Pumpkin Class Vegetable Farming: बारिश के मौसम में बड़े पैमाने पर बेलदार और कद्दूवर्गीय सब्जियों की खेती की जाती है. बात करें तोरई की, तो छोटे कस्बों से लेकर बड़े शहरों के बाजारों में इसकी मांग रहती है. कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा और विटामिन-ए के गुणों से भरपूर तोरई एक नकदी फसल भी है, जिसकी बुवाई जून से जुलाई के बीच की जाती है. तोरई की फसल 70-80 दिनों में फल देना शुरु कर देती है. इस बीच समय पर  सिंचाई, निराई-गुड़ाई और पोषण प्रबंधन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. किसान भाई चाहें तो तोरई की परंपरागत खेती न करके पॉलीहाउस में इसकी संरक्षित फसल उगा सकते हैं. 


तोरई की उन्नत किस्में
अच्छी किस्म के बीजों से खेती करने पर पैदावार भी अच्छी होती है. पूसा संस्थान ने तोरई की उन्नत और अधिक पैदावार देने वाली कई किस्में इजाद की हैं, जिनमें पूसा चिकनी, पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, काशी दिव्या, कल्याणपुर चिकनी, फुले प्रजतका, घिया तोरई, पूसा नसदान, सरपुतिया, कोयम्बू- 2 को काफी पसंद किया जाता है. 


खेती और देखभाल
पौधों की रोपाई या बीजों की बुवाई, दोनों तरीकों से तोरई की खेती कर सकते हैं. इसकी खेती के लिये कार्बनिक पदार्थो से युक्त उपजाऊ मिट्टी सबसे बेहतर रहती है.



  • बुवाई से पहले मिट्टी की जांच करवायें, जिससे मिट्टी में पोषक तत्व और उर्वरकों को जरूरत के हिसाब से डाल सकें.

  • 15-20 टन गोबर की सड़ी खाद, 40-60 किग्रा. नाइट्रोजन (आधी मात्रा), 30-40 किग्रा. फास्फोरस और 40 किग्रा पोटाश का मिश्रण बनाकर एक हैक्टेयर खेत में डालें.

  • जल भराव की समस्या से फसल को बचाने के लिये खेत में जल निकासी की व्यवस्था भी करें.

  • एक हेक्टेयर खेत तोरई की बुवाई के लिये 2-3 किलो बीज काफी हैं, बुवाई से पहले इनका बीजोपचार करें.

  • बुवाई से पहले 3-4 फीट की दूरी पर क्यारियां बनायें और मेड़ों पर 2 इंच गहराई में बीजों की बुवाई करें.

  • पौध से पौध के बीच 80 सेमी. दूरी रखें और 50 सेमी. चौडी व 35 से 45 सेमी. गहरी नालियां भी बनायें.

  • बुवाई के तुरंत बाद फसल में हल्की सिंचाई का काम करें, जिससे बीजों को अंकुरण में मदद मिल सके.

  • नाइट्रोजन की बची हुई आधी मात्रा को 30-35 दिनों बाद खेत में डालें.

  • समय-समय पर निराई-गुड़ाई और खरपतवारों की निगरानी करते रहें.

  • तोरई में कीट और रोगों के इलाज के लिये जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करें.

  • ठीक प्रकार से फसल की देखभाल करने पर एक हैक्टेयर खेत से 100-150 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं.


 







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