Profitable Farming: हरा चारा की खेती से करोड़पति बना किसान, 80 दिन में कमा रहा 50 लाख का मुनाफा
Green Fodder Silage: शरद वर्मा ने हरा चारा साइलेज उत्पादन 10 एकड़ से चालू की थी, लेकिन आज 100 एकड़ खेती से करोड़पति किसानों में शामिल हो गए हैं. अब हरे चारे से 80 दिन 50 लाख का मुनाफा ले रहे हैं.
Green Fodder Farming: कृषि के उत्पादन में भारत का स्थान हमेशा ही आगे रहा है. युगों-युगों से यहां के अति उपजाऊ जमीन पर तमाम फसलों की खेती हो रही है. गेहूं, धान, मक्का, गन्ना यहां की प्रमुख नकदी फसल हैं तो वही सब्जियों की खेती में भी भारत में खास मुकाम हासिल किया है, लेकिन अब यहां के किसान नवाचारों की ओर बढ़ रहे हैं. अब खेती-बाड़ी सिर्फ आजीविका कमाने का एकमात्र जरिया नहीं रहा, बल्कि और फसलों की ओर भी किसानों की रुचि विकसित हो रही है, जो अच्छा मुनाफा देने के साथ-साथ कम समय और कम खर्च में ही पैदा हो जाती है.
पशु चारा भी इन्हीं फसलों में शामिल है, जिसकी बाजार में काफी मांग है तो चारों उगाने वाले किसान भी कम है, इसलिए इसका उत्पादन भी काफी कम है, लेकिन पशुपालन सेक्टर के विकास-विस्तार के चलते पशु चारे की मांग बढ़ रही है.
इस मॉडल को समझते हुए मध्य प्रदेश के इटारसी के शरद वर्मा हरा चारा साइलेज की खेती से लाखों का मुनाफा कमा रहे हैं. बता दें कि साधारण किसानों की तरह पहले शरद भी सब्जियों की खेती करते थे.
सही लाभ न मिलने के चलते उन्होंने न्यूजीलैंड से हरा चारा साइलेज बनाने की नई उन्नत तकनीकों का ज्ञान हासिल किया और इटारसी से तलवाड़ा गांव में हरे चारे की खेती चालू कर दी है.
आज शरद शर्मा की गिनती करोड़पति किसानों में की जाती है. इस किसान से प्रेरित होकर मध्य प्रदेश के कई किसानों ने हरा चारा साइलेज उगाना चालू कर दिया है. शरद वर्मा अपनी 100 एकड़ जमीन पर हरा चारा साइलेज उगा रहे हैं, जिसकी शुरुआत मात्र 10 एकड़ जमीन से हुई थी, लेकिन बढ़ते मुनाफे के चलते खेती का भी विस्तार हुआ.
आज शरद वर्मा के खेतों का साइलेज मध्यप्रदेश के जबलपुर, भोपाल, बैतूल, हरदा, नर्मदापुरम, मुलताई की बड़ी-बड़ी डेयरी और पशुपालन यूनिट में भेजा जा रहा है. कमाल की बात है कि 75 से 80 दिनों में हरा चारा साइलेज 50 लाख का मुनाफा दे रहा है.
विदेशी तकनीक से बढ़ाया मुनाफा
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो शरद वर्मा हरा चारा साइलेज की खेती करके 100 से ज्यादा अवॉर्ड अपने नाम करवा चुके हैं. वैसे तो शरद वर्मा ने बीए-एलएलबी की पढ़ाई की है. उनके अनुभव और ज्ञान को परखकर कृषि विभाग ने न्यूजीलैंड हरे चारे की खेती करने की जानकारी लेने भेजा.
गूगल सर्च पर जानकारी ली तो पता चला कि इस चारे को खाने से पशु अधिक दूध देने लगते हैं और यह चारा 18 महीने तक खराब भी नहीं होता. फिर क्या डेयरी हब के तौर पर उभर रही अपनी धरती पर यह चारा उगाने का मन बनाया. फिर न्यूजीलैंड से वापस लौटते ही साइलेज की खेती चालू कर दी. कम समय में अच्छे परिणाम मिलने लगे तो तकनीक की ओर रुख किया.
साल 2021 में 4 लाख रुपये की कीमत वाली एक छोटी मशीन खरीद ली. चारे की कटाई के लिए भी 2022 में एक बड़ी चारा कटाई मशीन खरीदी और चारे की पैकिंग करने की एक करोड़ की यूनिट लगाई. जिससे आज 8 लोगों को रोजगार मिल रहा है.
आज शरद वर्मा इन आधुनिक तकनीकों के जरिए एक एकड़ से 100 क्विंटल हरा चारा साइलेज का उत्पादन ले रहे हैं. इसे उगाने का तरीका बड़ा ही खास है. जब मक्का के 50% दाने नरम और दूधिया अवस्था में होते हैं तो साइलेज तैयार किया जाता है.
सब्जी छोड़ उगाया चारा
कोरोना काल से पहले शरद वर्मा सब्जियों की खेती करते थे, लेकिन इससे मुनाफा नहीं मिलता था. मेहनत के मुताबिक बाजार में सब्जियों के दाम भी नहीं मिल पाते थे, इसीलिए धीरे-धीरे साइलेज की खेती करना चालू किया. इस काम में शरद वर्मा की पत्नि कंचन वर्मा ने भी काफी सपोर्ट किया.
शरद वर्मा ने खुद को हरा चारा साइलेज उगाके सैंकड़ों अवॉर्ड जीते, लेकिन कंचन वर्मा ने भी गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए कृषि कर्मण अवॉर्ड अपने नाम करवाया है. उन्होंने मात्रा एक एकड़ खेत से 40 क्विंटल शानदार क्वालिटी वाला गेहूं उगाया है. खेती-किसानी में नए मुकाम हासिल करने वाला ये जोड़ा आज दूसरे किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभर रहा है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
यह भी पढ़ें- गेहूं की फसल के लिए बेहद खतरनाक है ये पौधा, दिखते ही उखाड़ फेंके वरना घट सकता है प्रोडक्शन