Bottle Gourd Farming By Staking Method: पुराने तरीकों से खेती करने पर कभी-कभी किसानों को भारी नुकसान भी झेलना पड़ जाता है. ये परेशानी ज्यादातर सब्जी फसलों की खेती (Vegetable Farming) के दौरान झेलनी पड़ती है, लेकिन हमारे वैज्ञानिकों ने खेती की ऐसी विधियां भी इजाद की है, जो सस्ती और टिकाऊ हैं. इन तकनीकों की मदद से खेती करने पर जोखिम भी कम होते हैं और अच्छी क्वालिटी की सब्जियों का उत्पादन मिलता है.


हम बात कर रहें है स्टेकिंग तकनीक (Staking Method) यानी मचान विधि के बारे में, जिसका इस्तेमाल करके लौकी, करेला, फलियां, तोरई और टमाटर जैसी बेलदार सब्जियों की खेती करना और भी आसान होता जा रहा है.


मचान विधि के फायदे (Benefits of Staking Method)
रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान मचान विधि से लौकी जैसी बेलदार सब्जियों की खेती करके अच्छा उत्पादन ले रहे हैं. 



  • मचान विधि से खेती करने में लागत भी कम आती है और अच्छी पैदावार मिलने से बाजार में सब्जियों के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं.

  • अनुमान के मुताबिक एक एकड़ खेत में मचान लगाकर लौकी की खेती करने पर करीब 10 से 15 हजार रुपये की लागत आती है. वहीं फसल बिकने पर आमदनी और लाभ कई गुना बढ़ जाता है.

  • एक एकड़ खेत में मचान विधि से लौकी की खेती करने पर 90-100 क्विटल तक सब्जी का उत्पादन मिल सकता है.

  • जाहिर है कि बाजार में लौकी की मांग साल भर बनी रहती है. ऐसे में मचान विधि को अपनाकर रबी, खरीफ और जायद तीनों फसल चक्र में लौकी उगा सकते हैं. 




मचान विधि से लौकी उगाने का तरीका (How to Grow Bottle Gourd by Staking Method)
उत्तर प्रदेश के ज्यादातर किसान जनवरी, जून, जुलाई, सितंबर और अक्टूबर के फसल चक्र में लौकी उगाते हैं. 



  • मचान विधि से खेती करने पर लौकी की पौध नर्सरी में तैयार की जाती है, जो 30-40 दिनों में तैयार हो जाती है. 

  • इसके बाद बेलदार पौधों को मचान के ढांचे पर झाड़ के बीच फैला दिया जाता है.

  • जुलाई में लौकी की खेती करने पर बारिश के पानी से ही पौधे की सिंचाई हो जाती है और पौधे पर फूल निकलने लगते हैं.

  • जब लौकी के फल निकलने लगते हैं तो ये जमीन या मचान को नहीं छूते, बल्कि मचान के ढांचे पर बेलों के सहारे हवा में ही लटकते रहते हैं.

  • इस तरह से फसल में ना खरपतवार (Weed Management) की समस्या रहती है और न ही कीड़े और बीमारियां लगने का खतरा होता है.

  • मचान विधि में अगर कीड़े लगने की संभावना भी हो तो, नीम से बने प्राकृतिक कीट नाशकों (Organic Pesticides) का प्रयोग कर सकते हैं.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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