फर्टिलाइजर पर सब्सिडी से भी किसानों को फायदा....फिर क्यों चिंता में है सरकार, कारण जानकर रह जाएंगे दंग
Chemical Fertilizer: रसायनिक उर्वरकों पर मिल रही सब्सिडी से खेती की लागत बेशक कम हो गए है, लेकिन इसकी बढ़ती खपत आगे चलकर किसान और पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकते हैं.
Fertilizer Usage: कृषि में खाद-उर्वरक का बेहद अहम रोल है. वैसे तो मिट्टी की जांच के आधार पर ही संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करने की हिदायत दी जाती है, लेकिन इन दिनों उर्वरकों पर लागू सब्सिडी होने से इसकी खपत बढ़ गई है. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद किसान अब मिट्टी और फसल की आवश्यकता से अधिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर रहे हैं. अनुमान लगाया जा रहा है कि उर्वरकों की ये बढ़ती खपत अब सब्सिडी की रकम को भी 39 फीसदी तक बढ़ाकर 2.25 करोड़ पहुंचा सकती है.
अगर अनुमान सही साबित होता है तो इसका बुरा असर किसानों पर ही पड़ेगा. आवश्यकता से अधिक रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करने पर मिट्टी अपनी उपजाऊ शक्ति हो देती है, जिससे फसल की उत्पादकता भी कम हो जाती है. ये किसानों की आय को दोगुना करने के सपने पर विराम लगा सकती है. यही वजह है कि इस चिंता को खत्म करने के लिए सरकार ने एक नेचुरल प्लान बनाया है, जो ना सिर्फ इन उर्वरकों की खपत को कम करेगा, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा की गारंटी के साथ फसलों का उत्पादन भी बढ़ाएगा. आइए जानते हैं इस प्लान के बारे में.
किसानों की आय बढ़ाने का क्या है फ्यूचर प्लान?
रसायनिक उर्वरकों के बढ़ते इस्तेमाल, मिट्टी की कम होती उर्वरता और फसलों की उत्पादकता में गिरावट के लिए सरकार का 'ऑल इन वन प्लान' है प्राकृतिक खेती (Natural Farming). इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि खेती में हो रहा अंधाधुंध खर्च तुरंत कम हो जाएगा. इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लौट आएगी और फसल से एक दम प्योर प्रोडक्शन भी मिलने लगेगा.
इससे सरकार द्वारा केमिकल उर्वरकों पर दी जा रही लाखों करोड़ की सब्सिडी (Chemical Fertilizer Subsidy) का बोझ भी कम पड़ेगा. इस मामले पर हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि रसायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता लगातार कम हो रही है, जिसके समाधान के रूप में अब जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
फर्टिलाइजर की बढ़ती खपत बढ़ा रही सरकार की चिंता
पिछले कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है. एक तरफ मौसम की अनिश्चितताओं से फसल में नुकसान हो रहा है. वहीं दूसरी तरफ रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल भी बढ़ता जा रहा है. बेशक किसानों को राहत प्रदान करने के लिए सरकार ने केमिकल फर्टिलाइजर पर सब्सिडी प्रदान की है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में फर्टिलाइजर की कीमतें बढ़ने से अब सरकार का बिल भी बढ़ता जा रहा है.
ताजा आंकड़े बताते हैं कि पिछले 5 सालों में (2017-18 से लेकर 2021-22 तक) केमिकल फर्टिलाइजर की खपत 21 फीसदी तक बढ़ गई है. सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले फर्टिलाइजर में यूरिया, एमओपी, डीएपी, एनपीके का नाम टॉप पर आता है. आंकड़ों की मानें तो साल 2017-18 के बीच खेती में 528.86 लाख टन केमिकल फर्टिलाइजर का प्रयोग हुआ, लेकिन साल 2021-22 तक इन उर्वरकों की खपत बढ़कर 640.27 लाख टन तक पहुंच गई है.
इन राज्यों में हो रहा इनोवेशन
कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मिट्टी में गिरती जैविक कार्बन की मात्रा को लेकर चिंता व्यक्त की थी और बताया था कि इस समस्या के समाधान के लिए मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाना होगा. इस काम में प्राकृतिक खेती बेहद मददगार है और ये पर्यावरण के लिए भी अच्छी बात है. कृषि मंत्री ने बताया कि आज कई राज्यों में प्राकृतिक खेती से जुड़े इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है.
आंध्र प्रदेश से लेकर गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु समेत 17 राज्यों ने प्राकृतिक खेती का रकबा 4.78 लाख हेक्टेयर और बढ़ा दिया है. इस काम में राज्यावर किसानों की मदद के लिए केंद्र सरकार ने प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Natural Farming) की शुरुआत की है, जिसके तहत 1,584 करोड़ रुपये के खर्च का प्रावधान है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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