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तेजी से खत्म हो रहे हैं खेत...सदी के अंत तक नहीं बचेंगे असली किसान, पढ़ें रिपोर्ट

रिसर्च के मुताबिक, जब खेतों की संख्या कम होगी तो किसानों की संख्या भी कम हो जाएगी. आज जितने लोग किसानी कर रहे हैं एक सदी के बाद उनकी संख्या गिरकर ना के बराबर रह जाएगी.

अगर हाल फिलहाल में आप गांवों की तरफ गए होंगे तो आपको एक सन्नाटा दिखाई दिया होगा. हर तरफ एक अजीब सी मायूसी होगी. लोग अब दोपहर में ताश खेलते गांव में नहीं मिलते, शाम को गांव में लोगों के घरों के बाहर पहले की तरह खाट नहीं बिछती और ना ही दिखते हैं वो लोग जो शाम की रौनक हुआ करते थे. सब गायब हो गए हैं. गांव में अब सिर्फ औरतें, छोटे बच्चे और बूढ़े... बस यही दिखते हैं. लगता है जैसे गांव का सारा जवान खून शहर के उन मिलों में जल रहा है जो काला धुंआ फेंकती हैं. ये तमाम लोग किसान थे... आज शहरों में मजदूर हैं. अब जो रिपोर्ट आई है उसके मुताबिक, एक सदी बाद जो आज गांवों में बूढ़े और थोड़े किसान बचे हैं वो भी खत्म हो जाएंगे.

क्या कहती है रिपोर्ट?

डाउन टू अर्थ में छपी एक खबर के अनुसार, यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलोराडो बोल्डर ने एक शोध किया है और इसके नतीजे नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुए हैं. इस रिपोर्ट की मानें तो साल 2020 तक दुनियाभर में खेतों की कुल संख्या 61.6 करोड़ थी जो एक सदी बाद घट कर 27.3 करोड़ रह जाएगी. यानी इसमें साफ-साफ 56 फीसदी की गिरावट देखी जाएगी. इस रिपोर्ट के अनुसार खेतों की संख्या में कमी सिर्फ अमेरिका या यूरोप में ही नहीं बल्कि, एशिया और अफ्रीका में भी देखने को मिलेगा.

किसान भी हो जाएंगे कम

रिसर्च के मुताबिक, जब खेतों की संख्या कम होगी तो किसानों की संख्या भी कम हो जाएगी. आज जितने लोग किसानी कर रहे हैं एक सदी के बाद उनकी संख्या गिरकर ना के बराबर रह जाएगी. सबसे बड़ी बात तो ये है कि अगर युवा लोग किसानी की तरफ नहीं आए तो फिर पीढ़ियों से जो खेती किसानी की कला और तरीके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचते हैं वो भी कहीं विलुप्त हो जाएंगे.

लोगों पर कितना पड़ेगा इसका असर

जब खेतों की संख्या कम होगी, किसानों की संख्या कम होगी तो जाहिर सी बात है उपज भी कम होगी. ऐसे में इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ेगा. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आज दुनिया में एक तिहाई अनाज का उत्पादन सीमान्त किसान करते हैं. जबकि इन छोटे और सीमांत किसानों के पास दुनिया की केवल 12 फीसदी कृषि भूमि ही है. खाद्य और कृषि संगठन (AFO) के अनुसार, दुनिया के 70 फीसदी खेत एक हेक्टेयर से भी छोटे हैं. वहीं भारत की बात करें तो यहां लगभग 14.6 करोड़ खेत हैं, जबकि देश में 15.7 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि है. वहीं भारत में लगभग 86 फीसदी खेती वाली जमीन 2 हेक्टेयर से भी छोटे हैं.

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