Dwarfism Virus in Paddy: पंजाब और हरियाणा में ज्यादातर धान के खेतों में बौनापन का वायरस (Dwarfism Virus in Paddy Crop) फैलता जा रहा है. इस बीमारी के कारण धान के पौधों (Paddy Plants Disease) का आकार छोटा ही रह जाता है, जिसके चलते फसल का विकास नहीं हो पाता और उत्पादन में भी काफी कमी आ जाती है. इस मामले में आईएआरआई-पूसा संस्थान (ICAR-IARI, Pusa) के विशेषज्ञों की एक टीम भी वायरस प्रभावित इलाकों से पौधों के नमूने इकट्ठा करने में जुटी है.


इस मामले में संज्ञान लेते हुये कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) की ओर से समिति का गठन किया गया है. बौनापन के वायरस से ग्रसित पौधों के नमूनों के मुताबिक,  पीआर-126, पीआर-121, पीआर-114, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1401 आदि किस्मों में अधिक संभावनायें देखी गई है.


क्या कहते हैं विशेषज्ञ
धान की फसल में फैली इस महामारी को लेकर कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धान की जिन फसलों में बौनापन का रोग देखा गया है, वहां 5 से 15 प्रतिशत तक पौधों की आबादी का विकास नहीं हो पाता. 



  • वैसे तो यह समस्या कुछ चुनिंदा इलाकों में ही देखी गई है. इन इलाकों में धान के पौधों की लंबाई करीब 1 फीट तक पहुंच गई है, जिन्हें उखाड़कर अलग कर सकते हैं, ताकि बाकी फसलों पर बुरा असर ना पड़े. 

  • इतना ही नहीं, बौनापन से ग्रसत पौधों की जड़ों में भी कालापन देखा गया है, जिससे अंदाजा लगा सकते हैं कि पोषण की कमी और कमजोरी के कारण भी बौनापन का वायरस बढ़ता जा रहा है. 

  • विशेषज्ञों ने यह भी बताया कि यह समस्या सिर्फ पंजाब और हरियाणा की कुछ ही फसलों में सामने आई है. उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के दूसरे इलाकों में लगी धान की फसल एकदम स्वस्थ हैं. 


इस तरह करें रोकथाम
धान की फसल में फसल में बढ़ती बौनापन की बीमारी के कारण पंजाब और हरियाणा के किसानों को कम उत्पादन मिलने की चिंता सता रही है. कृषि विशेषज्ञ भी इस बीमारी के कारणों को पता लगाने के लिये रिसर्च कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई मजबूत समाधान सामने नहीं आया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि ये वायरस और बैक्टीरिया दोनों ही हो सकता  है. 



  • इस बीमारी के लक्षणों को कम करने के लिये ब्राउन प्लांट हॉपर, व्हाइट बैक प्लांट हॉपर, ग्रीन प्लांट हॉपर के नियंत्रण की सलाह दी जा रही है, क्योंकि ज्यादातर बीमारियां कीट-पतंगों के कारण ही फैलती हैं.

  • इन कीटों की रोकथाम के लिये पेक्सलॉन की 94 मिली मात्रा को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ खेत में छिड़काव कर सकते हैं.

  • किसान चाहें तो ओशीन और टोकन नामक दवा की 100 ग्राम मात्रा को 250 लीटर पानी पानी में घोलकर भी प्रति एकड़ खेत में प्रयोग कर सकते हैं.

  • धान की फसल में कीट नियंत्रण के लिये चैस दवा की 120 ग्राम मात्रा को 250 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ में इस्तेमाल करना फायदेमंद साबित हो सकता है.

  • विशेषज्ञों के मुताबिक, धान की अगेती या जल्दी बुवाई वाली फसलों में बौनापन वायरस (Dwarfism Virus in Early Sowing Paddy) की प्रबल संभावनाये होती है, इसलिये विशेषज्ञों की सलाहनुसार नियंत्रण कार्य करें.

  • इसके अलावा किसानों को रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizer)  का इस्तेमाल कम से कम करना होगा, क्योंकि इससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है फसल में भी विकृतियां पैदा होने लगती है.

  • धान की फसल में बौनापन के वायरस (Dwarfism Virus in Paddy Crop) या इस रोग जैसी विकृतियों की रोकथाम के लिये जैविक खेती (Organic Farming of Paddy) को अपनाना चाहिये.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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