Preacaution & Solution of Fungul Diseases: पपीता के बागों से अच्छा उत्पादन लेने के लिये जरूरी है कि समय-समय पर इसके बागों में कीट प्रबंधन से लेकर सिंचाई व्यवस्था को भी दुरुस्त किया जाये. उत्तर भारत में मानसून का समय चल रहा है, ऐसे में पपीते की फसलों में गलन के कारण बीमारियां और फफूंदी रोगों की संभावना बढ़ जाती है. इस समस्या से निपटने के लिये जरूरी है कि समय पर रोगों और बीमारियों की पहचान करके बागों में जैविक कीटनाशक और विशेषज्ञों की सलाहनुसार रसायनिक दवाईयों का छिड़काव किया जाये. 


पपीते के रोग
अकसर पपीते की फसल में लापरवाही और जल भराव के कारण कीड़े और बीमारियां पनपने लगते हैं. इनमें सबसे घातक है पौधों की जड़ और तनों में कवक यानी फफूंदी के कारण सड़न पैदा होना. इस समस्या के चलते अंदर ही अंदर पपीते के पेड़-पौधों के तने और जडें खराब होने लगती है. इससे पपीते की बढ़वार तो प्रभावित होती ही है, साथ ही पेड़ भी खराब होकर गिर जाते हैं.  इस समस्या का समय पर समाधान न किया जाये, तो पानी के जरिये ये रोग पूरे बाग में फैलने लगते हैं.


बीमारियों की पहचान
पपीते के पेड़ों में कवकयुक्त बीमारी की पहचान करना बेहद आसान है. ये बीमारी अकसर बारिश में जल भराव के कारण पेड़ की जड़ों से तनों तक पहुंच जाती है. इस बीमारी के शुरुआती लक्षणों में पेड़ों के पत्तों का पीला पड़ना और पत्तों का मुर्झाकर गिरना शामिल है. इसके अलावा बारिश में जलभराव के कारण जड़ों में भी गलन पैदा होने लगती है, जिसके चलते पेड़ कमजोर होकर अपने आप गिर जाते हैं. इन लक्षणों के नजर आने पर तुरंत विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार प्रबंधन कार्य कर लेने चाहिये.


सावधानियां और उपचार 



  • फफूंदी रोगों की रोकथाम के लिये पपीते के बागों में जल निकासी की व्यवस्था करें, जिससे पेड़ की जड़ों में पानी न भरे.

  • विशेषज्ञों की मानें तो ज्यादा बारिश और जल भराव वाले इलाकों में पपीते की खेती नहीं करनी चाहिये.

  • यदि शुरुआत में ही बीमारियों की पहचान हो जाये, तो बीमार पौधे को उखाड़कर बाग के बाहर फेंक दें और बाग में बायो-पेस्टिसाइड का छिड़काव कर दें.

  • पपीते की नर्सरी तैयार करते समय उसे ढंककर रखें और समय-समय उसकी जगह भी बदलते रहें.

  • नर्सरी में बीजों की बुवाई से पहले बीजोपचार का काम करें, इससे पौधों में बीमारियों की संभावना ही खत्म हो जाती है.

  • पपीते का बाग में निराई-गुड़ाई का काम करते रहें, इससे जड़ें में ऑक्सीजन का संचार बढ़ जाता है.

  • बारिश का मौसम शुरु होने से पहले ही पूरे बाग में नीम से बने जैविक कीटनाशक का छिड़काव कर दें, जिससे बीमारियों की संभावना न रहे.

  • शुरुआत से ही बीमारियों को बढ़ने से रोकने के लिये गड्ढों में खाद-उर्वरकों के साथ-साथ नीम की खली और ट्राइकोडर्मा का प्रयोग करें. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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