Oilseeds Farming: देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए देश में ही तिलहनी फसलों की खेती पर जोर दिया जा रहा है. हमेशा से ही देश में खाद्य तेलों की अच्छी-खासी डिमांड रही है. बढ़ती खपत के चलते दूसरे देशों से भी कई खाद्य तेल आयात करना पड़ता है, लेकिन तिलहन के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) योजना चलाई है. पहले ये खेती सिर्फ वर्षावनों तक ही सीमित थी, लेकिन आज भारत के 15 से अधिक राज्यों के 50,000 हेक्टेयर से अधिक रकबे में पाम ऑइल की खेती की जा रही है. 12 महीने में 24 बार प्रोडक्शन देने वाली पाम की खेती करके 6 से 7 साल हार्वेस्टिंग ले सकते हैं. इन दिनों पूर्वोत्तर राज्यों में भी पाम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. पाम की नर्सरी से लेकर खेती तक के सरकार आर्थिक सहायता देती है.


क्यों करें पाम की खेती


भारत में तेल की खपत का कुल 56% हिस्सा विदेशों से आयात हो रहा है. इस आयातीत तेल में 80 फीसदी पाम का तेल ही होता है. इतनी बड़ी मात्रा में तेलों के आयात को कम करने और स्वदेशी तेल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पाम की खेती को बढ़ावा मिल रहा है. इस फसल में कीट-रोग का खतरा भी कम होता है, इसलिए कम लागत और कम नुकसान में ही पाम की खेती से बंपर मुनाफा कमा सकते हैं. अच्छी बात ये है कि जानवर भी इस फसल को बर्बाद नहीं करते. कई मायनों में पाम की खेती विदेशी मुद्रा की बचत के लिए भी जिम्मेदार है. भारत में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, असम, केरल, गुजरात, गोवा, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल और अंडमान द्वीप समूह में पान की खेती प्रमुखता से हो रही है.


सरकार देती है पैसा


पाम की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य तेल तेल-पाम ऑइल मिशन चलाया है. इस स्कीम के तहत सबसे ज्यादा तेल उत्पादन देने वाली पान की फसल का रकबा 40 फीसदी तक बढ़ाने का लक्ष्य है. मिशन पाम ऑइल के तहत ताड़ यानी पाम के पेड़ की रोपाई करने के लिए सरकार 29,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान देती है. पहले अनुदान की रकम 12,000 रुपये प्रति हेक्टेयर थी. इसके अलावा, पुराने पेड़ों की देखभाल और जीणोद्धार के लिए भी 250 रुपये प्रति पेड़ की आर्थिक सहायता दी जाती है. इस तरह पाम की खेती के खर्च का बोझ सीधा किसानों पर भारी नहीं पड़ता.


पाम की नर्सरी के लिए भी अनुदान


केंद्र सरकार के मिशन पाम ऑइल के जरिए हर साल 11 हजार पौधों की रोपाई की जा रही है. मिशन पाम ऑयल स्कीम के तहत अगर कोई किसान या नर्सरी में पाम के बीजों से पौधे तैयार किए जाते हैं तो उसे भी सरकार आर्थिक मदद देगी. करीब 15 हेक्टेयर के लिए 80 लाख रुपये की आर्थिक मदद का प्रावधान है. पूर्वोत्तर राज्य और अंडमान में 15 हेक्टेयर नर्सरी के लिए 1 करोड़ रुपये दिए जाते हैं. इसके अलावा, बीजों से बाग तैयार करने के लिए 40 लाख रुपये और अंडमान-पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 50 लाख रूपये की राशि निर्धारित की गई है. एक तरह से देखा जाए तो तटीय इलाकों के लिए कम खर्च में ही काम की खेती बंपर मुनाफा दे सकती है.


कितना है उत्पादन


कृषि मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि भारत में अभी 3.5 लाख टन हेक्टेयर रकबा में पान की खेती की जा रही है, जिसे मिशन पाम ऑइल के जरिए साल 2025-26 तक बढ़कर 6.5 लाख हेक्टेयर से आगे ले जाने का  लक्ष्य है.इस स्कीम के जरिए अगले 2 साल में पूर्वी तटीय राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, असम, त्रिपुरा और मिजोरम में पाम की खेती का विस्तार करने का प्लान है. इस काम में  गोदरेज, एग्रोवेट, पतंजलि फूड्स और 3एफ आयल पाम एग्रोटेक इंडस्ट्रीज तक अहम रोल अदा कर रही है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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