Millets Updates: भारत के प्रस्ताव पर पूरी दुनिया ने साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मनाने के लिए समर्थन दिया है. भारत में भी पोषक अनाजों की खेती और खपत को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर काम कर रही हैं. मोटे अनाज सिर्फ खेती के लिहाज से ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद जरूरी हैं. कभी हमारे पूर्वजों ने पोषक अनाजों के जरिए ही एक सेहतमंद जीवन जिया है. आज नई पीढ़ी को इनकी अहमियत समझाने और इनके प्रति जागरुकता बढ़ाने की पहल की जा रही है. दूसरी तरफ इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए भी ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तेलंगाना में भी कृषि आधारित योजनाएं चलाई जा रही हैं. आइए जानते हैं इन योजनाओं के बारे में.
इन देशों में हो रहा मोटे अनाज का निर्यात
भारत मोटे अनाजों का सिर्फ उत्पादक ही नहीं, एक बड़ा निर्यातक देश भी है. पीआईबी की एक रिपोर्ट से पता चला है कि साल 2021-22 में भारत ने करीब 159,332.16 मीट्रिक टन मोटे अनाजों का निर्यात किया है. इस आंकड़े में 8.02 की ग्रोथ दर्ज की गई है. इससे पहले मोटे अनाज का निर्यात 147,501.08 मीट्रिक टन तक सीमित था. इस लक्ष्य को हासिल करने में कई देशों ने भारत का समर्थन किया है. रिपोर्ट्स की मानें तो आज संयुक्त अरब अमीरात से लेकर नेपाल, सऊदी अरब, लीबिया, ओमान, मिस्र, ट्यूनीशिया, यमन, ब्रिटेन और अमेरिका तक भारत से बाजरा, रागी, कनेरी, जवार और कुट्टू का आयात कर रहे हैं. भारत के परमानेंट ग्राहकों में इंडोनेशिया, बेल्जियम, जापान, जर्मनी, मेक्सिको, इटली, अमेरिका, ब्रिटेन, ब्राजील और नीदरलैंड का नाम भी टॉप पर है.
ओडिशा मिलिट मिशन
ओडिशा में मोटे अनाजों की खेती से 15 जिलों को कवर किया जा रहा है. इसकी खेती के साथ-साथ खपत को बढ़ाने के लिए 'फार्म टू प्लेट' अभियान भी चलाया जा रहा है. इससे पहले साल 2018 में ही ओडिशा ने मिलिट मिशन की शुरुआत की थी. आज इस स्कीम के तहत ना सिर्फ राज्य, बल्कि देशभर में पोषण सुधार का काम किया जा रहा है. साल 2018 के बाद से ही ओडिशा ने 7 जिलों को पीडीएस के तहत रागी को भी जोड़ा है.
10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान
मोटे अनाजों की खेती पर्यावरण के लिहाज से भई बेहद आसान है. ये कम पानी वाले इलाकों के लिए वरदान है. यही वजह है कि कम लागत में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए कर्नाटक सरकार ने मोटे अनाजों की खेती के लिए 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर के अनुदान की सिफारिश की है. सव्य भाग्य योजना के तहत जैविक विधि से मोटे अनाज उगाने वाले किसानों को राज्य की जैविक प्रमाणन एजेंसी ने ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन भी जारी किए हैं. राज्य सरकार की तरफ से समय-समय पर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम और मेलों का आयोजन किया जा रहा है.
महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान में भी प्रोत्साहन
मिट्टी और जलवायु के हिसाब से देखा जाए तो महाराष्ट्र और राजस्थान में मोटे अनाजों की खेती के जरिए किसान अच्छी आजीविका कमा सकते हैं, क्योंकि इन दोनों राज्यों के कई इलाकों में पानी का बड़ा अभाव है, जो मोटे अनाजों की दृष्टि से उपयुक्त है. महाराष्ट्र सरकार ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जलवायु अनुकूल कृषि पर परियोजना चलाई हैं. वहीं तेलंगाना सरकार भी अब रायथु बंधु समिति और मोटे अनाजों के लिए विशेष एफपीओ स्कीम लेकर आई है.
बढ़ रहा है मोटे अनाजों का उत्पादन
जानकारी के लिए बता दें कि मोटे अनाजों के तहत 16 प्रमुख किस्म आती हैं. इसमें ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, चीना, कोदो, सवा/सांवा/झंगोरा, कुटकी, कुट्टू, चौलाई और ब्राउन टॉप मिलेट आदि शामिल है. मोटे अनाजों के उत्पादन में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी 20% है, लेकिन एशिया का 80 प्रतिशत मोटा अनाज भारत के किसान ही उगा रहे हैं. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक मोटे अनाजों के प्रमुख उत्पादक है.
एफएओ की रिपोर्ट के मुताबित,साल 2020 में मोटे अनाजों का वैश्विक 30.464 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) रहा, जिसमें भारत ने 12.49 एमएमटी प्रोडक्शन दिया है. कुल मिलिट्स प्रोडक्शन मे भारत की हिस्सेदारी 41 प्रतिशत है. साल 2021-22 के बीच भारत ने मोटे अनाजों के उत्पादन में अच्छी-खासी बढ़त दर्ज की है. इस साल प्रोडक्शन बढ़कर 27 प्रतिशत हो गया है, जो पहले 15.92 एमएमटी तक सीमित था.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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