क्या है इस बार की गेहूं की पैदावार का हाल, किस दाम पर हो रही खरीद?
Wheat Procurement: भारत सरकार ने 2024-25 के मार्केटिंग ईयर में 196 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद है. लेकिन इस साल की अबतक की खरीद की तुलना अगर पिछले साल की खरीद से करें तो 11% कम है.
Wheat Procurement: भारत में बड़े पैमाने पर गेहूं की खेती की जाती है. गेहूं की खेती के मामले में दुनिया में भारत चौथे स्थान पर आता है. पहले स्थान पर रूस तो वहीं दूसरे स्थान पर अमेरिका और तीसरा स्थान चीन का है. भारत में उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गेहूं की खेती की जाती है.
उत्तर प्रदेश में कुल खेती में से 32.42 फीसदी गेहूं की खेती की जाती है. इस साल देखा जाए तो गेहूं की सरकारी खरीद पिछले साल के मुकाबले कम हुई है. चलिए जानते हैं पिछले साल से लेकर इस साल गेहूं की खरीद में कितना रहा है फासला. फिलहाल किसी कीमत पर खरीदा जा रहा है गेहूं.
पिछले साल से इस साल 11% कम हुई है खरीद
भारत सरकार ने 2024-25 के मार्केटिंग ईयर में 196 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद है. लेकिन इस साल की अबतक की खरीद की तुलना अगर पिछले साल की खरीद से करें तो 11% कम है. पिछले साल इस दौरान सरकार ने 219.5 लाख टन से ज्यादा की खरीद की थी. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अनिसार सरकार की योजनाओं के तहत सालाना 186 लाख टन गेंहू की आवश्यकता होती है.
लेकिन आवश्यकता से ज्यादा 196 लाख टन गेंहू खरीदा जा चुका है. सरकार की ओर से खाद्य सामग्री की खरीद कर देखरेख करने वाली संस्था भारतीय खाद्य निगम यानी एफसीआई ने बताया कि अब गेहूं के बफर स्टॉक को 2024-25 के सीजन में बढ़ाकर 310-320 लाख टन खरीद का लक्ष्य पूरा करना है.
एफसीआई के अध्यक्ष ने अब तक हुई कम खरीदी को लेकर बताया कि गेहूं के उत्पादन मामले में भारत के दो प्रमुख राज्य मध्य प्रदेश और पंजाब में गेहूं की खरीद कम हुई है. लेकिन अब पंजाब और हरियाणा में गेहूं सही मात्रा में आवक हो रही है. अगले कुछ समय में अपने लक्ष्य को पूरा कर लिया जाएगा.
किस भाव में खरीदा जा रहा है?
सरकार ने 2024-25 के फाइनेंशियल ईयर में गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी 2,275 रुपये प्रति क्विंटल तय की है. पिछले साल की तुलना में इस साल या डेढ़ सौ रुपये ज्यादा है. लेकिन सरकारी भाव के अलावा बाहर बाजार में फिलहाल गेहूं का भाव 2,385.64 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है. इसलिए किसान सरकारी गोदाम में गेहूं बेचने के बजाय खुले मार्केट में गेहूं बेचना पसंद कर रहे हैं. इसी के चलते सरकार की खरीद भी प्रभावित हो रही है.
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