(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Potato Farming: विदेशियों को खूब भाया देसी आलू, 4.6 गुना बढ़ा निर्यात! अब आलू से अच्छी कमाई के लिये अपनायें ये उपाय
Desi Potato Export: हाल ही में देसी का आलू का निर्यात 4.6 गुना बढ़ गया है. इसकी खेती के दौरान कुछ बातों का खास ध्यान रखकर किसान अपने खेत के आलू को भी विदेशी में निर्यात के काबिल बना सकते हैं.
Potato Cultivation: भारत में आलू की खपत सालभर रहती है. बाकी किस्मों के मुकाबले देसी आलू की ज्यादा डिमांड रहती है. यही कारण है कि आलू की देसी किस्मों की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. इससे सिर्फ देश ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार की जरूरतों को भी पूरा किया जा रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत का आलू श्रीलंका, ओमान, इंडोनेशिया, मलेशिया, मॉरीशस जैसे देशों को निर्यात होता है. इसके अलावा, इनमें सबसे ज्यादा आलू का निर्यात (Potato Export) नेपाल को होता है. देसी आलू के विदेशी निर्यात को लेकर नये रुझान सामने आये हैं, जिनसे साबित होता है कि अब विदेशी भी देसी आलू (Desi Potato) के दीवाने हो रहे हैं.
भारत ने साल 2013-14 के मुकाबले साल-2022-23 के दौरान करीब 4.6 गुना ज्यादा देसी आलू का निर्यात किया है. आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल-अगस्त (2013-14) के दौरान भारत ने करीब 77 करोड़ रुपये का आलू निर्यात किया था, जबकि अप्रैल-अगस्त( 2022-23) के दौरान यहां से 360 करोड़ का आलू निर्यात हुआ है. ये आलू उत्पादक किसानों के लिये एक अच्छा संदेश है. खासकर अभी जब देश के तमाम इलाकों में आलू की बुवाई का काम चल रहा है. ऐसे में कुछ बातों का खास ध्यान रखकर किसान देसी आलू का अच्छा उत्पादन (Potato Production) ले सकते हैं और अपने खेत के आलू को भी विदेशी में निर्यात के काबिल बना सकते हैं.
विदेश चला देसी आलू!
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) October 19, 2022
India’s export of potatoes rises to 4.6 times in April-August 2022 as compared to the same period in 2013. pic.twitter.com/ZSFAnYP7IF
आलू की खेती
भारत की सबसे ज्यादा खपत वाली सब्जी फसलों में आलू की गिनती टॉप पर होती है. इस समय देश के ज्यादातर इलाकों में आलू की अगेती बुवाई चल रही है. ये फसल 60 से 90 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है. किसान चाहें तो आलू की अगेती खेती (Potato Farming) के बाद गेहूं की पछेती खेती भी कर सकते हैं. इसके लिये कुफरी सूर्या किस्म से बुवाई करने की सलाह दी जाती है. ये किस्म बुवाई के 75 से 90 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है, जिससे 75 से 90 दिनों के अंदर 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन ले सकते हैं. जल्दी पकने वाली किस्मों में कुफरी अशोक, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर से भी बुवाई करके 80 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार ले सकते हैं,
इन बातों का रखें खास ध्यान
आलू की बुवाई के लिये खेत को समतल करके जल निकासी की व्यवस्था अवश्य कर लेनी चाहिये.
- आलू के बीज की मात्रा इसके कंदों के आकार पर निर्भर करती है, इसलिये अच्छी किस्म के कंदों का चुनाव करें.
- आलू की बुवाई के लिये प्रति एकड़ खेत में लगभग 12 क्विंटल कंदों से बुवाई का काम कर सकते हैं.
- इसकी बुवाई के लिये 15 से 20 अक्टूबर के बाद का समय सबसे उपयुक्त रहता है.
- बुवाई से पहले कटे हुये कंदों का उपचार अवश्य करें, जिससे फसल में कीट-रोग की संभावना ना रहे.
- इसके लिये कटे हुये कंदों को 0.25 प्रतिशत इण्डोफिल एम 45 के घोल में 5-10 मिनट तक डुबोकर-सुखाकर ही बुवाई करें.
- ध्यान रखें कि उपचार के बाद कंदों को करीब 14-16 घंटों के लिये छायादार स्थान पर सुखाना चाहिये, जिससे दवा की ठीक तरह से कोटिंग हो जाये.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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