Natural Farming: पुश्तैनी खेती में हो रहा था घाटा, किसान ने अपनाई ये तरकीब...कुछ ही दिन में डबल हो गई इनकम!
सतीश कुमार कई सालों से पारंपरिक खेती में घाटा झेल रहे थे. जब प्राकृतिक खेती में कदम रखा तो मेहनत आधी और मुनाफा डबल हो गया. इस तरकीब से उत्पादन बढ़ा और बाजार में कृषि उपज के भी अच्छे दाम मिलने लगे
Agri Innovation: ज्यादातर इलाकों में किसान आज भी पारंपरिक खेती कर रहे हैं. कई मायनों में पारंपरिक खेती के फायदे तो हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दौर में चुनौतियां ज्यादा हैं. किसी ना किसी वजह से फसलें नुकसान में जा रही है. इधर मिट्टी की उर्वरता कमजोर हो रही है, इसलिए फसलों से ही उत्पादकता नहीं मिलती और बाजार में मोल-भाव करना पड़ता है. लेकिन अब किसानों ने इन सभी समस्याओं का संयु्क्त समाधान निकाल लिया है. प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों में जागरूकता बढ़ रही है. लगभग शून्य लागत वाली ये खेती ना सिर्फ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ा देती है, बल्कि बाजार में भी उपज के बेहतरीन दाम मिलते हैं. सरकारें भी प्राकृतिक खेती को प्रमोट कर रही है. पारंपरिक खेती का रास्ता छोड़ प्राकृतिक खेती का दामन थामने वाले किसानों में गुरुग्राम जिले के मकरौला गांव के किसान सतीश कुमार, जिन्होंने आज प्रगतिशील किसान के तौर पर अपनी पहचान बना ली हैं.
कृषि विभाग से मिली मदद
सतीश कुमार ने कई सालों से घाटे में जा रही पुश्तैनी खेती को प्राकृतिक विधि से तैयार कर लिया है. प्रगतिशील किसान सतीश कुमार का बचपन से ही खेती में रुझान था, इसलिए पुश्तैनी काम से जुड़कर आजीविका कमाने लगे. धीरे-धीरे समझ आ रहा था कि पारंपरिक खेती में लागत बढ़ती जा रही है, बदले में कुछ खास मुनाफा नहीं मिल रहा. तब ही खर्च को कम करके मुनापा बढ़ाने का रास्ता खोजने लगे. इस बीच सतीश कुमार ने कृषि विभाग से संपर्क किया और सबसे पहले अपने खेत की मिट्टी और पानी की जांच करवाई.
सतीश कुमार बताते हैं कि मिट्टी और पानी की जांच रिपोर्ट ठीक थी, क्योंकि वे रसायनों का ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते थे. खेती में पैदावार बढ़ाने के लिए सतीश कुमार आज भी फसल चक्र अपनाते हैं. गेहूं की फसल के मूंग और फिर ढेंचा की खेती करते हैं, जिससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है और फिर खरीफ धान की फसल से अच्छा उत्पादन मिलता है. लेकिन खेती की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सतीश कुमार ने केंचुए की खाद और जीवामृत का इस्तेमाल शुरू कर दिया.
हरियाणा के प्रगतिशील किसान सतीश प्राकृतिक खेती को अपनी मुख्य आजीविका का आधार बनाकर आज खूब मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
— Dept. of Agriculture & Farmers Welfare, Haryana (@Agriculturehry) April 12, 2023
पर्यावरण हितैषी कृषि से औरों के लिए प्रेरणा बने सतीश ने ऐसा क्या किया कि औरों के लिए आज वे प्रेरणा बन गये, आइए जानते हैं।https://t.co/S5fZDp5PP3 pic.twitter.com/V3lIFLp57W
प्रगतिशील किसान सतीश कुमार ने बताया कि केंचुआ खाद और जीवामृत से मिट्टी के जीवांश बढ़ने लगे और रसायनिक उर्वरकों पर निर्भरता कम हो गई. ये सफर यही खत्म नहीं हुआ. जीवामृत से फसल उत्पादन बढ़ने लगा तो प्राकृतिक खेती सीखने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र जा पहुंचे. यहां से प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली और इसी पद्धित से सोना, बंसी और मोती गेहूं उगाने लगे. हरियाणा कृषि विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक, प्राकृतिक विधि से उगाई गईं गेहूं की ये देसी किस्में तीन गुना ज्यादा कीमत पर बिकती हैं. इस तरह प्राकृतिक खेती से जुड़ने का लक्ष्य पूरा हुआ.
अपनी सफलता को लेकर प्रगतिशील किसान सतीश कुमार बताते हैं कि खेती में सबसे ज्यादा रोल बैक्टीरिया का है, इसलिए हमने देसी खाद से मिट्टी में कार्बन की मात्रा बढ़ाई और कृषि विभाग की सलाह पर नई किस्मों की खेती चालू कर दी. इससे उत्पादन में 1.5 से 2 गुना तक बढ़ गई है. आज सतीश कुमार को प्राकृतिक खेती करते हुए 3 साल से ज्यादा हो चुके हैं.
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