Cauliflower farming for Double Earning: भारत में बागवानी फसलों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. बागवानी फसलों में आजकल सहफसली खेती का प्रचलन भी बढ़ गया है, जिसके तहत किसान फल के बागों में सब्जियां उगाकर अच्छा लाभ कमा रहे हैं. इससे खाली पड़ी जमीन का इस्तेमाल भी हो जाता है और किसानों को अतिरिक्त आमदनी भी मिल जाती है. जून से लेकर जुलाई तक बोई जाने वाली फूलगोभी को भी सह-फसल के रूप में उगा सकते हैं. जाहिर है कि फूलगोभी एक महत्वपूर्ण सब्जी फसल है, जिसकी मांग सर्दियां आते-आते बढ़ जाती है. इसलिये इसके अच्छे उत्पादन के लिये खेती के दौरान कृषि कार्यों में सावधानियां बरतना बेहद जरूरी है.


बीजों का चयन
कृषि में विकास-विस्तार हेतु कार्यरत संस्था ICAR-IARI ने फूलगोभी अच्छी गुणवत्ता और अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों को विकसित किया है. जिनमें पूसा मेघना, पूसा अश्विनी, पूसा कार्तिक, पूसा कार्तिक संकर आदि फूलगोभी की अगेती किस्मों में शामिल है. जून-जुलाई के महिने में फूलगोभी की इन किस्मों की बुवाई के बाद सिंतबर-अक्टूबर तक फसल पककर तैयार हो जाती है.


खेत की तैयारी
भारत सरकार बागवानी फसलों की जैविक खेती को खासतौर पर प्रोत्साहन दे रही है. फूलगोभी की जैविक खेती करने से भी किसानों को अच्छा मुनाफा मिल जाता है. इसलिये खेतों की तैयारी भी जैविक तरीके से ही करें. 



  • अगर खेत में कीड़े और दीमक का प्रकोप दिखे तो फूलगोभी की बुवाई न करें.

  • खेतों में ही इस समस्या को खत्म करने के लिये 3 प्रतिशत केप्टान का घोल बनाकर खेत में डालें.

  • अब खेत में गहरी जुताई का काम करें और मिट्टी का सौरीकरण होने दें.

  • इसके बाद करीब 100 किलो गोबर की खाद और एक किलो टाइकोडर्मा का मिश्रण बनायें और 7-8 दिन बाद खेतों में डाल दें.

  • खेतों में गोबर की खाद का मिश्रण डालने के बाद आखिरी जुताई का काम कर लें.

  • खेत में ही बीजों की बुवाई के लिये 4-5 इंच ऊंची बेड़ बनायें. इस बेड़ की लंबाई 3-5 मीटर और चौड़ाई 45 सेंमी. रखें.

  • बेड़ बनाकर खेती करने से निराई-गुड़ाई, सिंचाई और बारिश के समय जल निकासी करने में आसानी रहती है.

  • खेत की तैयारी के बाद बीजों का बीजोपचार करें और बेड़ पर बीजों को 45-60 सेमी के अंतराल पर दो इंच गरहाई में बुवाई करें.

  • बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई का काम कर लेना चाहिये.

  • समय-समय पर खरपतवार नियंत्रण और कीट-रोगों की निगरानी करते रहें.

  • फसल को समय-समय जैविक विधि के अनुसार पोषण प्रदान करें.

  • कीट और रोग नियंत्रण के लिये नीम और गोबर से बने जैविक कीटनाशक और जीवामृत का प्रयोग करना बेहतर रहता है.


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