Sustainable Agriculture: दोगुना कमाई के लिये खेती के साथ करें ये 5 काम, सरकारी योजनाओं से मिलेगी आर्थिक मदद
Farming Works: कम लागत वाली टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिये किसानों को दूसरे कृषि कार्यों से भी जोड़ा जा रहा है, जिससे किसानों की आमदनी दोगुनी हो सके.
Profitable Agriculture: हरित क्रांति के बाद भारत में अनाज का उत्पादन करीब 4 गुना ज्यादा बढ़ गया, जिसके चलते देश के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार की मांगों को भी पूरा किया जा रहा है. इसके साथ अब देश में कम लागत वाली टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिये भी किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिससे किसानों की आमदनी दोगुनी हो सके. इन कामों में पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, मर्गीपालन और खाद्य प्रसंस्करण शामिल है. ये सभी ऐसे काम है, जिन्हें शुरु करने के लिये खेती को छोड़ने की जरूरत नहीं है, बल्कि ये उपाय खेती को आसान बनाने में ही किसानों को मदद करेंगे. आइये जानते हैं इनके बारे में विस्तार से-
पशु पालन और डेयरी फार्मिंग
भारत में खेती के साथ-साथ पशुपालन का प्रचलन पुराने समय से ही चलता आ रहा है, क्योंकि इससे डेयरी फार्मिंग और दूध उत्पादन में भी मदद मिलती. सही मायनों में खेती और पशुपालन एक-दूसरे के पूरक है. इससे खेती की लागत भी कम हो जाती है, क्योंकि पशुओं के गोबर को खाद में रूप में प्रयोग किया जाता है. दूसरी तरफ, खेत की उपज से पशुओं के लिये हरे-पीले चारे इंतजाम हो जाता है. देश में खेती के साथ-साथ पशुपालन और डेयरी फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिये कई सरकारी योजनायें चलाई जा रही हैं, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य को बेहतर और किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सके. इनमें राष्ट्रीय गोकुल मिशन, पशु किसान क्रेडिट कार्ड और पशुधन बीमा योजना जैसी कई महत्वकांक्षी योजनायें शामिल हैं, जिनमें पशुपालकों के लिये आर्थिक अनुदान का भी प्रावधान है. किसान चाहें तो इन योजनाओं का लाभ लेकर गाय पालन, भैंस पालन, बकरी पालन, बतख पालन, ऊंट पालन, भेड़ पालन से अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
मछली पालन
पहले भारत में मछलीपालन सिर्फ मछुआरों तक ही सीमित था, लेकिन उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ती मछली की मांग को देखते हुये अब तालाबों और टैंकों में मछलीपालन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके लिये सरकार ने प्रधानमंत्री मतस्य संपदा योजना की शुरुआत की है, जिसमें मछलीपालक किसानों को आर्थिक सहायता के लिये आश्वस्त किया गया है. किसान चाहें तो अपने खेत में तालाब खुदवाकर या फिर टैंक में वैज्ञानिक विधि ये मछलीपालन करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं. आंकड़ों की मानें तो आज भारत के 1.5 करोड़ लोग कम खर्च में मछली पालन की शुरुआत करके बेहतर आजीविका कमा रहे हैं. मछलीपालन में झींगा मछली, सजावटी मछली पालन, केकड़ा पालन आदि शामिल हैं.
मधुमक्खी पालन और शहद उत्पादन
देश में पीली क्रांति यानी शहद के उत्पादन के लिये भी किसानों की काफी मदद की जा रही है. राष्ट्रीय मधुमक्खी मिशन के तहत सरकार खेतों में ही मधुमक्खी पलान और शहद उत्पादन की यूनिट लगाने के लिये किसानों को सब्सिड़ी दे रही है. खासकर सरसों, गन्ना फूलों और फल बागों के पास मधुमक्खी पालन की यूनिट लगाने के लिये ट्रेनिंग भी दी जा रही है. किसान चाहें तो बेहद कम खर्च में बेहतर आमदनी लेने के लिये अपने खेतों में मधुमक्खी की छोटी-सी कॉलोनी लगा सकते हैं. बता दें कि मधुमक्खी के 4-5 बक्सों से 1 बोतल शुद्ध शहद निकलता है, जो बाजार में 100 रुपये लीटर के भाव बेचा जाता है. यही कारण है कि शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन किसानों के लिये अतिरिक्त आमदनी का स्रोत बन सकता है.
मुर्गी पालन
शहर हो या गांव, पोषण के नाम पर अब दूध के साथ-साथ अंडे खाने का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है. इससे अंडे और मांस की मांग में भी काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. यही कारण है कि मुर्गीपालन को किसानों के लिये टिकाऊ कृषि मॉडल के रूप में देखा जाता है. मुर्गीपालन के लिये बहुत ज्यादा ताम-झाम की जरूरत नहीं होती, छोटे और सीमांत किसान चाहें तो छोटे से क्षेत्र में शेड़ बना भी शुरुआत कर दें. इसमें मुर्गियों को रोजाना पोषणयुक्त दाना डालें और उनके बाड़े में साफ-सफाई रखें. इसके बाद मुर्गी के अंडे और मांस से अच्छी कमाई हो जाती हैं. वहीं मुर्गी के बाड़े ने निकला अपशिष्ट भी खेतों में पोषण देने के काम आता है.
खाद्य प्रसंस्करण
अकसर किसानों को खेत की उपज से बाजार में सही भाव नहीं मिल पाते, जिसके कारण किसानों को नुकसान झेलना पड़ जाता है. अनाज, दलहन और तिलहन ऐसी फसलें हैं, जिनकी बाजार में मांग और कीमत बढ़ने पर इन्हें बाजार में बेचा जा सकता है. लेकिन फल, फूल और सब्जियों जैसी-बागवानी फसलों को सही समय और सही भाव बेचना जरूरी हो जाता है, नहीं तो कटाई के कुछ दिनों बाद ही फसलें पड़े-पड़े सड़ जाती है. लेकिन अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि इन बागवानी फसलों का प्रसंस्करण यानी प्रोसेसिंग करके इन्हें दोगुना भाव पर बेचा जा सकता हैं. इससे फसल के खराब होने की चिंता खत्म हो जायेगी और बाजार में प्रसंस्करित यानी प्रोसेस्ड़ फूड के दोगुना दाम भी मिल जाते हैं. उदाहरण के लिये- बाजार में टमाटर के दाम कम मिलने पर इसकी प्यूरी, सॉस और चटनी बनायें, आलू का प्रसंस्करण करके उसके चिप्स और फ्राइस और नींबू या कच्चे आम का अचार, चटनी और पन्ना बनाकर भी बेच सकते हैं.
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