Rain Between Harvesting: भारत के ज्यादातर इलाकों में खरीफ फसलों की कटाई (Kharif Crop Harvesting) का काम तेजी से चल रहा है, लेकिन आसमान से बरस रही आफत ने अब किसानों की चिंतायें काफी हद तक बढ़ा दी है. भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने भी अगले कुछ दिनों तक देश के ज्यादातर इलाकों में मानसून बारिश की भविष्यवाणी की है. ऐसे में खरीफ फसलों की कटाई के साथ-साथ उनकी क्वालिटी और पैदावार पर बुरा असर (Crop Loss in Rain) पड़ सकता है.
खासकर खरीफ सीजन (Kharif Season 2022) की प्रमुख नकदी फसल धान से लेकर कपास, मक्का और सोयाबीन से लेकर तमाम बागवानी फसलें भी बेमौसम बारिश के कारण पानी भरने से बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. कई राज्यों में हल्की -छिटपुट बारिश और हवा के बहाव के कारण धान की फसलों पर पहले से ही काफी बुरा असर पड़ा है. अब जब कपास, सोयाबीन और तिल जैसी फसलें खेतों में पककर तैयार खड़ी हैं, ऐसे में इन बारिश से भारी नुकसान की संभावनायें जताई जा रही है.
इन इलाकों में बरस रहा है बादल
मौसम विज्ञान विभाग (IMD) की ओर जारी पूर्वानुमान के मुताबिक अगले कुछ दिनों तक पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड, मध्य प्रदेश, बिहार में पहले से ही बारिश की संभावनायें जताई गई है. साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान और हरियाणा के कुछ इलाकों में भी मानसून का प्रभाव देखने को मिल सकता है. इन सभी राज्यों में धान की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
धान पर बुरा असर
इस समय धान की फसलें लगभग पककर तैयार खड़ी हैं. जिन इलाकों में धान की फसल को पकने में देरी है, वहां पौधों में बालियां बन चुकी है, लेकिन बारिश के कारण धान की फसल खेतों में बिछ जायेगी और दानों के काले पड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. ऐसे में चावल की क्वालिटी को नुकसान पहुंचेगा और बाजार में धान के सही दाम नहीं मिल पायेंगे. दूसरी तरफ बारिश के कारण धान की फसलों पर छिड़काव भी नहीं हो पा रहा है. ऐसे में कीट-रोगों का प्रकोप धान की फसल को खराब कर सकता है. अगर बारिश नहीं रुकी तो आधी से ज्यादा फसलें कीट-पतंग और बीमारियों की भेंट चढ़ जायेंगी.
कपास की क्वालिटी गिरेगी
सफेद सोना कही जाने वाली कपास पर भी इस बारिश का बुरा असर पडेगा ही. इस समय कई खेतों में कपास की चुनाई का काम नहीं हुआ है, वहां कपास में गुलाबी इल्ली का प्रकोप बढ़ सकता है. वहीं कुछ किसानों ने चुनाई के बाद कपास खेतों में ही छोड़ दी थी, लेकिन अचानक बारिश के कारण इन कपास के भीगने की संभावनायें है. इससे किसानों के साथ-साथ कपास के व्यापारियों को भी नुकसान हो सकता है. इसी के साथ-साथ मक्का, सोयाबीन, तिल और दलहनी फसलों में नुकसान की आशंका बढ़ सकती है.
बागवानी फसलों पर बुरा असर
खरीफ फसलों की कटाई-गहाई के लिये अक्टूबर का महीना ही सबसे उपयुक्त रहता है, लेकिन मौसम की मार पड़ने के कारण अब ना तो फसलों की कटाई हो पा रही है और ना ही कटाई के बाद फसलों का प्रबंधन. इस दौरान बारिश का बुरा असर बागवानी फसलों पर भी पड़ रहा है. बागवानी फसलों का रकबा बढ़ाने के कारण ज्यादातर किसानों ने खरीफ सीजन में गिलकी, भिंडी, लोकी, करेला जैसी फसलें लगाई हुई हैं.
इसके अलावा कुछ इलाकों में प्याज और लहसुन भी खेतों में दबे हुये हैं. कुछ खेतों में टमाटर और मिर्च की फसलें भी पककर तैयार खड़ी है, लेकिन तेज बारिश के कारण हरी सब्जियों में कीट-रोग और इल्लियां लगने की संभावनायें बढ़ सकती है. ये बारिश जमीन के अंदर तैयार प्याज और लहसुन की फसल में जल भराव के कारण कवक रोगों की संभावना बढ़ा सकती है. वहीं टमाटर और मिर्च की फसल में गलन रोग का प्रकोप बढ़ सकता है.
पशु और किसानों पर संकट
सबसे बड़ी चिंता की बात ये है कि खेतों में पानी भरे रहने के कारण ना पारंपरिक फसलों की कटाई हो सकती है और ना ही बागवानी फसलों की तुड़ाई. ऐसे में सबसे बड़ी चिंता यही है कि यदि फसल बर्बाद हो जायेगी तो मंडी में बेचेंगे क्या और फसल के गलने के बाद पशुओं को क्या खिलायेंगे. ऐसे में अनाज, फल, सब्जी में मंहगाई बढ़ने के साथ-साथ पशु चारे का संकट भी गहराता नजर आ रहा है. हरियाणा और पंजाब समेत कई राज्यों में किसान कभी सूखा तो कभी तेज बारिश के कारण फसलों में लाखों का नुकसान भुगत रहे हैं.
वहीं मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में पहले सूखा के कारण किसान बुवाई नहीं कर पा रहे हैं. मानसून (Monsoon 2022) में देरी के कारण जो बुवाई हुई भी है वो मानसून के लौटने पर लगभग बर्बाद होने की कगार पर है. कुछ राज्य सरकारें बारिश में बर्बाद हुई फसलों के लिये मुआवजे (Crop Loss Compensation) की घोषणा भी कर रही हैं, लेकिन लगातार बारिश के कारण बर्बाद हो रही हैं फसलों (Crop Loss in Rain) और किसानों की मेहनत की भरपाई हो पाना भी मुश्किल ही लग रहा है.
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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