Kundru Crop: भारत में धान, गेहूं, दलहन, तिलहन जैसी पारंपरिक फसलों को बढ़ावा देती है. कुछ फसलें ऐसी हैं, जिनमें मेहनत, लागत कम होती है. लेकिन मुनाफा खासा अधिक हो जाता है. आज हम ऐसी ही खेती के बारे में जानकारी लेने की कोशिश करेंगे. जिन्हें किसान एक बार बुआई कर कई सालों तक कमाई कर सकते हैं. इस फसल का बीज भी बेहद आसानी से मिल जाता है. कुंदरू ऐसी ही सालभर होने वाली फसल है. एक बार बोने के बाद कई सालों तक इससे उत्पादन मिलता रहता है.
इस तरह की मिट्टी में करिए खेती
वैसे तो कुंदरू की फसल को सभी तरह की मिट्टी में बोई जा सकती है. लेकिन अच्छा उत्पादन बलुई दोमट मिट्टी में मिलता है. यह लवणीय क्षमता अधिक सहन करने वाली होती है. भूमि का पीएच मान 7 होना चाहिए. खेती के लिये गर्म और नमी युक्त एनवायरमेंट होना ठीक रहता है. अच्छी उपज के लिए 30 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान होन चाहिए.
इस तरह करें बीजों की रोपाई
किसी भी खेती को करने से पहले उसके रोपाई का तरीका भी आना चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि खेती करना जानते हैं तो कुंदरू की फसल के बीजों को सीधे ही खेत में बोया जा सकता है. नहीं तो नर्सरी में बीजों की बुआई कर पौध तैयार की जा सकती है. बाद में खेत में मेड़ तैयार कर पौधों की रोपाई कर दी जाती है. बुआई इस तरह की होनी चाहिए, ताकि खरपतवार न हो. मई से जून के महीने में गहरी जुताई करके खेत को खुला छोड़ दें. खेत को अच्छे से साफ कर दें. जुलाई में दो से तीन बार हैरो या कल्टीवेटर लगाकर खेत को समतल कर दें. बांस के खंभों को खेती लगाकर करना पंडाल प्रणाली कहलाती है. इस तरह की खेती करने पर पैदावार अच्छी होती है.
होती है लाखों रुपये की कमाई
कुंदरू पर पहले फल 45 से 50 दिन में खाने लायक तैयार हो जतो हैं. एक बार तोड़ाई करने के बाद 10 से 15 दिन में फल दोबारा आने लगते हैं. बाद की तुड़ाई 4 से 5 दिन के अंतर पर करते रहना चाहिए. इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर में करीब 450 क्विंटल तक हो जाता है. एक बार बुआई कर किसान 4 साल तक कमाई ले सकते हैं. कुंदरू थोक में 5000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचा जाता है. रिटेल मार्केट में कुंदरु की कीमत करीब 80 रुपये प्रति किलोग्राम रहती है. किसान इसे बेचकर लाखों रुपये की कमाई कर लेते हैं.
ठंडे स्थानों पर कम होता है उत्पादन
भारत में अधिकांश स्थानों पर कुंदरू की खेती होती है. कम ठंड पड़ने वाले स्थानों पर इसकी पैदावार साल भर होती है. लेकिन जिन स्थानों पर ठंड अधिक होती है. वहां 7 से 8 महीने तक फल मिलता है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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