Kangra Tea GI Tag: नेशनल ही इंटरनेशनल लेवल पर भारतीय उत्पाद अपनी पहचान बना रहे हैं. भारत के गेहूं, चावल, आम, सेब, संतरा के अलावा कई अन्य फल सब्जियों को विदेशी पटल पर पसंद किया जाता है. दार्जिलिंग की चाय भी काफी फेमस हैं. अब हिमाचल प्रदेश की चाय ने विदेशों में अपना जलवा दिखाया है. यहां की चाय अपनी एक पहचान स्थापित कर रही है. अब विदेश से हिमाचल की चाय को जीआई टैग मिल है. इससे किसानों की इनकम बढ़ाने में मदद मिलेगी. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि हिमाचल की कौन सी चाय को जीआई टैग मिला है.
कांगड़ा चाय को मिला जीआई टैग
मुरैना की गजक और रीवा के सुंदरजा आम को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है. अब हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा चाय को जीआई टैग मिला है. यूरोपीय संघ के स्तर से कांगड़ा चाय को जीआई टैग दिा गया है. इसका फायदा यह है कि कांगड़ा की चाय को भारत के अलावा विदेश मेें भी पहचान बनाने मेें मदद मिलेगी. अधिक खपत होने से किसानों की इनकम भी बढ़ जाएगी.
2005 में मिला इंडियन जीआई टैग
दार्जिंलिंग और असम में बड़ी मात्रा में चाय की खेती का उत्पादन किया जाता है. हिमाचल प्रदेश में भी बड़े एरिया में चाय उगाई जाती हैं. वर्ष 1999 के बाद यहां चाय की खेती बूस्ट हुई थी. अधिक विकास को देखते हुए वर्ष 2005 में इसे इंडियन जीआई टैग मिला. कांगड़ा में समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर चाय की खेती की जाती हैं.
मिलते हैं बहुत अधिक पोषक तत्व
हिमाचल की कांगड़ा चाय पोषक तत्वों से भरपूर है. इसकी पत्तियों में 13 प्रतिशत कैटेचिन, 3 प्रतिशत कैफीन और अमीनो एसिड पाए जाते हैं. यह ब्रेन को रिलेक्स करने का काम करती है. रिपोर्ट के अनुसार कांगड़ा घाटी में सफेद, ऊलोंग और काली चाय की खेती की जाती है. धौलाधार पर्वत श्रृंखला में कई स्थानों पर भी कांगड़ा चाय बोई जाती है.
क्या होता है जीआई टैग
किसी भी रीजन में कोई उत्पाद होता है. जब उसकी पहचान देश और दुनिया में फैलने लगती है तो भारत सरकार या विदेशी सरकारें उसे प्रमाणित करती हैं. इसी प्रमाणित करने की प्रक्रिया को जीआई टैग यानी जीओ ग्राफिकल इंडीकेटर कहा जाता है. हिंदी में यह भौगोलिक संकेतक कहलाता है.
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