Millets Farming: पूरी दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मना रही है. इस साल सबसे ज्यादा फोकस है मिलेट का उत्पादन बढ़ाना और लोगों की थालियों तक इसे पहुंचाना. ज्वार में मिलेट की श्रेमी में शामिल है, जिसे इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट के लिए चिन्हित किया गया है. हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने ज्वार की फसल से जुड़ी एक अहम खोज की है. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने ज्वार की फसल में नई बीमारी का पता लगाया है, क्लेबसिएला वैरीकोला जीवाणु को इस बीमारी की प्रमुख वजह भी बताया गया है.


वैश्विक ज्वार के उत्पादन को कम कर सकती है, इसलिए यूनिवर्सिटी के चांसलर बी.आर. कंबोज ने इस रोग के नियंत्रण और निगरानी के निर्देश दिए हैं. साथ ही, वैज्ञानिकों को इस रोग का उचित प्रबंधन करने को भी कहा है. वैज्ञानिक भी जल्द ही आनुवांशिक स्तर पर इस रोग का प्रतिरोधी ढूंढने की दिशा में काम करेंगे.


वैज्ञानिकों की रिसर्च को मिली मान्यता
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ज्वार की फसल नई बीमारी क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक पर भारतीय वैज्ञानिकों की इस रिसर्च रिपोर्ट को अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसायटी (एपीएस) के मशहूर जर्नल प्लांट डिजीज को स्वीकार करके मान्यता प्रदान कर दी है.


आपको बता दें कि यह सोसाइटी पौध रोग पर रिसर्च करने वाली सबसे पुरानी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में से एक है, जो बीमारियों के विशेष जर्नल भी प्रकाशित करती हैं. इसने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की ज्वार की फसल में पहली नई बीमारी की खोज को भी स्वीकार करके मान्यता प्रदान की है.


क्या है ज्वार की फसल की ये बीमारी
ज्वार की फसल में इजाद की गई क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक बीमारी को लेकर इस रिसर्च से जुड़े साइंटिस्ट डॉ. विनोद कुमार मलिक बताते हैं कि यह रोग लगने पर ज्वार की फसल की पत्तियों पर छोटी से बढ़कर लंबी लाल-भूरे रंग की धारियां बन जाती है.


धीरे-धीरे इन धारियों की संख्या बढ़ जाती है, जो पूरी फसल पर भी फैल सकती है. इस रिसर्च से जुड़े दूसरे वैज्ञानिक और अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा बताते हैं कि इस बीमारी की पहचान सबसे पहले खरीफ सीजन 2018 में हुई, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने इसका जीवाणु और कारण आदि जानने के लिए काम चालू कर दिया था.


हरियाणा के रोहतक और महेंद्रगढ़ के खलिहानों में यह बीमारी पाई गई है. इस बीमारी को लेकर पादप रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. एचएस सहारण का मानना है  कि बीमारी की समय पर पहचान होने से पूरी प्लानिंग के साथ इसकी रोकथाम के लिए कार्यक्रम विकसित करने में मदद मिलेगी. 


यह है इस बीमारी के खोजी साइंटिस्ट
ज्वार की फसल में दुनिया की पहली बीमारी क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक का पता लगाने वाले वैज्ञानिकों में चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. मनजीत घणघस, डॉ. पूजा सांगवान, डॉ. पम्मी कुमारी, डॉ. बजरंग लाल शर्मा, डॉ. पवित्रा कुमारी, डॉ. दलविंदर पाल सिंह, डॉ. सत्यवान आर्य और डॉ. नवजीत अहलावत का नाम शामिल है.


इस रिसर्च को लेकर अन्य वैज्ञानिक डॉ. मलिक ने बताया कि कई परीक्षणों के आधार पर हमारी टीम ने यह सिद्ध कर दिया है कि क्लेबसिएला वेरिकोला जीवाणु ही क्लेबसिएला लीफ स्ट्रीक बीमारी का प्रमुख कारक है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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