Kadaknath: मुर्गे की जीआई टैग ब्रीड कड़कनाथ से सेहतमंद और अमीर दोनों ही बन सकते हैं. ये मुर्गा खुद तो इम्यूनिटी की खान है ही, इसके अंडों से भी लोग अपनी सेहत बना रहे हैं. बाजार में इसके मांस और अंडे की काफी डिमांड है. ये मध्य प्रदेश के झबुआ से ताल्लुक रखता है, जिसे अब देश-विदेश में खूब पसंद किया जा रहा है. कई लोग अब कड़कनाथ के पोल्ट्री बिजनेस में अपनी भविष्य तलाश रहे हैं. उन्हें बता दें कि राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission) के तहत केंद्र सरकार तो पोल्ट्री फार्मिंग के लिए आर्थिक मदद देती ही है, लेकिन झबुआ से आने वाली काले मुर्गे की इस ब्रीड के लिए मध्य प्रदेश सरकार भी सब्सिडी देती है. इन दिनों राज्य सरकार ने नई स्कीन लॉन्च की है, जिसका उद्देश्य कड़कनाथ (Kadaknath) मुर्गे को बढ़ावा देना है. अच्छी बात ये है कि इस स्कीम में आवेदन करने के बाद लाभार्थियों को 100 चूजों के साथ शेड, बर्तन और दाना भी दिया जाता है. आइए जानते हैं इस स्कीम के बारे में
कड़कनाथ पालन के लिए सब्सिडी
मध्य प्रदेश में कड़कनाथ मुर्गा पालन को बढ़ाने के लिए कुक्कुट विकास निगम ने खास स्कीम चलाई है, जिसके तहत जनजातीय महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए कड़कनाथ मुर्गा पालन की इकाई लगाकर दी जाती है. इस यूनिट में 100 कड़कनाथ के चूजों के साथ, शेड़, दाना और बर्तन भी दिया जाता है, ताकि ग्रामीण-जनजातीय महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जा सके.
इस स्कीम से जुड़ने वाली महिलाओं को कड़कनाथ पालने की तकनीकी ट्रेनिंग के साथ-साथ 28 दिन के वैक्सीनेटिड चूजे भी दिए जाते हैं, जिससे चूजों में बीमारियां ना हों और 100 में से 100 चूजे विकसित होकर इन जनजातीय महिलाओं की आमदनी बढ़ा सके. अच्छी बात यह भी है कि अगर बाजार में कड़कनाथ के अंडे या मांस सही दाम पर नहीं बिकते हैं तो पशुपालन विभाग आगे आकर आपकी मार्केटिंग में मदद करेगा.
310 महिलाओं को मिला फायदा
मध्य प्रदेश की 310 ग्रामीण और जनजातीय महिलाएं अभी तक कड़कनाथ पोल्ट्री फार्म चालू कर चुकी है. रिपोर्ट्स की मानें तो बड़वानी ज़िले में 117, झाबुआ जिले में 106 और अलीराजपुर में 87 जनजातीय महिलाओं को इस स्कीम का लाभ मिला है. कु्क्कुट विकास निगम ने इन महिलाओं को कड़कनाथ के 50 वैक्सीनेटिड चूजों के साथ 10×17 शेड, 6 महीने का दाना और बर्तन भी उपलब्ध करवाया है. ये योजना के पहले चरण की लाभार्थी महिलाएं है. अब कड़कनाथ पालन के दूसरे चरण का काम भी चालू होने जा रहा है.
यहां लागू है स्कीम
जनजातीय महिलाओं को कड़कनाथ पालन के लिए प्रेरित करने के पीछे सिर्फ आमदनी या रोजगार ही नहीं है, बल्कि जनजातीय इलाकों में पोषण की कमी को भी पूरा करना है. ये जनजातीय महिलाएं कड़कनाथ बेचकर तो अच्छा पैसा कमाएंगी ही, अपने बच्चों में पोषण की कमी को भी पूरा कर सकेंगी.
इस स्कीम का सबसे ज्यादा लाभ सतना जिले के उचेहरा विकासखंड के जनजातीय बहुल गांव गोबरांव कला, पिथौराबाद, धनेह, जिगनहट, बांधी, मौहार और नरहटी की महिलाओं को खूब मिला है. इस विकासखंड में कड़कनाथ की करीब 30 यूनिट लगाई जा चुकी है, जिनमें कड़कनाथ के 40-40 वैक्सीनेटिड चूजे और 58 किलोग्राम दाना वितरित किया जा चुका है.
क्यों मशहूर है कड़कनाथ
बता दें कि कड़कनाथ मुर्गे के पंख से लेकर त्वचा और मांस तक काला होता है. इस चिकन की इम्यूनिटी भी काफी मजबूत होती है, इसलिए बीमारियां जल्दी नहीं लगतीं. पोषण की बात करें इन चिकन में सबसे फैट और कोलेस्ट्रॉल ना के बराबर ही होता है, जो डायबिटीज और हार्ट के मरीजों के लिए लाभाकरी है.
प्रोटीन की भरपूर मात्रा वाला ये चिकन बाजार में 1,000 से 1,200 रुपये किलोग्राम तक बिकता है. इस मुर्गी के अंडे भी 30 से 35 रुपये का एक बिकता है, लेकिन इसकी अधिक कीमतों का असर मार्केटिंग पर नहीं पड़ता. हमारे देश में ही नहीं, विदेशों में भी कड़कनाथ अंडे की काफी मांग रहती है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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