Home Made Organic Fertilizer: हर किसान खेतों में कड़ी मेहनत करने के बाद यही उम्मीद रखते हैं कि अधिक मात्रा में फसलों का उत्पादन (Crop Production) मिल सके, लेकिन रासायनिक दवा और उर्वरकों (Chemical Fertilizer) के छिड़काव के कारण यह मुमकिन नहीं हो पाता. इनसे फसलों की उपज तो बढ़ा सकते हैं, लेकिन क्वालिटी कंट्रोल और मिट्टी की सेहत बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाता है. ऐसी स्थिति में कुछ देसी नुस्खे या घर पर ही कम लागत में जैव उर्वरकों (Home Made Bio Fertilizer) को बनाकर-आजमकर पौधों का विकास और और पोषक तत्वों की आपूर्ति कर सकते हैं.


बता दें रासायनिक उर्वरकों के मुकाबले यह देसी उर्वरक मिट्टी की संरचना को काफी हद तक सुधार देते हैं. इनकी मदद से मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या बढ़ती है और फसलों का भी बेहतर ढंग से विकास होता है. इन्हें बनाने के लिए जद्दोजहद करने की जरूरत नहीं होती, बल्कि खेत और पशुओं से ही उर्वरक (Organic Fertilizer) बनाने के साधनों का इंतजाम हो जाता है.


गोबर गैस उर्वरक (Gobar Gas Fertilizer) 
गोबर गैस संयंत्र ने किसानों और कृषि वैज्ञानिकों से काफी तारीफें बटोरी हैं. बता दें कि गोबर गैस संयंत्र में करीब 2% नाइट्रोजन मौजूद होती है. यदि इस नाइट्रोजन युक्त खाद्य को फसलों में छिड़का जाए तो फल और फूलों की अधिक उपज ले सकते हैं. 



  • इसके लिए संयंत्र से करीब 20 किलो खाद निकालकर 200 लीटर पानी में  घोलें और पौधों की जड़ों के आसपास का छिड़काव करें. 

  • चाहें तो एक साफ सूती कपड़े में इसका तरल उर्वरक निकालकर भी सीधा पौधों के ऊपर छिड़काव कर सकते हैं.

  • बता दें कि यह देसी-जैव उर्वरक बागवानी फसलों के लिए संजीवनी के सामान साबित होता है.


गौमूत्र उर्वरक (Gaumutra Fertilizer) 
गौमूत्र के फायदों से भला कौन अनजान है. यह यह फसलों के लिए अमृत की तरह काम करता है. इससे फसलों का उत्पादन तो बढ़ा ही सकते हैं, साथ ही कीट रोग नियंत्रण में भी यह काफी मददगार है. 



  • पारंपरिक फसलों पर 15 लीटर स्प्रे पंप में 250 मिलीलीटर और बागवानी फसलों के लिये 150 लीटर गौमूत्र का स्प्रे करना ही फायदेमंद रहता है.


पॉट खाद  (Pot Manure Fertilizer)
पॉट खाद को मिट्टी, खाद और पोषक तत्वों के मिश्रण से बनाया जाता है, जिसमें कोकोपीट, वर्मी कंपोस्ट, गोबर की खाद, बाग की मिट्टी, सूखी पत्तियां और पोषक तत्व शामिल हैं. 



  • चाहें तो इन सभी चीजों को मिलाकर खाद या तरल घोल भी तैयार कर सकते हैं, जिसे 300 लीटर पानी में मिलाकर पौधों की जड़ों में स्प्रे किया जाता है.


वर्मी वाश (Vermi Vash Fertilizer)
वर्मी कंपोस्ट का नाम तो सुना होगा. बागवानी फसलों में वर्मी कंपोस्ट का इस्तेमाल कई सदियों से किया जा रहा है. इसी बीच वर्मी कंपोस्ट यूनिट में केंचुआ खाद के नीचे जो तरल पदार्थ बचता है, उसे वर्मी वॉश कहते हैं. बाजार में इसकी कीमत वर्मी कंपोस्ट से कहीं अधिक है. 



  • इसकी 250 से 500 लीटर मात्रा को 15 लीटर पानी में घोलकर पौधों का छिड़का जाता है. बेहतर रिजल्ट के लिए हर 15 से 20 दिनों के अंदर प्रयोग कर सकते हैं.


ताजा लस्सी (Lassi Fertilizer)
गर्मियों में सेहतमंद रहने के लिए लस्सी का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन यह पौधों के विकास और फसलों से अधिक उत्पादन लेने में भी काफी मददगार है. 



  • एक टैंक में 500 मिलीलीटर ताजा लस्सी बनाकर 15 लीटर में घोलें और फसल की जड़ों में इसका छिड़काव कर सकते हैं.

  • प्राकृतिक खेती करने वाले किसान भी पौधों की बेहतर बढ़वार के लिए लस्सी उर्वरक का स्प्रे करते हैं


देसी गाय का दूध (Cow Milk Fetilizer)
गौमूत्र के तमाम फायदे अक्सर गिनाए जाते हैं, लेकिन गाय का दूध भी फसलों के लिए अमृत की तरह काम करता है. इसके छिड़काव से पौधों की बढ़वार में खास मदद मिलती है.



  • जो खेती के लिए अधिक खर्च नहीं कर सकते. ऐसे किसान 200 मिलीलीटर देसी गाय के दूध को 15 लीटर पानी की दर से मिलाकर फसलों पर छिड़क सकते हैं.


सोयाबीन टॉनिक  (Soybean Tonic Fertilizer)
सोयाबीन का इस्तेमाल तेल, दूध और कई फूड प्रॉडक्ट्स में किया जाता है. इसके बीजों को भी सोयाबीन टॉनिक उर्वरक (Soybean Tonic Fertilizer) के रूप में इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है.  इसमें नाइट्रोजन, कैल्शियम, सल्फर की भरपूर मात्रा होती है, जो पौधों के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. 



  • इसका उर्वरक बनाने के लिये 1 किलो सोयाबीन के बीजों (Soybean Seeds) को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोया जाता है.

  • 24 घंटे बाद मिक्सर में सोयाबीन के बीजों को बारीक पीसकर पतला पेस्ट बनाया जाता है.

  • इस पेस्ट में 4 लीटर पानी और 250 ग्राम गुड़ मिलाकर मिश्रण बनाते हैं और 3 से 4 दिनों के लिए ढंककर रखा जाता है.

  • इस मिश्रण को सूती कपड़े से छानकर 15 लीटर पानी में घोल बनाते हैं और सोयाबीन टॉनिक (Soybean Tonic Bio-Fertilizer)  को पौधों की जड़ों में इस्तेमाल किया जाता है.


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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