Stray Animal Control: ग्रामीण इलाकों में खेती-किसानी से ही तो आजीविका चलती है, लेकिन इसमें जोखिम भी बहुत है. कभी मौसम की मार झेलनी पड़ती है तो कभी छुट्टा पशुओं के आतंक से फसल बर्बाद हो जाती है. ऐसे तमाम समस्याओं से तंग आकर अब किसानों ने स्टेकिंग तकनीक से करेले की खेती (Bitter Gourd Farming) शुरू कर दी है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उन्नाव समेत यूपी के तमाम जिलों में अब स्टेकिंग विधि से बेलदार सब्जियों की खेती की जा रही है.


इस तकनीक में जमीन के बजाय कुछ ऊंचाई पर सब्जियों की बेल फैलाई जाती है. अब ना तो जमीन पर फसल रहेगी और ना ही पशु आकर फसल को खराब करेंगे. साथ ही इस तकनीक से फसल में जल भराव से सड़न-गलन का भी खतरा खत्म हो जाता है. उन्नाव के कई किसान आज इस तकनीक से करेला की खेती कर रहे हैं. किसानों ने बताया कि इस तरह करेला की खेती करके उड़द, दाल, मक्का जैसी तमाम पारंपरिक फसलों से अच्छी आमदनी हो जाती है. 


इस तरह होती है स्टेकिंग फार्मिंग


स्टेकिंग फार्मिंग को मचान विधि भी कहते हैं. बेलदार सब्जियों की खेती के लिए ये विधि किसी वरदान से कम नहीं है. इस ढांचे को बनाने के लिए खेत में उचित दूरी पर लकड़ी या बांस लगाए जाते हैं और उन पर तार बांधे जाते हैं. इस तकनीक से खेती करने के लिए सब्जियों की पौध अलग से तैयार होती है, जब बेल बड़ी हो जाती हैं तो इस मचान के सहारे विकसित किया जाता है और तार पर फैला देते है. इस तरह बेलों को मिट्टी से पोषण मिलता है और जमीन से ऊपर रहने के चलते सब्जियां भी खराब नहीं.


इस विधि से खेती करने पर फसल की निगरानी आसान हो जाती है और खरपतवारों की समस्या नहीं रहती. विशेषज्ञों की मानें को मचान विधि से सब्जियों की खेती (Vegetable Farming) करने पर कीट-रोगों का खतरा भी कम ही रहता है. इस तरह किसान एक सीजन में 2 से 2.5 लाख तक का मुनाफा कमा सकते हैं, जो पारंपरिक फसलों से कहीं ज्यादा है, हालांकि बिहार के कई किसान ऐसे भी हैं, जो स्टेकिंग पर बेलदार सब्जियों की खेती के साथ-साथ जमीन पर भी फसलें लगाते हैं. इस तरह कम लागत में अलग-अलग फसलों का उत्पादन मिल जाता है.


औषधीय फसलों की खेती करें


बता दें कि लेमन ग्रास और एलोवेरा जैसी कई तमाम औषधीय फसलों की काफी डिमांड रहती है. ये फसलें कम देखभाल में ही अच्छा मुनाफा देती है. सबसे अच्छी बात ये है कि इनके बेस्वाद और तेज महक के कारण आवारा-छुट्टा पशु भी इन फसलों के आस-पास नहीं आते. किसान चाहें तो पारंपरिक या सब्जी फसलों के साथ भी खेत के चारों तरफ ये फसलें लगा सकते हैं. एलोवेरा, लेमनग्रास और ऐसी तमाम सब्जियों की खेती के लिए सरकार आर्थिक अनुदान भी देती है. औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती के लिए राष्ट्रीय अरोमा मिशन चलाया जा रहा है. 


कंटीली तारबंदी पर प्रतिबंध


अभी तक खेत-खलिहान को जंगली जानवर और छुट्टा पशुओं से बचाने के लिए किसान तारबंदी करवाते थे. ये तरीका खर्चीला तो था ही, साथ ही पशुओं को भी चोट लगने की संभावना रहती थी. यही कारण है कि सरकार ने तारबंदी के लिए कंटीले तार का प्रयोग 'पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960' (Prevention of Cruelty to Animals Act 1960) के तहत प्रतिबंधित करार दिया है. यदि कोई भी किसान कंटीली तारबंदी करता पाया जाता है तो सरकार ने कार्रवाई और सजा का भी प्रावधान किया है. ऐसे में अब किसान सिर्फ रस्सी या दूसरे कम चोटिल तरीकों का ही इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसे में स्टेकिंग विधि से खेती करने पर किसानों को काफी फायदा हो सकता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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