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पराली गलाने के लिए पैसा लगाने की जरूरत नहीं, इस तरह कर सकते हैं इसका निपटारा

Soil Decomposer: पीएयू की इस स्टडी में मिट्टी के अलावा पूसा डीकंपोजर और दूसरे इंस्टीट्यूट्स के डीकंपोजर पर भी ट्राइल किया गया, जिसमें मिट्टी के साथ पराली गलाने की प्रोसेस लगभग एक समान ही है.

Stubble Decomposer: पराली गलाने के लिए अब किसानों को डीकंपोजर या किसी दवाई पर पैसा खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) ने बताया है कि मिट्टी ही अपने आप में सबसे अच्छी और प्राकृतिक डीकंपोजर है. हाल ही में, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट ने एक स्टडी की, जिसमें मिट्टी के अंदर ही पराली गलने की प्रोसेस को विस्तार से समझाया गया है.

एक्सपर्ट्स ने बताया है कि अगर पराली को सही तरह से काट-छांटकर मिट्टी में मिला दिया जाए तो ये प्राकृतिक रूप से गल जाती है, जिसके बाद 20 दिन के अदंर खेत गेहूं की बुवाई के लिए भी तैयार हो जाते हैं. बता दें कि इस स्टडी में मिट्टी के अलावा पूसा डीकंपोजर और दूसरे इंस्टीट्यूट्स के डीकंपोजर पर भी ट्राइल किया गया, जिसमें मिट्टी के साथ पराली गलाने की प्रोसेस लगभग एक समान ही है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
मिट्टी को नेचुरल डीकंपोजर के तौर पर पेश करने वाली इस स्टडी पर पीएयू के माइक्रोबायोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ. जीएस कोचर बताते हैं कि कई रिसर्च में यह पता चला है कि धान के फसल अवशेषों को गलाने के लिए जिन सूक्ष्म जीवों (फंगी, बैक्टीरिया, एक्टीनोमिसीट्स) की आवश्यकता होती है, वो मिट्टी में भी होते हैं.  इस मामले में पीएयू ने 2020-21 में भी कई ट्राइल किए थे, जिसमें इन-हाउस और कमर्शियल कल्चर अपनाया गया, जिसके तीन स्टेप्स थे- पराली की कटाई, खेत में फैलाना और ट्रैक्टर से स्प्रे करना.

इस प्रोसेस को लेकर डॉ. कोचर ने बताया कि पराली पर डीकंपोजर से छिड़काव से धान की पराली तो गल गई, लेकिन इससे गेहूं की उत्पादकता पर कुछ खास फरक नहीं पड़ा. ये स्टडी गुरदासपुर, कपूरथला, फरीदकोट और होशियारपुर की फील्ड पर किए गए ट्राइल्स पर आधारित है.

डीकंपोजर का खास असर नहीं
तमाम डीकंपोजर्स पर आधारित इस स्टडी को लेकर डॉ. कोचर ने कहा कि आईएआरआई का पूसा डीकंपोजर, एएफसी और पीएयू के डीकंपोजर से पराली गल जाती है, लेकिन इससे उत्पादन को ज्यादा फायदा नहीं हुआ. उन्होंने दावा किया कि प्रयोगशाला और फील्ड परीक्षणों में ही कुछ फर्क देखा गया.

पूसा डीकंपोजर को लेकर पीएयू के एक्सपर्ट बताते हैं कि पूसी डीकंपोजर के छिड़काव से खेत 15 दिन के अदंर दोबारा बुवाई के लिए तैयार हो जाते हैं, लेकिन डीकंपोजर का छिड़काव किए बिना भी सिर्फ मिट्टी के अंदर पराली गल जाती है और 20 दिन के अंदर खेत तैयार हो ही जाते हैं, इसलिये डीकंपोजर की खरीद पर पैसा खर्च करने का कोई काम ही नहीं है. धान की कटाई के बाद फसल अवशेष फैलाने के 25 दिन के अंदर साधारण बुवाई की जा सकती है, जबकि 7 दिन के अंदर ही स्मार्ट सीडर और सुपर सीडर से गेहूं की बुवाई कर सकते हैं.

बिना डीकंपोजर बढ़ जाएंगे पोषक तत्व
इस स्टडी के आधार पर डॉ. कोचर ने बताया कि इन सीटू मैनेजमेंट करके भी प्रति हेक्टेयर में नाइट्रोजन, फॉस्फोरिक एनहाइड्राइड और पोटेशियम ऑक्साइड के साथ कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ाई जा सकती है. इस तरह फसल अवशेषों का प्रबंधन करने के लिए धान की कम अवधि वाली किस्मों को लगा सकते हैं, जिसमें पीआर-126 भी शामिल है. कुलपति डॉ. एसएस गोसल ने बताया कि ये किस्म सितंबर के तीसरे-चौथे सप्ताह तक पककर तैयार हो जाती है, जिसके बाद प्राकृतिक प्रक्रिया से पराली प्रबंधन करने पर किसानों को काफी समय मिल जाता है.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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