Kulfa Cultivation in Terrace Garden: कुल्फा एक औषधीय पौधा (Medicinal Plant)  है, जो जंगल में रहने वाले लोगों के खान-पान से लेकर औषधीय दवायें बनाने में भी काम आता है. ये एक पत्तेदार पौधा या सब्जी होती है, जिससे कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं. इसके औषधीय गुणों के कारण कुल्फा (Purslane Plant) की खपत काफी बढ़ गई है, इसलिये किसानों ने इसकी सह-फसली खेती (Co-Cropping) करना शुरु कर दिया है. बता दें कि कुल्फा को उगाना कोई मुश्किल काम नहीं है, ये पत्तेदार सब्जी बेहद कम मेहनत में बेहतर उत्पादन और बढ़िया पैसा दिलवा सकती है.


कुल्फा की खेती (Purslane Farming) 
कुल्फा एक पत्तेदार पौधा है, जिसकी पत्तियां गोल होती है. इस पौधे पर छोटे पीले रंग के फूल उगते हैं, जो बाद में कैप्सूल जैसे फलों का रूप ले लेते हैं. इन्हीं फलों से कुल्फा के चमकीले बीज मिलते हैं, जो खेती में काम आते हैं. बता दें कि ये पौधा धूप की तेज तपिश में भी डटकर खड़ा रहता है, इसलिये इसकी खेती ज्यादातर गर्मियों में की जाती है. जो किसान खरीफ सीजन की फसलें उगा रहे हैं, वे कुल्फा की सह फसली खेती कर सकते हैं.




विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताई कुल्फा की खासियत (WHO Reveals Herbal Qualities of Purslane)
कुल्फा कोई साधारण पौधा नहीं है. विटामिन, आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और मिनरल्स से भरपूर इसकी पत्तियां शरीर में फुर्ती और दिमाग में फोकस बढ़ता हैं. ब्लड़ प्रैशर, कॉलेट्रॉल और ज्यादा वजन वाले मरीजों  के लिये कुल्फा की पत्तियां संजीवनी के बराबर ही है. एंटीऑक्सीडेंट्स और कैरेटिनोइड्स के गुणों से भरपूर इस पौधे के औषधीय गुणों की अहमियत समझकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने कुल्फा को बहु उपयोगी औषधीय पौधों की सूची में शामिल किया है. यही कारण है कि कुल्फा की खेती या इसे छत की बगिया में जगह देना फायदे का सौदा साबित हो सकता है.



कैसे लगायें कुल्फा का पौधा (How to Grow Purslane Plant in Terrace Garden)
कुल्फा की खेती (Purslane Cultivation)या इसका पौधा लगाना बेहद आसान है. वैसे तो ये पौधा बिना मेहनत के सड़क और नहरों के किनारे उग जाता है, लेकिन इसकी बागवानी के लिये किसी नर्सरी से इसका स्वस्थ पौधा खरीद सकते हैं. आप चाहें तो कुल्फा के बीजों से भी इसका पौधा बना सकते हैं. कुल्फा के पौधे को ग्रो बैग्स या गमले में उगा सकते हैं. इसके पौधे में कीड़े और बीमारियों की संभावना नहीं होती, लेकिन जोखिम कम करने के लिये इसके उन्नत बीजों से ही बागवानी करनी चाहिये. 




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