Kharif Crop Farming: भारत में प्री-मानसून (Pre-Monsoon) की शुरुआत जोरदार बरसात से हुई, जिसके बाद मानसून (Monsoon 2022) के मजबूत रहने की अटकलें लगाई जाने लगी. लेकिन जून के अंत तक आते-आते किसानों की मुश्किलें बढ़ती दिखाई दे रही हैं. बेहतर बारिश के अनुमान के कारण जिन किसानों ने खरीफ फसलों (Kharif Crop Farming) की बुवाई-रोपाई आगे के लिये टाल दीं, वो बारिश में देरी से परेशान दिखाई दे रहे हैं. वहीं जिन किसानों ने समय से पहले फसलों की बुवाई का काम कर लिया था, उन्हें भी दोगुनी मेहनत के साथ दोबारा शुरुआत करनी पड़ेगी. इस बीच मौसम की बेरुखी का सबसे बुरा असर धान के किसानों (Paddy Farming) पर पड़ रहा है, जो बारिश का ताक में ठीक प्रकार खेती नहीं कर पा रहे. वहीं कुछ किसान धान की खेती (Paddy Cultivation) के लिये दूसरे सिंचाई के साधनों (Irrigation System) पर निर्भर हैं.




बारिश में देरी से परेशान किसान
पिछले साल के मुकाबले इस साल अच्छी बारिश का अनुमान जताया जा रहा था, लेकिन बारिश में देरी के कारण किसानों की मेहनत पर पानी फिरता जा रहा है. कुछ किसानों ने धान की फसल छोड़कर सोयाबीन, कपास और बागवानी फसलों की खेती शुरु कर दी है. इन परिस्थितियों से साफ नजर आ रहा है कि इस साल धान के उत्पादन में कमी आ सकती है. बता दें कि धान को भारत की प्रमुख नकदी फसल कहते हैं. वैसे तो कई राज्यों में साल भर धान की खेती की जाती है, लेकिन खरीफ सीजन में अच्छी बारिश के दौरान मध्य भारत, उत्तर पश्चिम और उत्तर भारत के किसान धान की फसल लगाते हैं. इस बार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा, तेलंगाना और उड़ीसा जैसे राज्यों में काफी कम बारिश देखी गई है, जिसका सीधा असर धान के उत्पादन पर पड़ सकता है.




कम होगा धान का रकबा
24 जून तक जारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल सिर्फ 19.59 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही धान की बुवाई-रोपाई का काम हुआ है, जो पिछली साल के मुकाबले लगभग 46% कमी को दर्शाता है. जानकारी के लिये बता दें कि साल 2021 के खरीफ सीजन में जून तक 36.03 लाख हेक्टेयर पर धान की रोपाई का काम हुआ था.


मौसम विभाग ने जारी किया ताजा अनुमान
भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले 1-25 जून तक दक्षिण-पश्चिम मानसून (Monsoon 2021)  में 5% की कमी देखी गई है. पिछली बार देश में 126.9 मिमी. सामान्य बारिश के मुकाबले सिर्फ 120.8 मिमी. बारिश हुई है. इसमें उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में सबसे कम बारिश(Slow Monsoon) देखी गई है. विशेषज्ञों की मानें तो धान की खेती (Rice Farming) के लिये शुरुआती 140-145 दिन की बारिश जरूरी होती है, क्योंकि इस बीच अगेती फसलों की बुवाई का काम किया जाता है. लेकिन बारिश में देरी से कुछ किस्में अच्छी पैदावार नहीं देतीं. जिससे किसानों को नुकसान हो सकता है. उम्मीद है कि जल्द मानसून होगा और किसान समय से अपनी फसलों की बुवाई का काम शुरु कर सकेंगे.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


इसे भी पढ़ें:-


Rice Farming Tips: धान की नर्सरी में कहीं कीड़ों की दावत न हो जाए, पौधशाला में डालें ये वाला कीटनाशक


Drip Irrigation Technique:कम सिंचाई में पायें दोगुनी कमाई, जानें टपक सिंचाई तकनीक के फायदे