Process Of Green Beans Cultivation: भारत में हरी सब्जियों की खेती (Green Vegetables Farming) बड़े पैमाने पर की जाती है. इन्हें पोषण का दूसरा नाम कहते हैं, इसलिये बाजारों में इनकी मांग बनी रहती है. बात करें हरी फलियों के बारे में तो सेम का स्थान बाकी सब्जियों (Green Beans Farming) से काफी अलग है. इसकी खेती करके किसान सिर्फ 70 से 80 दिनों में मोटी आमदनी कमा सकते हैं. इसके स्वाद और सेहत के गुणों से भारतीय थाली को सजाया जाता है, साथ ही इससे अचार और तरह-तरह के व्यंजन भी बनाये जाते हैं. फिलहाल भारत में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व तमिलनाडु समेत कई राज्यों के किसान सेमफली की खेती (Breen Beans Cultivation) करके अच्छा पैसा कमा रहे हैं. 


ये हैं सेमफली की उन्नत किस्में (Improved varieties of Green beans)
सेमफली की फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिये इसकी कई देसी और विदेशी किस्मों से खेती करने का चलन है. भारत में पूसा अर्ली, काशी हरितमा, काशी खुशहाल (वी.आर.सेम- 3), बी.आर.सेम-11, पूसा सेम- 2, पूसा सेम- 3, जवाहर सेम- 53, जवाहर सेम- 79, कल्याणपुर-टाइप, रजनी, एचडी- 1, एचडी- 18 और प्रोलिफिक आदि किस्में किसानों के बीच काफी लोकप्रिय हैं.




ध्यान रखने योग्य बातें (Important things for Green Beans Cultivation) 
सेम की फलियां लंबी, चपटी, टेड़ी, हरे और पीले रंग की होती है, जिन्हें उगाने के लिये ठंडी जलवायु की जरूरत होती है.



  • ध्यान रखें कि पाला पड़ने से सेमफली की फसल में नुकसान की संभावना रहती है, इसलिये जुलाई से लेकर अगस्त और फरवरी से लेकर मार्च तक इसकी उन्नत किस्मों से खेती कर सकते हैं. 

  • इसकी खेती के लिये दोमट, चिकनी व रेतीली मिट्टी उपयुक्त रहती है, जिसमें जल निकासी की व्यवस्था करके ही बिजाई करना चाहिये.

  • बता दें कि क्षारीय व अम्लीय भूमि में सेमफली का उत्पादन नहीं ले सकते हैं, 5.3 – 6.0 पीएम मान वाली मिट्टी  में ही सेमफली की फसल अच्छे से जम जाती है.

  • कम सिंचाई की उपयोगिता वाली सेमफली की खेती बैड, मेड़ या ऊंची क्यारियां बनाकर भी कर सकते हैं. 


सेमफली की खेती (Green Beans Farming)
एक हेक्टेयर जमीन पर सेमफली की खेती के लिये 20 से 30 किलोग्राम बीजों की जरूरत पड़ती है, जिन्हें उपचार करके ही बोना चाहिये.



  • सेमफली की खेती के लिये  5 मीटर की चौड़ी क्यारियां बनाएं और 2 फीट की दूरी पर कम से कम 2 से 3 सेमी की गहराई में बीजों को लगायें

  • इस प्रकार बिजाई के सप्ताहभर के अंदर ही पौधे विकसित हो जाते हैं. इस समय खेतों में नमी बनाये रखना भी जरूरी है. 

  • सेमफली की फसल के बेहतर प्रबंधन के लिये पौधों की लंबाई 15 से 20 सेंटीमीटर तक होने पर एक स्थान पर सिर्फ एक ही पौधा लगायें  और बाकी पौधों को उखाड़ फेंके.

  • अच्छे उत्पादन के लिये इन पौधों को बांस की बल्लियों या जालियों का सहारा दें, जिससे खरपतवार के साथ-साथ कीट-रोग की निगरानी में भी आसानी रहेगी.




सेमफली फसल की निगरानी और देखभाल (Green Beans Crop Management) 
रबी सीजन में सेमफली की खेती के लिये अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती, सप्ताह में एक बार पानी लगाने पर ही काम चल जाता है. 



  • खरीफ सीजन में भी बारिश होने पर सिंचाई नहीं की जाती, बाकी मिट्टी में नमी बनाये रखना बेहद जरूरी होता है.

  • बेहतर उत्पादन के लिये मिट्टी की जांच के आधार पर ही खाद-उर्वरकों का प्रयोग करें और जुताई के समय प्रति हेक्ट्यर खेत में 150 से 200 क्विंटल गोबर की खाद या कंपोस्ट के साथ नाइट्रोजन: फास्फोरस : पोटाश (NPK Fertilizer) भी डालें.

  • बांस की बल्लियों और जालियों की मदद से सेमफली के पौधों को सहारा देकर जड़ों पर मिट्टी चढ़ायें, जिससे खरपतवारों की संभावना ना रहे.


सेमफली की खेती में रोग-कीट नियंत्रण (Disease and pest prevention in bean cultivation)
वैसे तो कम अवधि की फसल होने के कारण सेमफली में कीट-रोगों की संभावना कम ही रहती है, लेकिन बदलते मौसम में फफूंदी रोगों का खतरा बढ़ जाता है. इस समस्या की रोकथाम के लिये बीज उपचार करके ही उन्नत किस्म के बीजों से खेती करनी चाहिये.  सेमफली की फसल में चैपा और बीन बीटल जैसे कीटों की रोकथाम के लिये क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी की 3 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर फसल पर छिड़कते रहें.  



80 दिनों में बंपर उत्पादन
सही मिट्टी, जलवायु, सिंचाई व्यवस्था समेत सभी प्रबंधन कार्य ठीक प्रकार से करने पर फसल से 100 से 150 क्विटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन (Green Beans Production in India) ले सकते हैं.  



  • भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (ICAR-Indian Institute of Vegetable Research, Varanasi) के वैज्ञानिकों ने सेमफली की कम अवधि वाली 4 किस्में विकसित की हैं, जो 70 से 80 दिन ही पककर तैयार हो जाती है. 

  • कम अवधि वाली उन्नत किस्मों में वीआर बुश सेम-3, वीआर बुश सेम-8, वीआर बुश सेम-9 और वीआर बुश सेम-18 शामिल है. 




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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