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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

Carrot Farming: सर्दियों के सुपरफूड गाजर की खेती करा सकती है जबरदस्त कमाई, ऐसे करें खेती

Top Carrot Varieties: गाजर की उन्नत किस्मों की वैज्ञानिक खेती करके 100 से 120 के अंदर 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं, जिससे 7-14 लाख रुपये तक आमदनी ले सकते हैं.

Carrot Cultivation: गाजर का नाम सुनते ही दिमाग में स्वादिष्ट, जायकेदार और लाल रंग का गाजर का हल्वा (Gajar ka Halwa) छप जाता है. बीटा कैरोटीन और विटामिन जैसे तमाम पोषक तत्वों से भरपूर यह सब्जी सेहत के लिये काफी फायदेमंद है. इसका सेवन सलाद, सब्जी और मिठाईयों में खूब ही किया जाता है, जिसके चलते सर्दियों तक इसकी खपत काफी बढ़ जाती है. यही कारण है कि इस सीजन में किसानों को भी अच्छा पैसा कमाने का मौका मिल जाता है.  दिवाली के आस-पास बाजार में गाजरों की कीमत (Carrot Price in Market) आसमान छू रही होती है. ऐसे में गाजर की अगेती खेती (Carrot Cultivation) करके किसान त्योहारों तर काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो गाजर की फसल से बेहतर उत्पादन (Carrot Production) के लिये उन्नत किस्मों का चयन करना चाहिये.

गाजर की उन्नत किस्में
अधिक मात्रा में बढिया क्वालिटी की पैदावार के लिये गाजर की उन्नत किस्मों का चयन करें. भारत में गाजर की एशियाई किस्मों से अगेती खेती और पछेती खेती के लिये यूरोपियन किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है. इस बीच गाजर की चैंटनी, नैनटिस, चयन नं- 223, पूसा रुधिर, पूसा मेघाली, पूसा जमदग्नि, पूसा केसर, हिसार रसीली और गाजर 29 आदि किस्में काफी मशहूर हैं.  

खेत की तैयारी
गाजर की अगेती बुवाई के लिए अगस्त-अक्टूबर तक का समय सबसे उपयुक्त रहता है. इस बीच खेत तैयार करने के लिये 2 से 3 गहरी जुताई या लगाकर पाटा चलाया जाता है, जिससे मिट्टी को भुरभुरी बन जाये. इसके बाद मिट्टी की जांच के आधार पर 35 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश भी मिट्टी में मिला सकते हैं

गाजर की बुवाई
गाजर की फसल में कीट-रोग और खरपतवारों की संभावनाओं को कम करने के लिये बीजों का उपचार करके बुवाई का काम किया जाता है. गाजर की बिजाई के लिये 30 से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर डोलियां बनाई जाती हैं, जहां पौध से पौध की दूरी 6 से 8 सेंटीमीटर रखनी चाहिये. इस बीच 2 से 3 सेंटीमीटर गहरी नालियां बनाकर बीजों को लगा दिया जाता है.

सिंचाई की सुविधा
सामान्य सिंचित जमीन और असिंचित जमीन पर गाजर की सिंचाई अलग-अलग तरह की जाती है. सामान्य इलाकों में 5 से 6 सिंचाई में ही गाजर की फसल तैयार हो जाती है. इसके अलावा मिट्टी में नमी कायम रखने के लिये 15 से 20 दिन के अंदर ड्रिप सिंचाई से पानी लगा सकते हैं. ध्यान रखें कि फसल में पानी का जमाव ना हो. इससे फल जमीन के अंदर ही फटने लगते हैं और क्वालिटी भी खराब होती है.

खरपतवार नियंत्रण 
गाजर की फसल में नुकसान की संभावना को कम करने के लिये 2 से 3 सप्ताह के अंदर निराई-गुड़ाई करने की सलाह दी जाती है. कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर खरपतवारनाशी दवा का छिड़काव भी कर सकते हैं. इसी के साथ पौधों की जड़ों पर मिट्टी चढ़ाने का काम कर लेना चाहिये.

उत्पादन और आमदनी
गाजर की खेती (Carrot Farming) करके कम खर्च और कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. बता दें कि गाजर की एशियाई किस्में (Asian Varieties of Carrot)  में बुवाई के 100 से 130 दिन और यूरोपियन किस्में 60 से 70 दिनों के अंदर पककर तैयार हो जाती है. इसके बाद समय पर गाजर की खुदाई (Carrot Harvesting) करके सभी फलों को पौधा समेत खींचकर बाहर निकाल लेना चाहिए. किसान चाहें तो गाजर की उन्नत किस्मों से वैज्ञानिक खेती (Scientif Farming of Carrot)  करके 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं. इसकी कुछ किस्मों से 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन (Carrot Production) मिल जाता है. इस प्रकार रबी सीजन में गाजर की फसल (Carrot Cultivation) लगाकर 7 लाख से 14 लाख रुपये तक आमदनी (Income from Carrot Farming) ले सकते हैं.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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