Crop Loss in Rain: यहां बेमौसम बारिश से बर्बाद हो गई मटर की फसल, अब खेती का खर्च निकालना भी हो रहा मुश्किल
Green pea Farming: अब पहाड़ी इलाकों से लेकर निचले इलाकों तक सर्दियों के मौसम में मटर की खेती की जाती है, जिसके चलते मटर की डिमांड उतनी नहीं है, जिससे कीमतों में भी कमी आई है.
Green Pea Crop: इस साल मौसम की मार से फसलों को भारी नुकसान हुआ है. अक्टूबर की शुरुआत में धान की फसल लगभग बर्बाद हो गई. अब हिमाचल प्रदेश में भी भारी बारिश के कहर ने भी किसानों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. यहां शिमला के कई नजदीकी गांव में बारिश के कारण मटर की फसल (Green Pea Crop) को काफी नुकसा हुआ है. एक तरफ किसान पूरी सर्दी मटर की उपज से ही पैसा कमाते हैं, लेकिन बारिश के कारण अब मटर की क्वालिटी खराब हो चुकी है, जिसके कारण इसकी कीमतों (Green Pea Price) में भी गिरावट आई है.
कम मांग के कारण किसानों को उपज के सही दाम नहीं मिल रहे, जिससे खेती का खर्च निकालने भी मुश्किल हो गया है. किसानों की शिकायत है कि अब पहाड़ी इलाकों से लेकर निचले इलाकों तक सर्दियों के मौसम में मटर की खेती की जाती है, जिसके चलते मटर की डिमांड उतनी नहीं है, जिससे कीमतों में भी कमी आई है.
क्वालिटी के हिसाब से मिल रहीं कीमत
मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से शिमला के किसानों ने बताया कि मटर की क्वालिटी के आधार पर ही बाजार में कीमतें निर्धारित की जाती हैं. पहले मटर का भाव 90 से 95 रुपये किलो हुआ करता था, लेकिन अब मटर का सामान्य दाम 80 रुपये किलो है. कहीं-कहीं तो मटर को 50 से 70 रुपये किलो तक बेचा जा रहा है. बेशक इससे आम जनका को राहत मिल रही है, लेकिन किसान अब अपनी खेती की लागत भी ठीक से नहीं निकाल पा रहे. इसका प्रमुख कारण यह भी है कि इस बार पहाड़ी और मैदानी दोनों ही इलाकों में मटर की खेती हुई है, जिससे उत्पादन ज्यादा है, लेकिन क्वालिटी बढ़िया ना होने के चलते बाजार में इसकी खरीद कम है, जिसका सीधा असर कीमतों पर पड़ रहा है.
सिंचाई का प्रबंध नहीं
अकसर पहाड़ी इलाकों में किसानों को खेती के लिए संसाधनों का अभाव भी झेलना पड़ता है. यहां मौसम से जुड़ी अनिश्चितताएं भी अधिक होती हैं. खासकर इस दिनों बर्फवारी और बारिश के कारण सही उपज लेना मुश्किल हो जाता है. हिमाचल के मटियाना गांव के किसानों की भी यही शिकायत है कि इस साल मौसम के बदलते रुख ने फसल की गुणवत्ता को बिगाड़कर रख दिया है. यहां किसान 10 किलो मटर की बुवाई तो करते हैं, लेकिन सिंचाई साधनों की कमी के कारण सिर्फ 1 बोरी मटर का उत्पादन मिलता है. ऊपर से इस साल भाव में भी गिरवाट आ गई है. पिछली साल जो मटर 100 रुपये किलो तो भाव बिक रही थी, आज उसे 60 से 75 रुपये किलोग्राम के भाव पर बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है.
पहाड़ों में मटर के दो सीजन
जानकारी के लिए बता दें कि पहाड़ों में आमतौर पर जलवायु सर्द होती है, जिसके चलते यहां मटर की खेती दो बार की जाती है. पहला सीजन अगस्त से शुरू होता है तो दूसरा मार्च में. इस समय मंडियों में पहाड़ी इलाकों की अगस्त सीजन की मटर बिकने के लिए पहुंच रही है. इसी उपज की क्वालिटी पर बारिश का बुरा असर पड़ा है. फिल्हाल मंडी में मटर उत्पादक आते हैं और अपनी उपज की नीलामी करते हैं. मांग कम होने के बावजूद यहां 80 से 82 रुपये किलो के भाव बिक रही है. मंडी व्यापारियों ने भी माना है कि इस साल किसानों को मौसम की मार के कारण मटर की फसल उगाने में खासी परेशानियां रही हैं.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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