New indigenous livestock: भारत में खेती-किसानी की तरह पशुपालन भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है. यहां किसानों के साथ-साथ पशुपालक भी देशी पशुओं की नस्लों को पालकर आजीविका कमाते हैं. भारत में गाय, भैंस, सूअर, बकरी, भेड़, घोड़े, टट्टू, ऊंट, गधे, कुत्ते, मुर्गी और हंस की कई देसी प्रजातियां मौजूद हैं. हाल ही में देसी पशुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था आईसीएआर-राष्ट्रीय पशु अनुवांशिक संस्थान ब्यूरो (National Bureau of Animal Genetic Resources) ने 10 नई नस्लों को देशी पशुधन की लिस्ट में रजिस्टर किया है. ये नस्लें देश के अलग-अलग हिस्सों से ताल्लुक रखती हैं और अब किसान और पशुपालकों की आमदनी को दोगुना करने में मददगार साबित होगी. 


देसी पशुधन की 10 नई नस्लें
आईसीएआर-एनबीएजीआर की ओर से रजिस्टर की गई पशुधन की देसी नस्लों में महाराष्ट्र की कथानी गाय, राजस्थान की सांचोरी गाय, मेघालय की मासीलम गाय, महाराष्ट्र की पूर्णनाथी भैंस, राजस्थान की सोजत बकरी, राजस्थान की करौली बकरी, राजस्थान की गुजरी बकरी, झारखंड का बांदा सूअर, मणिपुर का मणिपुरी काला सूअर और मेघालय का वाक चंबल सूअर शामिल है. जानकारी के लिए बता दें कि देश में पशुधन (Indian Livestock) की देसी नस्लों की कुल संख्या 212 है, जिसमें 53 गोवंश, 20 भैंस, 37 बकरी, 44 भेड़, 7 घोड़े और टट्टू, 9 ऊंट, 13 गधे, 3 कुत्ते, 1 याक, 19 चिकन, 2 बतख और 3 हंस हैं.


पूर्णनाथी भैंस 
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पाई जाने वाली भैंस की ये प्रजाति मध्यम आकार की होती है. सफेद और हल्के भूरे रंग वाली इस भैंस के पैर छोटे और पूंछ सफेद होती है. इसके लंबे और हुक जैसे सींग ही पूर्णनाथी भैंस को बाकी  नस्लों से अलग बनाते हैं. इस भैंस से औसतन 350 से 1530 लीटर तक दूध उत्पादन ले सकते हैं. इसके दूध में 6.5 से 11.5 तक वसा मौजूद होता है.


कथानी गाय 
पश्चिमी महाराष्ट्र के विदर्भ की कथानी गाय एक दोहरे उद्देश्य वाली मवेशी है. यह गाय बेहतर दूध उत्पादन के साथ-साथ खेती-किसानी से जुड़े कामों में भी कारगर साबित होती है. इसकी मसौदा क्षमता काफी अच्छी होती है और धान की खेती के दौरान दलदली भूमि के लिए भी यह काफी अनुकूल रहती है.


सांचोरी गाय 
राजस्थान के जालोर जिले की सांचोरी गाय एक मध्यम आकार की मवेशी है. इस गाय का रंग सफेद होता है, जो दिन भर में 9 लीटर तक दूध उत्पादन देती है. इस गाय से प्रति ब्यांत में 2769 लीटर तक दूध उत्पादन ले सकते हैं.


मासीलम गाय 
मेघालय की मासीलम गाय का आकार थोड़ा छोटा होता है, लेकिन पहाड़ी पारिस्थितिकी तंत्र के हिसाब से यह एक मजबूत नस्ल है, जो हर तरह की परिस्थितियों को झेल लेती है. मासीलम गाय को आमतौर पर जयंतिया समुदायों द्वारा खेल, खाद और सामाजिक-सांस्कृतिक त्योहारों के लिए पाला जाता है.


सोजत बकरी 
राजस्थान के पाली, जोधपुर, नागौर और जैसलमेर जिलों में पाई जाने वाली सोजत बकरी एक बड़े आकार आकार वाला पशुधन है. वयस्क होने पर इस बकरी का वजन 60 किलोग्राम तक होता है, जिससे प्रतिदिन 1 किलोग्राम तक दूध उत्पादन और बाद में मांस का भी अच्छी प्रॉडक्शन ले सकते हैं.


करौली बकरी 
राजस्थान के सवाई माधोपुर, कोटा, बूंदी समेत 12 जिलों में वितरित करौली बकरी को मांस के साथ दूध के बेहतर उत्पादन के लिए जानते हैं. छोटे किसानों के लिए यह बकरी किसी वरदान से कम नहीं है. इसके सींग ऊपर की ओर घुमें हुआ और नुकीले होते हैं. करौली बकरी का वजन करीब 52 ग्राम तक होता है.


गुजरी बकरी
यह दोहरे उद्देश्य वाली राजस्थानी बकरी दूध के साथ-साथ मां, का भी अच्छा स्रोत है. इस बकरी का आकार बड़ा, सफेद चेहरा और पेट से लेकर पैर का रंग भूरा होता है. बकरियों की नस्ल में गुजरी बकरी भी ठीक-ठीक दूध उत्पादन देती है, जिसका वजन 69 किलोग्राम तक होता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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