Crop Residue Management: भारत में अक्टूबर आते-आते पराली (Stubble) एक बड़ी समस्या बन जाती है. फसल के इस कचरे का सही निपटारा ना कर पाने के कारण कई किसान इसे आग की भेंट चढ़ा देते हैं. गैर कानूनी काम होने के बावजूद पराली जलती (Stubble Burning) है और पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षी और लोगों को भी स्वास्थ्य से जुड़ी समस्यायें हो जाती है. इससे मिट्टी की भी उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ता है.


हरियाणा सरकार (Haryana Government) इस समस्या की रोकथाम के लिये किसानों को प्रति एकड़ 1,000 रुपये का अनुदान भी दे रही है. इतने प्रयासों के बावजूद पराली जलाने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे. दूसरी तरफ राज्य के कैथल जिले में कई किसान ऐसे भी है, जो फसल अवशेष प्रबंधन (Crop Waste Management) करके 10 से 20 लाख रुपये तक की आमदनी ले रहे हैं. 


मशीनों से मिली खास मदद
अब किसानों को फसल अवशेष को निपटाने का एक इको फ्रैंडली विकल्प (Eco Friendly Solution for Stubble) मिल चुका है. इससे प्रदूषण को रोकथाम और किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है. ये विकल्प है कृषि मशीनीकरण का. जी हां, अब हरियाणा के कैथल जिले के कई किसान स्ट्रॉ बेलर मशीन के साथ चॉपर मशीन के साथ-साथ स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम के जरिये लाखों की आमदनी ले रहे हैं. जानकारी के लिये बता दें कि जहां बेलर मशीन से खेत में पड़ी पराली के बंडल बनाये जाते हैं. वहीं चॉपर मशीन पराली को जड़ से काटकर पूरे खेत में फैला देती है. 


फसल अवशेष प्रबंधन से आमदनी
कैथल जिले के किसान और ग्रामीण अब फसल अवशेष प्रबंधन के जरिये रोजगार का अवसर पैदा कर रहे हैं. यहां पराली के प्रबंधन में स्ट्रॉ बेलर मशीन और सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे एक ही सीजन में 10 लाख रुपये तक की आमदनी हो जाती है.


इन दोनों ही उपरकरणों को सब्सिडी पर खरीदकर किसान और ग्रामीण इन्हें दूसरे किसानों को किराये पर उपलब्ध करवाते हैं. जाहिर है कि धान की खेती बड़े-बड़े खेतों में की जाती है.  जहां बिना मशीनों के पराली प्रबंधन करना नामुमकिन है. ऐसी स्थिति में ये उपकरण ट्रैक्टर के साथ जोड़ दिये जाते हैं और किसान चंद समय में खेतों में फसल अवशेषों का प्रबंधन कर लेते हैं.


क्या है स्ट्रॉ बेलर और स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम
स्ट्रॉ बेलर (Straw Baler Machine) को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर इस्तेमाल किया जाता है. ये कंबाइन से धान और गन्ने की कटाई के बाद खेतों में बचे फसल अवशेषों को इकट्ठा करके उनकी गांठ बना देता है. इसके बाद इन गांठ-गठ्ठरों को इकट्ठा करके फैक्ट्रियों में बेच दिया जाता है. ये किसान के ऊपर निर्भर करता है कि वो फसल अवशेष प्रबंधन के बाद उसे बेचता है या किसी और काम में लेता है. 


सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (Super Straw management System) भी एक तरह का उपकरण है, जिसे कंबाइन (Combine Harvester Machine)के साथ जोड़कर फसल की कटाई के साथ-साथ इस्तेमाल किया जाता है. ये उपकरण फसल की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेषों को हाथोंहाथ छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता है और खेतों में मिला देता है. बाद में यही टुकड़े मिट्टी और फसल के साथ प्राकृतिक पोषण का काम करते हैं. इस तरह पराली जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती.


किसानों को भी फायदा
 बता दें कि धान की फसल कटाई (Paddy Crop Harvesting) के बाद प्रति एकड़ से करीब 20 क्विंटल पर फसल अवशेष (Crop Waste Management) निकलते हैं. इन अवशेषों को फैक्ट्रियों में 135 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बचा जाता है.


इस तरह करीब एक एकड़ से करीब 2700 रुपये और राज्य सरकार की सब्सिडी (Subsidy on Stubble Management)  मिलाकर प्रति एकड़ से करीब 1000 रुपये तक कमाई हो जाती है. इससे पर्यावरण को फायदा है ही, किसान और प्रशासन की चिंतायें भी दूर हो जाती है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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