IMD Rain Forecast: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 24 से 26 जनवरी तक राजधानी दिल्ली समेत पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में गरज के साथ छिटपुट बारिश की संभावना जताई है. उत्तरी राजस्थान में मध्य प्रदेश में भी ऐसे ही स्थिति देखी गई है, लेकिन एक पश्चिमी विक्षोभ के चलते 27 जनवरी से उत्तर-पश्चिमी भारत में बादल बरसने के आसार व्यक्त की है. मौसम में यह बदलाव खेती-किसानी को भी प्रभावित करेगा ही. इंडियन एक्सप्रेस की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल किसानों ने 341.13 लाख हेक्टेयर रकबे में गेहूं की बुवाई की है, जबकि पिछले साल 339.87 लाख हेक्टेयर की थी. इस साल मौसम की मेहरबानी से गेहूं का बंपर उत्पादन मिलने के आसार दिख रहे हैं.


क्या कहते हैं किसान
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के प्रधान वैज्ञानिक राजबीर यादव ने बताया कि धूपदार मौसम और रात का कम तापमान गेहूं के लिए बिल्कुल सही है. इस समय हल्की छिटपुट बारिश से भी कोई तकलीफ नहीं है. इससे प्राकृतिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण के साथ-साथ फसल के विकास को गति प्रदान करने में खास मदद मिलेगी.


हरियाणा के पानीपत जिले स्थित उरलाना खुर्द गांव में खेती करने वाले किसान प्रीतम सिह ने दावा किया है कि गरज से साथ हल्की बारिश होने का मतलब है प्रति एकड़ में 15 किलो यूरिया लगाना. इस बारिश के पानी से गेहूं की फसल पर जमी धूल, मिट्टी और प्रदूषण साफ हो जाएगा.


बारिश का पानी भूजल से कहीं ज्यादा शुद्ध हैं. इसमें लवण के साथ दूसरे तत्व भी होते हैं. यदि बारिश होती है, तो गेहूं की फसल में एक सिंचाई का काम प्राकृतिक ढंग से हो जाएगा.


बचेगा सिंचाई का खर्चा
किसान ने बताया कि इस समय बारिश पड़ने से सिंचाई का खर्चा बचेगा. आमतौर पर गेहूं की फसल में 4 सिंचाईयां लगती है, लेकिन इलाके में बारिश ना हो तो फसल के विकास के लिए 5 से 6 सिंचाईयां करनी पड़ जाती है.


एक एकड़ खेत में सिंचाई करने पर करीब 5 घंटे का समय और 1-1.5 लीटर डीजल प्रति घंटे के हिसाब से खर्च होता है. कई बार अतिरिक्त सिंचाई के लिए 90 रुपये प्रति लीटर के हिसाब से 5 से 7.5 लीटर डीजल भी फूंकना पड़ जाता है, जिससे राहत मिलने के आसार हैं.


सरसों की फसल के लिए कैसा रहेगा मौसम
रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल किसानों ने रिकॉर्ड रकबे में सरसों की बुवाई का काम किया है. साल 2021-22 में मात्र 84.47 लाख हेक्टेयप रकबे में सरसों की बिजाई हुई थी, जबकि इस साल 91.56 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल सरसों की फसल से कलवर हो रहा है, जबकि औसत कवरेज 63.46 लाख हेक्टेयर निर्धारित किया गया था.


आमतौर पर अक्टूबर के अंत तक बोई गई सरसों में 50 से 60 दिन के अंदर फूल आना चालू हो जाते हैं. इसके बाद 35 से 40 दिन के अंदर फलियां बनने लगती हैं. इस अवस्था में शीतलहर का चलना फसल की उत्पादकता के लिए सही नहीं है.


यही कारण है कि 15 जनवरी से 18 जनवरी के बीच पड़े पाला और शीत लहर ने राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिमी मध्य प्रदेश में सरसों की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है.


सरसों की यह अवस्था काफी नाजुक होती है, हालांकि गेहूं में अभी फूल आना चालू नहीं हुए हैं, इसलिए सुबह की धूप और रात के तापमान में गिरावट का ये हेर-फेर गेहूं की फसल पर बुरा असर नहीं डालेगा, लेकिन शीतलहर और पाले के कारण सरसों की फलियां टूटकर गिर सकती है. वहीं पाले से पौधे के ऊतक भी जम जाते हैं, जिससे फसल का विकास नहीं होता और फसल बर्बाद हो जाती है.


सिर्फ हल्की बारिश से ही राहत
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सरसों अनुसंधान निदेशालय (भरतपुर), राजस्थान के प्रमुख प्रमोद कुमार राय ने बताया कि हम सरसों की फसल में नुकसान के आकलन के लिए जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं. शुक्र है कि 19 जनवरी के बाद शीतलहर और पाले का प्रभाव कुछ कम हुआ है, लेकिन अभी भी मुसीबत टली नहीं है.


हमें बिना किसी ओलावृष्टि या तेज हवा की संभावना वाली सिर्फ हल्की छिटपुट बारिश की ही उम्मीद करनी चाहिए, वरना फसलें खेतों में झुक सकती हैं. उन्होंने बताया कि मार्च के अंत तक लगभग सरसों की कटाई पूरी हो जाती है, जिसमें बीज भरने और पकने के काम आखिरी 45 से 50 दिनों में पूरा हो जाता है. 


चना की फसल के लिए कैसा रहा मौसम 
चना एक प्रमुख दलहनी फसल तो है ही, साथ ही रबी सीजन की भी दूसरी बड़ी फसल है, जिसकी 110.91 लाख हेक्टेयर रकबे में बुवाई की गई है, जो पिछले साल के मुकाबसे कुछ कम है. साल 2021-22 करीब 112.65 लाख हेक्टेयर रकबे में चना की बुवाई हुई थी, लेकिन यह रकबा भी निर्धारित क्षेत्रफल 98.86 लाख से अधिक है.


देश में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के किसानों ने सितंबर के अंत तक चना की बुवाई कर दी थी, जबकि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब के किसानों ने नवंबर के पहले पखवाड़े में यह काम पूरा कर दिया था. इस तरह फसल की अवधि भी 100 से बढ़कर 110, 120, 130, 140 दिन हो जाती है.


चना की फसल पर पाले का कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ा है, क्योंकि इसमें भी जनवरी के अंत या फरवरी तक ही फुलवारी चालू होगी, जिसे 25 से 30 बाद ही फलियां बनने लगेंगी. यदि अभी बारिश हो जाए तो यह चना की उत्पादकता बढ़ाने में मददगार साबित होगी


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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