Toxic Elements in Green Fodder: दुधारू पशुओं से अच्छी मात्रा और बेहतर क्वालिटी के दूध उत्पादन के लिये हरा चार (Green Feed for Milk Proudction) खिलाया जाता है. पशुओं को रोजाना 15 से 20 किलो पशु चारा खिलाने से उनका पाचन बेहतर रहता है और उनकी इम्यूनिटी(Animal Health Care) मजबूत होती है. खासकर गर्मियों के मौसम में हरे चारे से पशुओं में पानी की कमी भी पूरी होती है और उनमें फुर्ती बढ़ती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हरे चारे में जहरीले तत्व (Toxic Elements in Green Feed)  भी मौजूद होते हैं, जो पशुओं को बहुत बीमार कर सकते हैं.


ये जहरीले तत्व दूध की क्वालिटी के साथ पशुओं की सेहत को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिये पशुओं को हरा चारा देने से पहले चारे की ठीक प्रकार से जांच (Test Green Fodder before feed) करना जरूरी है.


क्यों जहरीला हो जाता है चारा
दरअसल हरे चारे में हानिकारक तत्व नहीं होते, लेकिन कुछ अनिश्चितताओं जैसे- पानी की कमी या अधिकता, सौर ऊर्जा की कमी तथा उर्वरकों का ज्यादा प्रयोग करने पर ही ये चारे में पनपने जाते हैं, जो फसलों के साथ मिट्टी को भी नुकसान पहुंचाते हैं.



  • इस समस्या से निपटने के लिये संतुलित मात्रा में खाद-उर्वरकों का प्रयोग, सही सिंचाई और कटाई प्रबंधन करना बेहद जरूरी है.

  • अगर खेत में लगातार मिट्टी और जलवायु संबंधी समस्यायें आ रही है तो पशुओं को खिलाने से पहले चारे में विषाक्त तत्वों की पहचान कर सकते हैं. 




धुरिन या पुसिक अम्ल
ज्वार की फसल में पाया जाने वाला ये अम्स पानी की कमी के कारण पैदा होता है. दरअसल खेत में जरूरत से ज्यादा नाइट्रोजन का इस्तेमाल करने पर ही धुरिन की मात्रा बढ़ जाती है.



  • इसका सेवन करने पर पशुओं में दूध की मात्रा कम हो जाती है और अधिक मात्रा में ये चारा खिलाने पर पशुओं की जान भी जा सकती है.

  • इस समस्या की रोकथाम के लिये पशु चारे की कटाई पूरी फसल पक जाने के बाद ही करें. ध्यान रखें कि 50 से कम ऊंचाई वाली फसलों की कटाई गहाई नहीं करनी चाहिये.


आक्जेलेट 
ये हानिकारक तत्व बाजरा और नेपियर घास में पनपता है, जिसके सेवन से पशुओं के शरीर में खून की कमी हो जाती है. 



  • खासकर जुगाली ना करने वाले पशुओं पर इस जहरीले तत्व का ज्यादा असर होता है. इसके सेवन से गुर्दे भी पथरी हो जाती है.  


नाईट्रेट  
जई पशु आहार में नाईट्रेट की काफी मात्रा होती है, जो उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण पैदा होती है. 



  • इस समस्या के समाधान के लिये पशुओं को जई का हरा चारा कम मात्रा में या पशु आहार में मिलाकर खिलाना चाहिये.

  • इतना ही नहीं, वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ने पर भी पशु चारा ना खिलायें, बल्कि मौसम के साफ होने के बाद ही पशु चारे की कटाई करें.


सैपोनिन
फलीदार फसलों में पाया जाने वाला ये हानिकरक तत्व पशुओं की सेहत को काफी प्रभावित करता है. खासकर सर्दियों में पैदा होने वाली फलीदार सब्जियों और चारों में इसकी काफी संभावना होती है. इसके कारण चारे में कडवाहट पैदा हो जोती है और पशुओं के खाने लायक नहीं रहता. इसके सेवन से पशुओं में झाग बढ़ने लगता और आफरा की समस्या भी आ सकती है.




इस तरह करें बचाव
पशुओं को हमेशा हरा चारा नहीं खिलाना चाहिये. पशुपालक या किसान चाहें तो कुछ दिनों तक पशु आहार (Animal Nutritional Feed) के सूखा चारा(Dry Fodder), तेल की खली (Oil Cakes) और दूसरे पशु आहार भी खिला सकते हैं.



  • खासकर बारिश और सर्दियों के मौसम में ठीक प्रकार जांच करके ही हरे चारे की कटाई करें और पशुओं को खिलायें.

  • वैसे तो पशु चारा उगाने के लिये उर्वरकों की जरूरत नहीं होती, बल्कि गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट से ही काम चल जाता है. 

  • पशु चारे की व्यावसायिक खेती (commercial Farming of Animal Fodder) करने पर संतुलित मात्रा में ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें, जिससे पशुओं के साथ मिट्टी की सेहद भी कायम रहे.

  • अधपकी अवस्था में हरे चारे की कटाई ना करें. जब हरा चारा अच्छी लंबाई हासिल कर लें और पक जाये, तब ही इसे पशुओं को खिलाना चाहिये.

  • पशुओं को हरा चारा संतुलित मात्रा (Balanced Green Fodder) में ही खिलाना चाहिये, क्योंकि जरूरत से ज्यादा हरा चारा (Green Fodder for Animals) खाने पर भी दुधारु बीमार पड़ने लगते हैं.




Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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