Drip Irrigation Technique: खरीफ सीजन के फसल चक्र में कई किसानों ने अनाज, फलों और सब्जियों की अलग-अलग किस्मों की बुवाई का काम शुरु कर दिया है. खरीफ सीजन की मुख्य फसलों में मूंगफली की फसल का नाम भी शामिल है, जिसकी खेती गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक,आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में मुख्य रूप से की जाती है. मूंगफली की बुवाई के बाद कई ऐसे कृषि कार्य होते हैं, जिनकी तैयारी किसानों को पहले से ही करनी होती है. इन कृषि कार्यों में खाद तैयार करना, उर्वरक खरीदना और सिंचाई की व्यवस्था करना आदि शामिल है. सिंचाई संबधी कार्यों की बात करें तो मूंगफली की फसल में पानी की कम ही जरूरत होती है. इसलिये किसान भाई चाहें तो मूंगफली की फसल को नमी प्रदान करने के लिये ड्रिप सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल कर सकते हैं. 


क्या है ड्रिप इरिगेशन तकनीक
जानकारी के लिये बता दें कि ड्रिप इरिगेशन यानी टपक सिंचाई विधि में प्लास्टिक की लंबी-लंबी पाइपों में हर थोड़े अंतराल पर छेद किया जाता है. इसके बाद इन पाइपों को पूरे खेत में फैला दिया जाता है और जरूरत के अनुसार ही पानी इन पाइपों में छोड़ा जाता है. इस विधि के तहत जरूरत के अनुसार ही पानी सीधा पौधों की जड़ों तक पहुंचता है. खेती की आधुनिक तकनीक और संरक्षित खेती में भी टपक सिंचाई का इस्तेमाल करके पानी की बचत पर फोकस किया जाता है. टपक सिंचाई तकनीक में ज्यादास खर्च नहीं आता. वहीं प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत ड्रिप इरिगेशन का लाभ लेने के लिये आर्थिक अनुदान देने का भी प्रावधान है.


मूंगफली की फसल में टपक सिंचाई के फायदे–



  • मूंगफली की फसल में टपक सिंचाई पद्धति से सिंचाई कार्य करने पर बंपर पैदावार मिलती है और फसल भी समय से पहले पककर तैयार हो जाती है.

  • टपक सिंचाई में पौधों को पानी जरूरत के हिसाब से मिलता है. इससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है और जमीन में जल स्तर भी कायम रहता है.

  • दुनिया जहां पानी की कमी से जूझ रहा है, ऐसे समय में टपक सिंचाई पद्धति पानी की बचत को प्रोत्साहित करती है.

  • टपक सिंचाई पद्धति का सबसे बड़ा लाभ  ये है कि इससे मिट्टी के कटाव और अनावश्यक खरपतवार को उगने से भी रोका जा सकता है.

  • ड्रिप इरिगेशन तकनीक से मानव श्रम की काफी बचत होती है, गर्मियों के मौसम में किसानों को इसका खास लाभ मिल सकेगा.



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