Paddy Nursery Management: धान को खरीफ फसल चक्र की अहम फसल माना जाता है, क्योंकि इसकी नर्सरी और रोपाई प्री-मानसून सीजन में की जाती है. फिलहाल किसान भाई धान की नर्सरी तैयार कर रहे हैं, जिससे पहली बारिश पड़ने पौध तैयार हो जाये और रोपाई का काम किया जा सके. पौधशाला में बुवाई के बाद फसल की देखभाल जैसे कीड़ों और बीमारियों की निगरानी करना बहुत जरूरी है. इसलिये इस दौरान धान  की नर्सरी में कीटनाशकों के छिड़काव की सलाह दी जाती है. जिससे स्वस्थ नर्सरी तैयार हो सके और फसल में रोगों की संभावना न रहे.


ऐसे करें रोग का इलाज
वैसे तो धान की नर्सरी के लिये उन्नत किस्म के बीजों का चुनाव किया जाये तो रोग लगने की स्थिति ही नहीं आती. लेकिन फिर भी धान नर्सरी में उगाये गये पौधों में झुलसा रोग, भूरा धब्बा और टुंग्रो वायरस पनपने लगते हैं. तो इसकी रोकथाम के लिये नाइट्रोजन उर्वरकों का इस्तेमाल कम कर दें, क्योंकि उर्वरकों के अधिक इस्तेमाल से बी ये समस्या  पैदा हो सकती है. इसके अलावा धान की नर्सरी में जीवामृत या नीम से बने प्राकृतिक कीटनाशक का छिड़काव करें. इससे स्वस्थ नर्सरी और खेतों से अच्छी पैदावार लेने में काफी मदद मिलेगी.
  
कीट प्रबंधन का सही तरीका
अकसर ऐसा देखने को मिलता है कि धान की नर्सरी में थ्रिप्स, केस वर्म, आर्मी वर्म, और हरे फुदके जैसे कीट पौध पर चिपककर उसे खराब कर देते हैं. ऐसी स्थिति में पौधशाला को बचाने के लिये नर्सरी से अतिरिक्त पानी को निकालकर बाहर कर दें. किसान चाहें तो नीम से बने कीटनाशक और 12.5 किलोग्राम नीम केक को भी प्रति 10 मीटर वर्ग के हिसाब से नर्सरी में डाल सकते हैं. इसके अलावा सिंचाई के पानी में जरूरत के अनुसार केरोसिन मिलाने से भी कीड़ों का  प्रकोप खत्म हो जाता है.


ये सावधानियां बरतें



  • नर्सरी में बुवाई के 10-15 दिन के अंतराल पर कीटनाशक और फफूंदी नाशक छिड़काव करें

  • रसायन वाले कीटनाशकों के स्थान पर नीम पत्तियों का घोल बनाकर छिड़काव करें

  • नर्सरी में अधिक पानी न भरने दें, जरूरत के अनुसार पानी ही पौध में डालें

  • पौधों की गलन रोकने के लिये धूप पड़ने पर अतिरिक्त पानी को नर्सरी से निकाल दें. 

  • शाम के समय नर्सरी में हल्की सिंचाई करके पानी की बचत करें.


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