Benefits of Hydrogel Irrigation System: आज भी भारत के ज्यादातर इलाकों में बारिश आधारित खेती की जाती है, लेकिन जलवायु परिवर्तन (Climate Change in Agriculture) के कारण बारिश का रुख गड़बड़ाता जा रहा है. कुछ इलाकों में हल्की बारिश में ही बाढ़ की समस्या पैदा हो जाती है. वहीं कुछ इलाकों में बारिश की कमी के कारण फसलें सूखकर बर्बाद हो जाती है. इन इलाकों में कम बारिश के कारण भू-जल (Ground Water Level) काफी गिर जाता है, जिसके चलते सिंचाई के लिये जल संसाधन भी खाली हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में हाइड्रोजेल तकनीक से सिंचाई (Hydrogen Irrigation) की सुविधा किसी चमत्कार के बराबर ही साबित हो जाती है.


क्या है हाइड्रेजैल
हाइड्रोजेल तकनीक को रांची स्थित भारतीय राष्ट्रीय राल एवं गोंद संस्थान में भी विकसित किया गया है. यह तकनीक ग्वार का गोंद या इससे निर्मित पाउडर से बनी होती है, जिसमें गजब की जल धारण क्षमता होती है. इसकी मदद से सूखाग्रस्त इलाकों में आराम से सिंचाई का काम कर सकते हैं. ये तकनीक जितनी सस्ती है, इतनी ही टिकाऊ भी है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यही है कि ये बायो-डीग्रेडेबल यानी पर्यावरण के अनुकूल है. 




इस तरह करते हैं इस्तेमाल
हाइड्रोजेल तकनीक कैप्सूल या टैबलेट के रूप में इस्तेमाल की जाती है. सबसे पहले खेतों की गहरी जुताई की जाती है और प्रति हेक्टेयर खेत के लिये करीब 4 किलो हाइड्रोजेल का इस्तेमाल किया जाता है. 



  • हाइड्रोजेल टैबलेट में बारिश या सिंचाई के समय पानी अवशोषित हो जाता है और सूखा पड़ने पर या मिट्टी में नमी कम होने पर ये जैली अपने आप फट जाती है. 

  • इसकी तकनीक की मदद से खेत और आस-पास के इलाकों में भूजल स्तर बेहतर बनता है और मिट्टी में 50 से 70 फीसदी तक पानी को रोका जा सकता है.


8 महीने तक कारगर
हाइड्रोजेल तकनीक (Hydrogel Technique) की मदद से आठ महीनों तक आराम से सिंचाई का काम निपटा सकते हैं. इसकी मदद से कम पानी और कम खर्च में भी 30 फीसदी तक अधिक उत्पादन ले सकते हैं.  



  • सबसे अच्छी बात ये है कि इससे प्रदूषण नहीं होता, बल्कि इनकी जल धारण क्षमता कम होने पर ये मिट्टी में मिल जाती है. 

  • दरअसल हाइड्रोजेल तकनीक सेल्यूलोज पर आधारित होती है, जो सूरज की रौशनी या तेज तपिश के संपर्क में आने पर नष्ट हो जाती है. 

  • हाइड्रोजेल तकनीक (Hydrogel Irrigation) के इस्तेमाल से बीज, फूल और फलों की क्वालिटी के साथ-साथ मिट्टी में जीवांशों की संख्या बढ़ाकर सूखा की समस्या से बच सकते हैं.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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