Natural Farming: बिना यूरिया-डीएपी के 20 एकड़ में मुनाफा ले रहा किसान...इस तरकीब से आधा हो गया खेती का खर्च!
किसान अशोक कुमार अपनी 20 एकड़ जमीन पर सिर्फ प्राकृतिक खेती करते हैं. प्रगतिशील किसान अशोक कुमार के लिए ये सफर आसान नहीं था. रसायनिक खेती छोड़ने के बाद अच्छी उपज के लिए 2 साल का धैर्य रखना पड़ा.
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Natural Farming Method: रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल से खेती योग्य जमीन बंजर होती जा रही है. धीरे-धीरे मिट्टी के जीवांश खत्म हो जाते हैं और भूजल स्तर भी नीचे चला जाता है. यही वजह है कि अब किसान पर्यावरण सरंक्षण में योगदान देते हुए जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. पारंपरिक खेती छोड़कर जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की ओर रुख करने वाले किसानों में गुरुग्राम जिले के अशोक कुमार भी शामिल हैं. इन्होंने रसायनिक खेती से उत्पादन बढ़ाने वाले नुस्खों को नहीं अपनाया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करते हुए जैविक विधि से फसलें उगाने लगे.
शुरुआत में जैविक उर्वरकों के साथ खेती करना घाटे का सौदा लगने लगा, धीरे-धीरे अशोक कुमार की मेहनत रंग लाई और 2 साल बाद मिट्टी की उर्वरता और फसलों की उत्पादता में सकारात्मक बदलाव होने लगे.
बाजार में बढ़ रही प्राकृतिक उत्पादों की मांग
शुरुआती 2 साल प्रगतिशील किसान अशोक कुमार के लिए काफी कठिन रहे. काफी धैर्य के साथ खेती-किसानी की. नुकसान भी झेला. कई बार बाजार में उत्पादों के सही दाम नहीं मिलते थे, लेकिन समय के साथ किसान अशोक कुमार की मेहनत रंग लाई. बाजार में इनके खेत से निकले उत्पादों की बढ़िया कीमत मिलती है. फिल्हाल स्थिति ऐसी है कि बाजार की मांग को 20 एकड़ से पूरा कर पाना संभव नहीं हो रहा.
गेहूं, बाजरा, मूंग ने दिलाई पहचान
रसायनिक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ने के अपने इस सफर के बारे में प्रगतिशील किसान अशोक कुमार ने बताया कि वे 2014 से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. इस विधि से गेहूं, बाजरा और मूंग की फसल पर फोकस है.
ये फसलें बाजार में आसानी से बिक जाती हैं. रबी सीजन की गेहूं और खरीफ सीजन की बाजरा के बीच खाली बचे 2 से 2.5 महीने के टाइम में जायद सीजन की मूंग उगाते है. इससे मिट्टी की हरी खाद मिल जाती है और मूंग की उपज को बाजार में बेच दिया जाता है.
अशोक कुमार बताते हैं कि मूंग की फसल में दो बार सिंचाई लगती है, जबकि उर्वरकों का कोई खर्च नहीं है. अशोक कुमार एक सीजन की मूंग से 2 से 2.5 क्विंटल उपज लेते हैं.
हरियाणा के प्रगतिशील किसान अशोक की कहानी उनकी ही ज़ुबानी। प्राकृतिक खेती के प्रति अपनी लगन और मेहनत से औरों के लिए प्रेरणा बने अशोक। आइए जानते हैं अशोक को …https://t.co/kAedc83qr2 pic.twitter.com/a8rzzOmg9b
— Dept. of Agriculture & Farmers Welfare, Haryana (@Agriculturehry) April 11, 2023
बाजार में बढ़ रही उत्पादों की मांग
जैविक और प्राकृतिक विधि से फसलें उगाने वाले अशोक कुमार अब उर्वरक-कीटनाशकों के लिए बाजार पर निर्भर नहीं रहते. बिना यूरिया-डीएपी फसलों से बेहतर उत्पादन मिल रहा है. वे इन रसायनिक उर्वरकों के बजाए गाय के गोबर और गौमूत्र से बने जीवामृत और घनामृत बनाकर फसलों पर छिड़काव करते हैं.
इससे फसलों की उत्पादकता बढ़ी है और मिट्टी को भी फायदा हुआ है. प्रगतिशील किसान अशोक कुमार की पर्यावरण हितैषी सोच और जज़्बे ने कई उन्नतशील पुरस्कार दिलवाए हैं.
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