Ashwagandha Cultivation: पिछले कुछ सालों में खेती का स्वरूप बिल्कुल बदल गया है. पहले खेती सिर्फ खाद्य आपूर्ति के लिये की जाती थी, जिसमें अनाज, सब्जी और फलों की खेती करने का चलन था, लेकिन बदलते बाजार और वैश्विक मांग के आधार पर अब औषधीय फसलों की खेती (Medicinal Plants Cultivation) का चलन भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि ये फसलें बंजर जमीन पर भी कम लागत पर तीन गुना ज्यादा मुनाफा देने की ताकत रखती हैं.
ऐसी ही औषधीय फसलों में शामिल है अश्वगंधा (Ashwagandha), जो खारे पाने में उगकर भी किसानों की आमदनी में मिठास भर देती है. बता दें कि अश्वगंधा की फसल में कीड़े और बीमारियों की अधिक संभावना नहीं होती, जिससे उत्पादन की लागत अपने आप कम हो जाती है.
औषधीय बूटी- अश्वगंधा (Medicinal Herb- Adhwagandha)
आयुर्वेद में अश्वगंधा को सबसे लोकप्रिय जड़ी-बूटी की ख्याति प्राप्त है, जिसके फल, फूल, बीज, पत्ती और जड़ों से लेकर इसका तना भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है. इसमें बलवर्धक, स्फूर्तिदायक, स्मरणशक्ति वर्धक, तनाव रोधी, कैंसररोधी गुण पाये जाते हैं, जो शरीर से लेकर, दिल, दिमाग, खून, थायरॉइड और कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज करने में सक्षम है. यही कारण है कि कई दवा कंपनियां अश्वगंधा की कांट्रेक्ट फार्मिंग भी करवाती हैं.
कहां करें अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Cultivation)
अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या हल्की लाल मिट्टी में अश्वगंधा की खेती करके अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. इसकी खेती राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश के कई किसान अश्वगंधा की खेती करते हैं. अश्वगंधा उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश और राजस्थान का नाम शार्ष पर आता है. यहां मनसा, नीमच, जावड़, मानपुरा और मंदसौर और राजस्थान के नागौर और कोटा में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
कब करें खेती
अश्वगंधा की खेती रबी (Rabi Season)और खरीफ (Kharif Season)दोनों सीजन में की जाती है, लेकिन खरीफ सीजन में मानसून के बारिश के बाद इसकी रोपाई करने से अच्छा अंकुरण होता है. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो मानसून की बारिश के दौरान इसकी पौध तैयार करनी चाहिये और अगस्त-सितंबर के बीच खेत की तैयारी करके अश्वगंधा की पछेती खेती करना फायदेमंद रहता है.
- इसके खेतों में जल निकासी की उत्तम व्यवस्था करें, क्योंकि ज्यादा पानी अश्वगंधा की क्वालिटी की खराब कर सकते हैं.
- जैविक विधि से खेती करके मिट्टी में पोषण और अच्छी नमी बनाये रखने से ही अच्छा उत्पादन मिल जाता है.
- प्रति हेक्टेयर फसल में अश्वगंधा की खेती करने पर नर्सरी में 4-5 किलेग्राम बीजों कती जरूरत पड़ती है.
- वहीं रोपाई, सिंचाई और देखभाल के बाद 5 से 6 महीने में अश्वगंधा की फसल तैयार हो जाती है.
एक अनुमान के मुताबिक, प्रति हेक्टेयर जमीन में अश्वगंधा की खेती (Ashwagandha Farming) करने पर 10,000 का खर्च आता है, लेकिन फसल का हर हिस्सा बिकते ही 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है.
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