Crop Waste Liquid Fertilizer: फसल अवशेषों का सही प्रबंधन किसानों और वैज्ञानिकों दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण काम है. देश में कई जगह पराली को अच्छे दामों पर खरीद जा रहा है. कई लोग पशु चारे के तौर पर इसका इस्तेमाल करने लगे हैं. इसके बावजूद पराली जलाने (Stubble Burning) के मामलों में कोई अंतर नहीं नजर आता. इस समस्या का एक शानदार समाधान निकाला गया है. दरअसल हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के एक्सपर्ट्स ने फसल अवशेषों से तरल उर्वरक यानी लिक्विड फर्टिलाइजर (Crop Residue Liquid Fertilizer) बनाने के प्रोजेक्ट पर काम रहे हैं.


इस प्रयास से ना सिर्फ फसलों की उत्पादकता बढ़ेगी, प्रदूषण की चिंता (Pollution) भी खत्म हो जाएगी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, फसल अवशेष से तरल उर्वरक बनाने के लिए हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, पंचकुला ने 3 साल की अवधि के लिए 30 लाख का रिसर्च प्रोजेक्ट दिया है. आइए जानते हैं इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर किसानों को क्या फायदे होंगे.


खेती में होगा तरल उर्वरक का इस्तेमाल
इन दिनों बिना धूल-मिट्टी वाली हाइड्रोपॉनिक खेती (Hydroponic Farming) का चलन बढ़ता जा रहा है. इस खेती में मिट्टी और खाद के बिना सिर्फ पानी और पोषक तत्वों से बागवानी फसलों का उत्पादन लिया जाता है. अच्छी बात ये है कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने जिस रिसर्च प्रोजेक्ट के जरिए पराली से तरल उर्वरक बनाने का ऐलान किया है. उस उर्वरक का इस्तेमाल हाइड्रोपॉनिक खेती में ही किया जाएगा. इस तरल उर्वरक को बनाने में फसल अवशेष के अलावा बायोगैस सलरी, ट्रीटेड सीवरेज वॉटर और शीरा का प्रयोग होगा, जिसमें माइक्रोबियल अपघटन और किण्मन तकनीकों से यह प्रॉडक्ट तैयार होगा.


अभी तक कई लोग हाइड्रोपॉनिक खेती में सब्जी फसलों को पानी के जरिए कैमिकल फर्टिलाइजर का इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे सेहत और पानी की क्वालिटी पर भी बुरा असर पड़ रहा था, लेकिन अब नई रिसर्च के जरिए एक्सपर्ट्स एक ऐसा बायो प्रॉडक्ट तैयार करेंगे, जिससे बिना किसी हानि के सब्जियों का अच्छी उत्पादन मिलने लगेगा.  बता दें कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने इस प्रोजेक्ट का विषय- 'जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए कृषि औद्योगिक अवशेष से तरल उर्वरक का विकास' रखा है.


सस्ता मिलेगा उर्वरक
फसल अवशेष से तरल उर्वरक बनाने के लिए कच्चे माल पर ज्यादा लागत नहीं आएगी, जिससे लिक्विड फर्टिलाइजर की लागत भी कम होगी.  इस प्रोजेक्ट का भी मेन फोकस इसी पर है कि कैसे कम लागत में पर्यावरण के हित में काम किया जाए, जिससे उपज बढ़ाने में भी मदद मिल सके. इस प्रोजेक्ट से कैमिकल फर्टिलाइजर से जुड़े जोखिमों को भी कम करने में मदद मिलेगी, जिससे लोगों की सेहत और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.


इस मामले में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने माइक्रोबायोलॉजी विभाग को किसानों के फायदे वाली रिसर्च पर काम करने के लिए शुभकामनाएं दी. प्रोफेसर कम्बोज ने कहा कि फसल अवशेषों से जुड़ी हर समस्या का समाधान निकालने और पराली के वैकल्पिकक प्रबंधन के लिए इंस्टीट्यूट लगातार प्रयासरत रहा है. 


किसानों को मिलेंगे ये फायदे
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के दिशा-निर्देशन में पराली से बनाए जा रहे इस तरल उर्वरक से किसानों को भी कई फायदे होंगे. बाकी कैमिकल उर्वरकों की तुलना में यह सस्ता और पर्यावरण के लिए सुरक्षित होगा, जिससे खेती की लागत कम होगी. बता दें कि फसल अवशेषों को जलाने से प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है, लेकिन इस तरल उर्वरक में डले इंग्रीडिएंट्स बिना किसी नुकसान के मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाएंगे.


अभी तक पराली/ फसल अवशेषों को खाद निर्माण, मशरूम की खेती, कार्डबोर्ड निर्माण और बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, जिससे कई इलाको में पराली जलाने के मामलों में गिरावट दर्ज की गई है. वहीं अव वैज्ञानिकों ने फसल अवशेष से तरल उर्वरक बनाने का प्रोजेक्ट शुरू कर लिया है, जिससे पराली जलाने की समस्या से बड़े स्तर पर राहत मिलेगी.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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