Peanut X-ray: सर्दियों में हर किसी को मूंगफली खाने का शौक होता है. इसे 'गरीब का बादाम' भी कहते हैं, जिसकी तासीर गर्म होती है. सर्दियों में मूंगफली दवा की तरह काम करती है. इसमें कई सारे न्यूट्रिएंट्स होते हैं. प्रोटीन और विटामिन की तो भरपूर मात्रा होती है, जो सर्दियों में सेहत को दुरुस्त रखने का काम करती है. कई लोगों को आदत होती है कि मूंगफली को तोड़कर बिना देखे इसके दाने खा लेते हैं. कई बार दाने कड़वे निकल आते हैं. कई बार तो ऐसी भी होता है कि मूंगफली के अंदर से दाना ही नहीं निकलता या निकलते भी है तो बेहद छोटे होते हैं. ये मजाक लगभग सभी के साथ हुआ होगा.


इसमें किसान या दुकानदार की गलती नहीं होती, बल्कि कई बार मिट्टी और तापमान की वजह से कुछ उपज अविकसित ही रह जाती है. किसानों और व्यापारियों के यह चिंता रहती है कि मूंगफली की क्वालिटी और संख्या के बारे में कैसे पता लगाएं, जिससे समय रहते कमी को पूरा किया जा सके.


इस समस्या पर कई सालों तक रिसर्च करने के बाद वैज्ञानिकों ने एक एक्स-रे मशीन इजाद की है. इस एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक से मूंगफली की क्वालिटी और इसके अंदर दानों की संख्या का पता लगाने में मदद मिलेगी.


यदि संख्या या क्वालिटी में कुछ कमी होगी तो किसान भी समय रहते उपाय करके इसे ठीक कर सकते हैं. इससे बाजार में किसानों को मूंगफली के सही दाम मिलेंगे और आपके पास भी दानों से भरी हुई मूंगफली पहुंचेगी.


इक्रीसेट ने इजाद की एक्स-रे मशीन
खेती-किसानी से संबंधित रिसर्च कार्य करने वाली बड़ी अंतर्राष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स यानी इक्रीसेट ने मूंगफली की क्वालिटी और क्वांटिटी टेस्ट के लिए एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक इजाद की है. आपको बता दें कि यह काफी हद तक चिकित्सा और हवाई अड्डों में स्कैनर के तौर पर इस्तेमाल होने वाली मशीन से मिलती जुलती है.


इस मशीन को इक्रीसेट और फ्राउनहोफर डेवलपमेंट सेंटर फॉर एक्स-रे टेक्नोलॉजी (ईजेडआरटी)  के साइंटिस्ट ने मिलकर विकसित किया है, जिससे अब देश में बिना छिली मूंगफली की गुणवत्ता, लक्षण और संख्या पता लगा सकते हैं. 


किसानों के लिए मददगार
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में मूंगफली की एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक इजाद करने वाली टीम के स्टीफन गर्थ बताते हैं कि इक्रीसेट औक ईजेडआरटी के शोधकर्ताओं का ये प्रयास भारतीय किसानों के लिए मददगार साबित होगा.


इससे उन कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी, जिनके कारण मूंगफली उगाने वाले भारतीय किसान अपनी कड़ी मेहनत के बावजूद सही मुनाफा नहीं कमा पाते. ये कमियां अच्छी फसलों की ब्रीडिंग को भी रोकती हैं, लेकिन अब एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक की मदद से मेहनत और समय के नजरिए से मूंगफली के फलियों का मूल्यांकन की प्रक्रिया आसान हो गई.


इस काम में कबी 3 से 5 मजदूरों को 30 मिनट का समय लगता था, लेकिन अब इस तकनीक से मात्र 2 मिनट के अंदर मूंगफली की हर छोटी-बड़ी डीटेल मिल सकती है. यदि किसानों को सही समय पर मूंगफली की कमियां पता चल जाएंगी तो बाजार मानकों के हिसाब से मूंगफली का उत्पादन हासिल करने के लिए पहले ही फसल में सुधार के उपाय किए जा सकते हैं.


आपको बता दें कि इस तकनीक से मूंगफली के अंदर दाने की संख्या, वजन, क्वालिटी और छिलकों का प्रतिशत पता लगा सकते हैं.




कृषि में क्रांति लाएगी एक्स-रे तकनीक
मूंगफली की उपज का विश्लेषण-मूल्याकंन करने वाली ये एक्स-रे कंप्यूटर टोमोग्राफी (सीटी) प्रणाली को हैदराबाद स्थित इक्रीसेट के हेडक्वार्टर में लगाया गया है. इस तकनीक को लेकर इक्रीसेट से जुड़ी वैज्ञानिक सुनीता चौधरी बताती हैं कि इस तरह की एक्स-रे तकनीकों के इस्तेमाल से एग्रीकल्चर सेक्टर में क्रांति आ सकती है, क्योंकि फसल की कटाई के बाद बाजार में उपज के सही दाम हासिल करने के लिए आज भी किसानों को गुणवत्ता जांच करवानी होती है, साथ ही क्वालिटी के निर्धारण के लिए पुरानी मैन्युअल तकनीकों और लंबे टाइम इनवेस्टमेंट वाली जांच से गुजरना होता है.


रिसर्च के मुताबिक, एक्स-रे रेडियोग्राफी तकनीक की मदद से किसानों के खेत में ही उनकी उपज का सही मूल्याकंन किया जा सकता है. अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मूल्य और सुरक्षा समिति भी काफी समय से ऐसी तकनीक की मांग कर रही थी. ऐसे में एक  एक पोर्टेबल एक्स-रे इमेजिंग सिस्टम से ना सिर्फ मूंगफली, बल्कि दूसरे अनाजों का मूल्यांकन करने और बेहतर खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने में खास मदद मिलेगी.


कैसे काम करती है ये एक्स-रे मशीन
डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के अनुसार, इक्रीसेट के वैज्ञानिकों ने एआई बेस्ड एल्गोरिदम विकसित किया है, जो मूंगफली का एक्स-रे रेडियोग्राफी करके इसके भौतिक लक्षणों का पता लगा सकता है. इस तकनीक की मदद से रोजाना 100 सैंपल की स्कैनिंग हो सकती है.


इस तकनीक को लेकर इक्रीसेट की वैज्ञानिक डॉ. जनिला पसुपुलेटी बताती हैं कि हमने एआई बेस्ड इस इमेज प्रोसेसिंग एल्गोरिदम से मूंगफली में दानों की संख्या, वजन और छिलके का प्रतिशत पता लगाने की कोशिश की है.


इसका इस्तेमाल चावल, जई, जौ, और अरहर की क्वालिटी जांचने के लिए भी किया जा रहा है. इस तकनीक के जरिए ना सिर्फ किसानों और ब्रीडरों को खेती के लिए अच्छे बीज और किस्मों का चुनाव करने में मदद मिलेगी, बल्कि बाजार में भी अच्छी क्वालिटी के उत्पादों को बढ़ाया जा सकेगा.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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