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Agri Innovation: बूंद-बूंद सिंचाई से बदल गई बिहार के इन किसानों की जिंदगी, पानी भी बचा लिया और फसल का प्रोडक्शन भी बढ़ने लगा

Drip Irrigation: खेती में पानी, पैसा और मेहनत बचाने में ड्रिप इरिगेशन यानी टपक सिंचाई मददगार साबित हो रही है. कई किसानों ने माना है कि टपक सिंचाई से फसल की उत्पादकता बढ़ी है और नुकसान कम हुआ है.

Micro Irrigation: पूरी दुनिया पानी की कमी से जूझ रही है. शहरों में पीने के साफ पानी की किल्लत है तो गांव में फसल की सिंचाई के पानी की. कई इलाकों में पानी है. लेकिन सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन नहीं है, जिससे पानी व्यर्थ में बहता है. डीजल पंप सेट हों या फिर पारंपरिक सिंचाई, इनसे खेत में ज्यादा पानी भर जाता है और सड़-गलकर फसल नष्ट होने लगती है. वहीं असिंचित इलाकों में फसल की सही समय पर सिंचाई नहीं हो पाती तो उत्पादन कम हो जाता है. ऐसी स्थिति में  किसानों को बूंद-बूंद सिंचाई करने के लिए प्रेरित कर रहे है. सिंचाई का ये तरीका पानी की बचत के साथ-साथ फसल की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है. आज बिहार के कई किसान ड्रिप सिंचाई करके अच्छा लाभ कमा रहे हैं.

बागवानी फसलों से मिली अच्छी पैदावार
बिहार में वैशाली जिले के अलीनगर लेवधन गांव के केला किसान रामजी सिंह भी ड्रिप सिंचाई अपनाने वाले किसानों में शामिल हैं. शुरुआत में रामजी सिंह परंपरागत विधियों से खेती करते थे. उन्होंने अपने खेत में बोरिंग करवाई और डीजल पंप के जरिए खेतों में पानी छोड़ते थे. इसमें डीजल की काफी लागत खर्च हो जाती थी.

इसमें मेहनत भी पूरी लगती थी और निगरानी की चिंता भी बढ़ जाती है, लेकिन अब रामजी सिंह ने अपने खेत में ड्रिप सिंचाई को अपनाकर अंतरवर्तीय खेती चालू कर दी है. अब रामजी सिंह केला के साथ-साथ पपीता की खेती भी करते हैं. वो बताते हैं कि पहले पानी काफी बर्बाद होता था, लेकिन पौधे की आवश्यकतानुसार पौधों की सिंचाई ड्रिप इरिगेशन के जरिए की जाती है.

गन्ना की बढ़ गई पैदावार
गन्ना की अच्छी उत्पादकता के लिए ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा दिया जा रहा है. बिहार के पश्चिमी चंपारण के किसान सचिन सिंह ने भी अपने खेतों में गन्ना की उत्पादकता को बढ़ा लिया है. सचिन सिंह बताते हैं कि पारंपरिक सिंचाई करने पर गन्ना की लंबाई छोटी रह जाती थी, लेकिन जब ड्रिप सिंचाई को अपनाया तो गन्ना की उत्पादकता में काफी बदलाव देखने को मिला.

ड्रिप सिंचाई से गन्ना की फसल में केन की लंबाई बढ़कर 18 से 19 फीट हो गई. सचिन सिंह ने बताया कि पहले खेतों में आवश्यकता से अधिक पानी जाता था तो फसल के साथ-साथ घास भी उग जाता थी, जिसकी सफाई में मजदूरों को 1200 से 1300 रुपये देने पड़ जाते थे, लेकिन ड्रिप के माध्यम से गन्ना की सिंचाई की तो सिर्फ फसल की जड़ों को ही पानी मिला और अनावश्यक घास उगनी कम हो गई. साथ ही गन्ना में 10 से 11 केनिंग होने लगीं.

कैसे अपनाएं ड्रिप इरिगेशन
बूंद-बूंद सिंचाई का ये नायाब तरीका ना सिर्फ पानी और पैसा बचाता है, बल्कि फसल की उत्पादकता को भी बढ़ा देता है. माइक्रो इरिगेशन के तहत ड्रिप सिंचाई सिस्टम लगाने के लिए सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PM Krishi Sinchai Yojana) चलाई है, जिसके तहत किसानों को योग्यता के हिसाब से 90 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है. ये सिस्टम लगवाने के लिए अपने जिले के नजदीकी कृषि विभाग के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते हैं.

यदि किसान के पास रजिस्ट्रेशन आईडी है तो आधार कार्ड के साथ-साथ खेत में समरसेबल बोरिंग भी होनी चाहिए. इन शर्तों के आधार पर आवेदन कर सकते हैं. ऑफिशियल पोर्टल पर अप्लाई करने के बाद 2 से 4 दिन के अदंर किसान का आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है और 8 से 10 दिन के अंदर किसान के खेत पर ड्रिप सिंचाई सिस्टम इंस्टॉल हो जाता है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

यह भी पढ़ें:- किसानों की हर छोटी-बड़ी समस्या का समाधान करेगा किसान कॉल सेंटर, इस नंबर पर फोन घुमाते ही मुश्किलों का निकलेगा हल

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