Diwali in Villages: भारत का सबसे बड़ा त्योहार दिवाली है. समाज, परंपरा और आर्थिक तौर पर दिवाली का त्योहार काफी अहम है. शहरों में दिवाली का जश्न मिठाईयां, पटाखे, साफ-सफाई और मेल-मिलाप के लिये मनाया जाता है, लेकिन गांव में आज भी किसान शोर-शराबे से दूर रहकर पारंपरिक दिवाली मनाते हैं. वैसे तो शहरी पटाखों का चलन भी गांव तक पहुंच गया है. एक तरफ शहर में धन-समृद्धि के लिये लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है, लेकिन किसानों के लिये उनकी धरती ही भगवान होती है.
इसी पर किसानों की आमदनी, गुड़लक और भविष्य निर्भर करता है. किसानों से बातचीत के आधार पर जानने को मिलता है कि दिवाली वाले दिन सबसे पहले खेत-खलिहानों की पूजा की जाती है. इस भूमि पूजन भी कहते हैं. बेहतर अनाज की कामना करते हुये खील-बताशे का भोग लगाया जाता है और 4 दिये जालकर खेत के चारों कोनों में रख दिये जाते हैं, जिससे खेत-खिलहान के चारों कोनों में अन्न पैदा हो सके, क्योंकि अन्न के भंडार ही किसानों की खुशहाली बढ़ाते हैं.
पशुओं को सजाते है किसान
ग्रामीण इलाकों में सिर्फ खेती ही एक-अकेला काम नहीं होता, बल्कि घर परिवार की जरूरतों के लिये हर किसान पशुपालन जरूर करता है. ऐसे में पशुओं की नकेल बदलकर मालायें पहनाई जाती है. इतना ही नहीं, पशुओं के सींगों को भी रंग दिया जाता है. इस दौरान पशुओं को सूखा या हरा चारा खिलाने के बजाय दलिया, पशु आहार और गुड़ खिलाया जाता है, ताकि आने वाले समय में पशुओं की सेहत अच्छी रहे और उनके बेहतर दूध उत्पादन मिल सके. जानकारी के लिये बता दें कि भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी कई किसान बैलों की मदद से पारंपरिक खेती करते हैं. ये ही किसानों को अन्न उपजाने में मदद करते हैं, इसलिये पशुओं की पूजा का भी काफी महत्व है.
गांव में दिवाली का वैज्ञानिक महत्व
पौराणिक काल से ही दिवाली पर दिये जलाने का चलन है. इसे लोग धर्म से जोड़कर देखते हैं, हालांकि दिये जलाने से अंधेरा दूर होता है, इसलिये अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व भी कहते हैं, लेकिन गांव में इसके वैज्ञानिक महत्व भी हैं. गांव में मान्यता के अनुसार दिये जलाते समय कुछ दाने अन्न के भी डाले जाते हैं, ताकि अन्न की कमी कमी ना रहे. इसके अलावा गांव में दिवाली का सीधा संबंध कीट नियंत्रण से है.
खरीफ फसलों की कटाई तक मौसम में बदलाव आ जाता है. हल्की बारिश के बाद खेत-खलिहान में कीड़े-मकोड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है, इसलिये पुराने समय में खेतों में अरंडी के तेल के दिये जलाने का रिवाज भी है. साथ में किसान अरंडी के तेल की मशालें लेकर खेत-खलिहान का चक्कर भी काटते थे. इस तरह रौशनी से आकर्षित होकर कीट-पतंग नष्ट हो जाते थे और इससे पारिस्थितिकी संतुलन भी बना रहता था.
चौपालों पर होता है मेल-मिलाप
गांव में पारंपरिक दिवाली मनाई जाती है. घरों पर रंगों से कलाकृतियां बनाई जाती हैं, कच्चे छप्पर बदलकर नये शेड लगाये जाते हैं. यहां दिवाली पर किसान और गांव के बुजुर्ग चौपाल पर मिलते हैं और एक दूसरे को मिठाई बांटते हैं. गांव के लोग एक-दूसरे को परिवार की तरह देखते हैं. यहां एक-दूसरे को उपहार देने का चलन नहीं होता, लेकिन गांव में रहने वाले पुरोहित, गरीब किसान और मजदूरों को अनाज दान करने का भी रिवाज होता है, ताकि त्योहार पर हर घर का चूल्हा जल सके. इसके अलावा किसान अपने पुरखों-पूर्वजों की भी आराधना करते हैं. शाम को लक्ष्मी-गणेश पूजन के बाद घर के बच्चे पटाखों के साथ अपनी दिवाली का आगाज करते हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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