब डेनमार्क ने भी देवास के बांस (Dewas Bamboo) को खरीदने का फैसला किया है.

इससे पवन चक्की में लगने वाली ब्लेड या पखुड़ियां बनाई जायेंगी. बता दें कि बांस से बनी पंखुड़ियां काफी हल्की होती है, जिससे पवन ऊर्जा निर्माण की प्रक्रिया कई गुना आसान और टिकाऊ हो जायेगी. ये पंखुड़ियां देवास में ही बनाई जायेगी, जिससे 2,000 से अधिक महिलाओं को रोजगार मिलने की संभावना है. 

क्यों अच्छी होती है बांस की पंखुड़ी
वैसे तो पवन चक्की बनाने के लिए अलग-अलग मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन डेनमार्क ने पवन ऊर्जा निर्माण (Wind Energy) के लिए बांस का इको फ्रैंडली रास्ता चुना है. एक रिसर्च के आधार पर डेनमार्क की कंपनी ने दावा किया है कि जहां पवन चक्की के लिए फाइबर से बनी पंखुड़ियां 4 साल में ही खराब हो जाती हैं.

वहीं देवास के बांस से बनी पंखुड़ियां हल्की होने के साथ-साथ 40 साल तक के लिए टिकाऊ भी हैं. बांस की पंखुड़ियों की लागत कम होती ही है. साथ ही, ये मजबूत भी होती हैं, इसलिये डेनमार्क ने इसके इस्तेमाल को मंजूरी देते हुये 100 पंखुड़ियों का ऑर्डर भी दिया है, जिसकी सप्लाई भी जल्द ही की जायेगी. बता दें कि ये रिसर्च भी देवास की ही एक बांस आर्टिसन कंपनी ने ही की है. 

बांस के उत्पादों की महारथी देवास की कंपनी
बांस का इस्तेमाल करके तमाम इको फ्रैंडली और सस्टेनेबल प्रॉडक्ट्स बनाने वाली आर्टिशन को दुनिया की पहली टैक कंपनी का दर्ज मिला है. जामगोद की ये कंपनी देवास के बांस से फर्नीचर, दरवाजे और यहां तक बांस के घर तक बना रही है. इस कंपनी ने तमाम बैंबू प्रॉडक्ट्स विदेशों में भी निर्यात किये हैं.

इस आर्टिशन कंपनी के सीईओ देवोपन मुखर्जी ने बताया कि कटंगा बांस पर कई महीनों से अलग-अलग देशों में रिसर्च चल रही है. डेनमार्क भी उन्हीं देशों में से एक है. यहां रिसर्च के परिणाम सफल रहे और अब इंजीनियरिंग प्रोसेस से इस बांस की पंखुड़ियां बनाने का काम शुरू किया जायेगा.

महिलाओं को मिलेगा रोजागर
वैसे तो बांस से दुनियाभर के उत्पादन बनाये जाते रहे हैं, लेकिन पवन ऊर्जा निर्माण में बांस का इस्तेमाल एक नया इनोवेशन है. ये इसलिये भी चर्चा में है, क्योंकि देवास में बांस से बनी पंखुड़ियां बनाने में करीब 2,000 महिलाओं का योगदान रहेगा. इससे महिला सशक्तिकरण का सपना साकार होगा और रोजगार के नये अवसर खुलेंगे.

पवन चक्की में लगने वाली इन पंखुड़ियों का निर्माण करने के लिए देवास जिले में पहले से ही हजारों एकड़ जमीन पर जंबू बांस की रोपाई की जा चुकी है. अगले 2 से 3 महीने में इन पंखुडियों का प्रॉडक्शन 50 एकड़ में बनी एक फैक्ट्री में शुरू होगा.

हम विदेश से मंगवाते हैं पवन चक्की
जानकारी के लिए बता दें कि भारत में पवन ऊर्जा निर्माण के लिए विदेशों से पवन चक्की का आयात किया जाता है, लेकिन बांस से पंखुड़ियां तैयार करने का इनोवेशन जल्द देश के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. ये देश का एक और बड़ा सफल  प्रयोग है, जो इकोफ्रैंडली और सस्टेनेबल मैनेजमेंट पर खरा उतरा है. अभी तक पवन चक्की की पंखुड़ियों में फाइबर का इस्तेमाल किया जा रहा था.

इससे बनी फाइबर ग्लास ब्लेड-पंखुड़ी करीब 100 से 150 टन तक वजनी होती है. वहीं बांस की पंखुड़ियां इससे 25 फीसदी तक हल्की होती हैं. इन दोनों में कीमत का भी बड़ा अंतर है, जहां फाइबर ग्लास की तीन ब्लेड़-पंखुड़ी 3 करोड़ रुपये में आती हैं तो वहीं 15 प्रतिशत तक कम कीमत पर बांस से बनी पंखुड़ियां तैयार हो जायेंगी. 

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें- इस राज्य में पराली जलाने से हुआ भयंकर प्रदूषण, सबक लेकर हरियाणा सरकार ने उठाये सख्त कदम

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