GI Tag in Agriculture: हाल ही में भारत सरकार ने 4 राज्यों के 9 उत्पादों को भौगोलिक संकेत यानी GI Tag दिया है. अच्छी बात यह भी है कि इनमें से 8 उत्पाद तो कृषि क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. साल 2022 के लिए सबसे ज्यादा जीआई टैग केरल को मिले हैं. लद्दाख, असम, महाराष्ट्र और तेलंगाना के भी एक-एक उत्पाद को भौगोलिक संकेत यानी Geographical Indications के तहत पंजीकृत किया गया है. इसी के साथ भारत में जीआई टैग की कुल संख्या 432 हो गई है, जिसमें से 401 भारत के ही देसी उत्पाद है. बाकी 31 विदेशी मूल के उत्पाद, जिन्हें भारत की ओर से जीआई टैग मिला है.
इन 9 उत्पादों को मिला जीआई टैग
भौगोलिक संकेत Latest Geographical Indication (GI) Tag |
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राज्य (State) |
उत्पाद (Product) |
असम |
असमिया गमोचा |
लद्दाख |
रक्तसे कार्पो खुबानी |
महाराष्ट्र |
अलीबाग सफेद प्याज |
तेलंगाना |
तंदूर रेड ग्राम |
केरल |
अट्टापडी थुवारा- चना |
केरल |
कंथलूर वट्टावाड़ा वेलुथुल्ली- लहसुन |
केरल |
कोडंगल्लूर पोट्टुवेलारी- स्नैप मेलन |
केरल |
अट्टापडी अट्टुकोंबु अवारा- डोलिचोस बीन्स |
केरल |
ओनाटुकारा एलु- तिल |
असमिया गमोचा, असम
भारत सरकार ने साल 2017 शुरुआती आवेदन के बाद असम के मशहूर गमोचा या गमोसा को जीआई टैग दिया है. ये एक हाथ से बना सूते कपड़े का गमछा है, जिसमें लाल बॉर्डर होता है. इस गमछे को धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में असम के पुरुष और महिलाएं पहनते हैं.
अलीबाग सफेद प्याज, महाराष्ट्र
महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले की अलीबाग तहसील में उगाए जाने वाले अलीबाग सफेद प्याज को भी जीआई टैग मिला है.इस सफेद प्याज की खास बात ये है कि ये पारंपरिक वैरायटी है, जिसमें तेज गंध नहीं आती और इसका स्वाद भी मीठा होता है. महाराष्ट्र एक प्रमुख प्याज उत्पादक राज्य है, ऐसे में अलीबाग सपेद प्याज को जीआई टैग मिलने से देश-विदेश में इसकी लोकप्रियता बढ़ेगी और किसानों को भी अच्छी आमदनी मिलने लगेगी.
रक्तसे कार्पो खुबानी, लद्दाख
लद्दाख की खुबानी तो दुनियाभर में मशहूर है. अब यहां की रक्तसे कार्पो खुबानी को भी जीआई टैग मिल गया है. इस खुबानी में सफेद बीज वाले पत्थरों के साथ एक विशेष बीज होता है, जबकि पूरी दुनिया में खुबानी के अंदर का बीज भूरे रंग के बीज पत्थर होते हैं.
तंदूर रेड ग्राम, तेलंगाना
तेलंगाना की तंदूर लाल एक वर्षा आधारित पारंपरिक दलहनी फसल है. ये अरहर दाल की वैरायटी है, जिसमें साधारण दान के मुकाबले 3 गुना ज्यादा यानी करीब 24% प्रोटीन होता है. तेलंगाना की गहरी काली खनिज से भरपूर मिट्टी ही इस दाल की क्वालिटी को बेहतर बनाती है. तेलंगाना के चार जिलों में तंदूर रेड ग्राम की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
अट्टापडी थुवारा- लाल चना, केरल
अट्टापडी थुवारा यानी अट्टापडी लाल चना की खेती केरल के पल्लकड़ जिले में अट्टापडी आदिवासी बहुल इलाकों में उगाया जा रहा है. ये यहां की पारंपरिक फसल है. यह एक झाड़ीदार दाल की फसल है, जो सालभर उगाई जाती है.
ओनाटुकारा एलू-तिल, केरल
ओनाटुकारा एलू, तिल की एक वैरायटी है, जो ओनाटुकारा इलाके में उगाई जा रही है.ये एक बेहद पुरानी पारंपरिक तिलहनी फसल है, जो सालभर उगाई जाती है.
अट्टापडी अट्टुकोंबू अवारा- डोलिचोस बीन्स, केरल
केरल के आदिवासी बहुल इलाकों में कई पारंपरिक फसलों की खेती की जाती है. डोलिचोस बीन्स भी उन्हीं में से एक है. केरल के ज्यादातर आदिवासी किसान इस फसल की खेती करके आजीविका कमाते हैं.
कंथलूर वट्टावाड़ा वेलुथुल्ली-लहसुन, केरल
केरल के कंथलूर और वट्टावाड़ा पंचायतों में पैदा होने लहसुन एक पारंपरिक फसल है. देश के दूसरे इलाकों में उगाए जा रहे लहसुन के मुकाबले इस लहसुन में विशिष्ट स्वाद, तीखापन औप अच्छी शेल्फ लाइफ भी है. इसे लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है. कंथलूर और वट्टावाड़ा में लहसुन की दो वैरायटी शामिल हैं,जिन्हें सिंगापूंडू और मलाइपूंडू शामिल है.
क्या है भौगोलिक संकेत (GI Tag)
एक भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो अपने स्थान के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होते हैं. ये उत्पाद अपनी क्वालिटी, मूल, प्रोडक्शन या अपनी प्रतिष्ठा के लिए मशहूर होते हैं. स्थानीय उत्पादों को जीआई टैग प्रदान करने से देश-विदेश में पहचान मिलती है, इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी खुलते हैं. इनके प्रचार-प्रसार और जागरुकता गतिविधियों के लिए 3 साल के लिए 75 करोड़ के खर्च को मंजूरी मिली है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.