Pumpkin Cultivation: भारत के किसान उन सब्जियों की खेती (Vegetable Farming in India) को अहमियत दे रहे हैं, जो कम समय में अधिक मुनाफा दे सकें और कम मेहमत में ही अधिक उत्पादन मिल सके. इन्हीं सब्जियों में शामिल है कद्दू, जिसकी सब्जी से लेकर बीजों (Pumpkin Seeds) तक बाजार में काफी डिमांड रहती है. ये खेती के लिहाज से तो मुनाफेदार है ही, इससे सेहत को भी कई अनोखे फायदे मिलती है. जहां इसके बीज (Pumpkin Seeds Benefits) प्रोटीन से भरपूर होते हैं, तो इसके फलों का इस्तेमाल सब्जी और मिठाईयां बनाने में किया जाता है. यही कारण है कि कद्दू की व्यावसायिक खेती (Commercial farming of Pumpkin) करके किसान अच्छी आमदनी कमा सकते हैं.
ये हैं कद्दू की उन्नत किस्में
कददू की खेती से अच्छी आमदनी कमाने के लिये जरूरी है कि इसकी उन्नत किस्मों (Advanced Varieties of Pumpkin) से खेती की जाये. बात करें इसकी सबसे खास बीजों की किस्म के बारे में तो पूसा विशवास, पूसा विकास, कल्यानपुर पम्पकिन-1, नरेन्द्र अमृत, अर्का सुर्यामुखी, अर्का चन्दन, अम्बली, सीएस 14, सीओ 1 और 2, पूसा हाईब्रिड 1 और कासी हरित कददू आदि किसानों के बीच काफी लोकप्रिय है.
इन देसी किस्मों के अलावा पैटीपान, ग्रीन हब्बर्ड, गोल्डन हब्बर्ड, गोल्डन कस्टर्ड, और यलो स्टेट नेक जैसी विदेशी किस्मों छोटे और सीमांत किसानों के लिये फायदमंद साबित हो सकती हैं.
इन राज्यों में होती है खेती
वैसे तो उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई राज्यों के किसान कद्दू की खेती रहे हैं, लेकिन तमिलनाडु, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश को इसके बड़े उत्पादक के तौर पर जानते हैं.
इस समय करें कद्दू की खेती
खेती का सही समय कद्दू की खेती के लिये गर्म-शुष्क जलवायु बेहतर रहती है, इसलिये खरीफ सीजन में इसकी बुवाई करने की सलाह दी जाती है. इसके अलावा कद्दू की बढ़वार के लिये पाला रहित समय भी बढिया रहता है, जिसमें बिना कीट-रोग की समस्या के अच्छा उत्पादन ले सकते हैं.
खेत की तैयारी
कद्दू की खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी ही सबसे उपयुक्त होती है, जिसमें मिट्टी की जांच जरूर करवानी चाहिये. इससे सही मात्रा में बीज, खाद, उर्वरक और सिंचाई की व्यवस्था की जा सके.
- सबसे पहले खेत की तैयारी करें और प्रति हेक्टेयर खेत में 40-50 क्विंटल सड़े हुए गोबर की खाद और 20 किलो ग्राम नीम की खली डालकर मिट्टी को तैयार करें
- अच्छी पैदावार के लिये मिट्टी में 30 किलो अरंडी की खली मिलाने की सलाह दी जाती है.
- इसकी बुवाई के लिये 250 ग्राम प्रति एकड़ बीज काफी रहते हैं, जिनका बीजोपचार करके ही बिजाई और रोपाई का काम करना चाहिये.
- दीमक और खरपतवारों से फसल को मुक्त रखने के लिये बुवाई के 20-25 दिनों के अंदर नीम के तेल में गौमूत्र मिलाकर प्रति हेक्टेयर फसल पर छिड़काव करें.
- कीट-रोगों की रोकथाम के लिये जैव छिड़काव की ये विधि हर 15 से 20 दिनों में अपनाते रहना चाहिये.
कद्दू की फसल में प्रबंधन
कद्दू के बेहतर उत्पादन के लिये गर्मी के दिनों में हर 8-10 दिन बाद सिंचाई कार्य करते रहें.
- खेत को खरपतवारों से मुक्त रखने के लिये 3-4 बार निराई-गुड़ाई का काम भी कर सकते हैं, जिससे कि पौधों और बेलों की अच्छी बढ़वार हो सके.
- कद्दू की फसल में अलग से पोषण प्रबंधन की जरूरत नहीं होती. कीट-रोगों के लक्षण दिखने पर भी जैव कीट नियंत्रण कर सकते हैं.
कद्दू की खेती से लागत और मुनाफा
वैसे तो कद्दू एक सामान्य फसल है, जिसके खेती में ज्यादा लागत नहीं आती. सिर्फ 3000 रुपये प्रति हेक्टेयर खर्चा करके 250 से 300 क्विटल तक फलों का उत्पादन (Pumpkin Production) ले सकते हैं. इसकी व्यावसायिक खेती करने पर अधिक लाभ होता, क्योंकि कम खर्च में फसल जल्दी (Short Term Vegetable Farming) पक जाती है और प्रति क्विंटल उपज से 5000 और प्रति हेक्टेयर में 20 से 25 हजार रुपये कमा सकते हैं.
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