Donkey Market: आज पशुपालन का मतलब सिर्फ गाय, भैंस, बकरी से लिया जाता है. इन दुधारु पशुओं की बढ़ती डिमांड के बीच अब घोड़ा, ऊंट, भेड़, सूअरों की तादात तो कम हो रही है, मालवाहक खच्चर और गधों को तो बिल्कुल भाव नहीं मिलता. आज के आधुनिक दौर में मशीनों के बढ़ते इस्तेमाल ने देश में हजारों साल से पल रहे कई पशुधन प्रजातियों को विलुप्ति की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है. इसमें गधे भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल कभी माल या बोझ को ढ़ोने के लिए तो किया जाता था, लेकिन अब तो कहीं गधा दिख भी जाए तो बड़ी बात है, हालांकि देश के कई इलाकों में आज भी गधा मेला लगाने की पंरपरा है.
हाल-फिलहाल में पुणे जिले का जेजुरी भी गधा बाजार के लिए ही फेमस हो रहा है. यहां पिछले 200 साल से हर पौष पूर्णिमा पर गधा बाजार लगता है और हर साल कुछ लाखों का व्यापार भी होता है. अब आप सोच रहे होंगे कि गधों को खरीदता कौन है?
कितने में बिकता है एक गधा
महाराष्ट्र के पुणे जिले के जेजुरी में पिछले 200 सेल हर पौष पूर्णिमा को गधा मंडी लगाने की परंपरा है. इस मंडी में दूर-दूर से व्यापारी आकर गधे खरीदते हैं. वैसे तो मंडी में हर ब्रीड का गधा होता है, लेकिन यहां गधों की कीमत उनके रंग और दांत देखकर तय की जाती है.
दो दांत, चार दांत, खोखले, अखंड जवान समेत कई तरह के गधे मेले की रौनक होते हैं. वहीं गावठी और काठेवाड़ गधों को को 30,000 से 35,000 रुपये की कीमत पर बेचा जाता है. वहीं साधारण ब्रीड के गधों की कीमत 7,000 रुपये से चालू होती है.
कहां से आते हैं व्यापारी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से भी व्यापारी गधा खरीदने पुणे की जेजुरी मंडी में आते हैं. पौष पूर्णिमा के अवसर पर महाराष्ट्र के दो स्थानों पर गधा मेल लगाने का चलन है.
एक नगर जिले के मढ़ी मंडी में रंग पंचमी पर और दूसरा पुणे जिले के जेजुरी में पौष पूर्णिमा पर. यहां वडार, कुंभार, वैदु, कोल्हाटी, बेलदार, कैकाड़ी, डोंबारी, पारिट, पथरावत, गरुडी आदि अठरा पगड जाति के लोग भी आते हैं, जो अपनी आजीविका के लिए गधा पालन पर निर्भर हैं.
कम होता जा रहा गधों का कारोबार
आजकल देश में पशुधन का मतलब दुधारु पशुओं से है. आधुनिक दौर में बढ़ती मशीनों के इस्तेमाल के बीच अब मालवाहक जानवरों की वैल्यू काफी कम हो गई है, जिसका असर गधों के कारोबार पर भी पड़ा है. कोरोना महामारी के करीब 3 साल के अंदर गधों की बिक्री का कारोबार बिल्कुल मंदा पड़ गया है. इस पशु का ख्याल करते हुए कुछ ही लोग गधों को मालवाहक के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
गूगल मैप से एडवांस हैं गधे
आज गधों की वैल्यू सिर्फ मुहावरों, बेइज्जतियों और व्यगों तक सिमटकर रह गई है, लेकिन आपको बता दें कि असल में यह जानवर बेहद समझदार और एडवांस है. इसे पालने वाले मासिक गधे के लिए चारे-पानी की भी चिंता नहीं करनी पड़ती, जो डालेंगे ये जानवर चुपचाप खा लेता है.
इतना ही नहीं, गधे कभी रास्ता भटकते, इसलिए इन्हें पुराने जमाने का गूगल मैप भी कहते हैं. एक बार जो रास्ता देख लें, अब उसी रास्ते को हांकते हुए मंजिल पर पहुंच जाते हैं.
यही वजह है कि आज भी देश के कई इलाकों में धोबी, कुम्हार, ईंट और सामान ढुलाई करने वाले या दूसरे लोग गधे तो मूर्ख समझ कर नहीं, बल्कि मेहनतकश और समझदार जानवर समझकर पालते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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