Haldi Ki Kheti: आधुनिक के दौर में अब हमारा कृषि क्षेत्र भी सुपर एडवांस होता जा रहा है. किसान अब मशीनों और नई तकनीकों के जरिए फसल उत्पादन कर रहे हैं. इस बीच जोखिम को कम करके किसानों की आय बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक भी नई तरकीबें सुझा रहे हैं. इन तरकीबों में शामिल है अंतरवर्तीय खेती. ये तरीका बढ़ती जनसंख्या की खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने और कम खेती-कम समय में अधिक उत्पादन लेने में मददगार साबित हो रही है. यदि किसान को फसल चक्र की सही जानकारी है तो अंतरवर्तीय खेती करके अपनी आय को डबल कर सकते हैं. इन दिनों जायद सीजन की फसलों की बुवाई चल रही है.


कई किसान अपने खेत में ग्रीष्मकालीन मूंग समेत कई दलहनी फसलें की फसल ले रहे हैं. यदि कतारों में दलहन की बुवाई की है तो बीच में हल्दी, अदरक जैसी औषधी और मसाला फसलें उगाकर दोगुनी पैदावार ले सकते हैं.


अंतरवर्तीय खेती की सबसे खास बात यही है कि कतारों में 2 से अधिक फसलों की बुवाई कर सकते हैं. इसमें अलग से खाद-उर्वरक की लागत नहीं आती. किसान को सिर्फ अलग-अलग बीज डालना होता है, जिसके बाद एक ही फसल में लगने वाले इनपु्ट्स से सारी फसलों का विकास हो जाता है.


अरहर और हल्दी की अंतरवर्तीय खेती


अरहर एक प्रमुख दलहनी फसल है तो वहीं मसाला और औषधी के तौर पर बाजार में हल्दी की काफी मांग है. एक ही जमीन पर कतारों में इस दोनों फसलों की बुवाई कर सकते हैं, हालांकि हल्दी को छायादाय स्थान पर उगाया जाता है, इसलिए अरहर के साथ इसकी फसल लेना फायदेमंद रहेगा.


एक साथ बुवाई करने दोनों फसलें पककर तैयार हो जाती हैं. अरहर जैसी दलहनी फसलों के साथ अंतरवर्तीय खेती करने का सबसे बड़ा फायदा है कि ये फसलें वातावरण से नाइट्रोजन को सोखकर जमीन तक पहुंचाती हैं.


इससे मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती और साथ में उगने वाली फसल को इसका सीधा लाभ होता है. विशेषज्ञों की मानें तो दलहनी फसलों की खेती के साथ या इसके बाद बोई जाने वाली फसलों की उत्पादकता बढ़ जाती है. दलहनी फसलों की कटाई के बाद अलग से खाद-उर्वरक का प्रयोग नहीं करना पड़ता.


नहीं होता मिट्टी का कटाव


जलवायु परिवर्तन का बुरा असर खेती-किसानी पर देखा जा सकता है. कभी बेमौसम बारिश तो कभी सूखा जैसे हालातों से फसलें बर्बाद हो रही हैं. भूजल स्तर गिरने से मिट्टी में कटाव बढ़ रहा है. अंतरवर्तीय खेती को इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान बताया जाता है.


एक साथ कई फसलों को लगाने से मिट्टी में जल को बांधने की क्षमता जाती है. इससे बरसात के दिनों में कटाव की समस्या नहीं रहती और मिट्टी में भी नमी कायम रहती है. यदि किसी कारणवश एक फसल को नुकसान हो भी जाए तो किसान के पास जीवनयापन के लिए दूसरी फसल का सहारा मिल जाता है.


औषधीय फसलों की अंतरवर्तीय खेती करने या फसल विविधता के चलते कई बार फसल में कीट-रोगों का प्रकोप नहीं रहता. इससे कीटनाशक का खर्च बच जाता है. फसल की गुणवत्ता बेहतर रहती है और बाजार में उपज को अच्छे दाम मिल जाते हैं.


कौन-कौन सी फसलें साथ में उगाएं


देश के लगभग सभी इलाकों में रबी फसलों  की कटाई का काम पूरा हो चुका है. कुछ किसान जायद सीजन की फसल लगा रहे हैं तो कुछ खरीफ सीजन के लिए खेत की तैयारी कर रहे हैं. किसान चाहें  तो खरीफ सीजन में अंतरवर्तीय पद्धति से खेती कर सकते हैं. खरीफ सीजन में एक साथ उगाई जाने वाली फसलों में अरहर + सोयाबीन, अरहर + तिल, अरहर + मूंगफली, सोयाबीन + मक्का, मूंगफली + बाजरा, मूंगफली + तिल, मूंग + तिल, अरहर + मक्का है. 


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