Cotton Cultivation: दुनियाभर की महत्वपूर्ण फसलों में कपास की गिनती शीर्ष पर की जाती है.सबसे ज्यादा क्षेत्रफल में कपास की खेती करने में भारत अग्रणी देश है. बाजार मांग और अच्छी कीमतें मिलने के कारण भारत के किसान कपास की फसल को बड़े स्तर पर उपजाते हैं. जाहिर है कि कपास एक लंबी अवधि वाली नकदी फसल है, जिसकी खेती जल निकासी वाली काली मिट्टी में करने से अच्छी आमदनी प्राप्त होती है. फसल से अच्छी बढ़वार के लिये समय पर पोषण प्रबंधन करना बेहद जरूरी होता है.
ऐसे करें कपास की खेती
कपास की खेती से पहले खेत की तैयारी करना बेहतर रहता है. इसलिये खेत में गहरी जुताई करके समतलीकरण का काम कर लें. खेत में बुवाई से पहले मिट्टी की जांच जरूर करवायें और मिट्टी में जरूरत के अनुसार खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करें. विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार आखिरी जुताई के बाद एक एकड़ खाली खेत में एक क्विंटल नीम की खली , या पांच किलो नीम के बीजों का मिश्रण या नीम का तेल जरूर डालें. इससे फसल में बीमारी और कीड़ों का प्रकोप नहीं फैलता और स्वस्थ उपज प्राप्त होती है.
बुवाई का सही तरीका
भारत में कपास की बुवाई सिंचित और असिंचित दोनों ही अवस्थाओं में की जाती है. असिंचित खेतों में कपास की बुवाई के लिये क्यारियों को 3.5 फुट लंबा और 1.5 फुट चौड़ा बनायें. इन क्यारियों में पौध से पौध की दूरी 1.5 से 2 फुट रखना सही रहता है. वहीं सिंचित खेतों में क्यारियों की लंबाई और चौड़ाई 4-4 फुट रखकर पौधों की बुवाई 3.5 - 4 फुट की दूरी पर ही करें. बुवाई से पहले 4-5 फीट गहरा गड्ढा खोदकर उसमें गोबर की खाद और जिप्सम भर दें. जानकारी के लिये बता दें कि एक एकड़ जमीन पर कपास की खेती के लिये करीब जिप्सम के दो बैग और 10-15 क्विंटल गोबर की खाद का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है.
पोषण प्रबंधन और सिंचाई
कपास की बुवाई को मई से जून के बीच में की जाती है. ताकि जुलाई आते-आते बारिश के जरिये सिंचाई का प्रबंधन हो जाये. कपास की फसल में मिट्टी की जांच के आधार पर पोषण प्रबंधन का काम करें और जरूरत के अनुसार ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें. फसल की अच्छी बढ़वार के लिये एक हेक्टेयर में 50-70 किलो नाइट्रोजन और 20-30 किलो फॉस्फोरस का इस्तेमाल बेहतर रहता है. ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी बची मात्रा को निराई-गुड़ाई के समय डाल दें.
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